head advt

बच्चों की दुनिया कितनी उनकी ? - अनुपमा तिवाड़ी | Children's world - Reality :Anupama Tiwari

बच्चों की दुनिया कितनी उनकी ?

तीन वर्ष का बालक बन गया है सबसे छोटा अपराधी। इससे पहले 5 व उससे पहले 10 वर्ष का बालक सबसे छोटे अपराधी रह  चुके हैं। यह खबर जुवैनाइल जस्टिस एक्ट, बच्चों के अधिकार, बाल मनोविज्ञान, बच्चों और परियों की दुनियां की घज्जियां उड़ाती है। बहुत से सवाल हमारे इर्द-गिर्द हैं जो बच्चों को जानने, उन्हें बाहरी दुनियां को देख कर समझ बनाने और गलती कर सीखने के मौके मुहैया करवाने पर सवालिया निशान लगाती है। दुनियां भर के देषों में बच्चों के लिए बने कानूनों में फर्क हो सकता है परंतु बच्चे तो सब जगह एक जैसे सोच, समझ और जिज्ञासु प्रवृत्ति वाले ही होते हैं। बाल न्याय अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष से छोटी आयु के बच्चे को अपराधी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। उसे बाल अपराधी कहा जाएगा साथ ही उसके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार न कर के उसमें सुधार हो इसके लिए प्रयास किए जाएंगे।

      हमारे देश के विभिन्न राज्यों में बाल सुधार गृहों की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती है। देश के बहुत से सुधार गृहों में 5 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के उपेक्षित, संप्रेक्षण में रखे जाने वाले व विशेष गृह  के बालक-बालिकाओं को साथ-साथ रखा जाता है। इनमें कुछ बड़े बच्चे छोटे बच्चों का शारीरिक व मानसिक षोषण भी करते  हैं। बच्चों की सुरक्षा, गार्ड के हवाले होती है जो कि होम के दरवाजों का ताला खोलने व बंद करने का काम करते है। अधिकतर गृहों में  बच्चों को बहुत तरह का भय दिखा कर व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश की जाती है तथा उनमें सुधार के प्रयास नहीं के बराबर किए जाते हैं। बल्कि यहां रहते हुए उनमें एक अपराधी की भावना घर कर जाती है। एक होम में दुबारा आए एक बच्चे ने बताया कि पहली बार उसे साबुन चुराने के अपराध में यहां लाया गया था परंतु दूसरी बार उसे वैसे ही (बिना अपराघ किए) पूछताछ के नाम पर यहां ला कर रखा जा रहा है। शायद पुलिस के लिए उसे यहां लाना आसान भी था क्योंकि, एक बार वह यहां आ चुका है। एक अन्य बाल अपराधी का कहना है कि उसके चाचा ने गांव के पटेल की लाठी मार कर हत्या कर दी। घटना के समय वह वहां था ऐसे में घरवालों ने हत्या के अपराधी के रुप में उसका नाम दर्ज करवा दिया क्योंकि वह 18 वर्ष से छोटा है और उसे जल्दी जेल से मुक्त करवा लिया जाएगा। बाल सुधार गृ्हों में कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं ’ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर प्रयास तो कर रही है परंतु उनके प्रयास कुछ गतिविधियों को कर देने भर तक ही सीमित हैं। संस्थाओं की सुधार को ले कर समझ भी भिन्न-भिन्न है। बच्चों के साथ उनके द्वारा किए गए कृत्य के कारणों पर जाने, उन पर काम करने, गृहों में रहते हुए बच्चों के साथ सुधार के ठोस कार्य करने, कर्मचारियों को व्यवहारिक व बाल अधिनियम का प्रषिक्षण देने, उनके यहां से छूट जाने के बाद फॉलोअप करने, उनके अधिकारों के लिए पैरवी करने जैसे कार्य करने की सख्त आवश्यकता है तथा समाज द्वारा इनके प्रति स्वीकारोक्ति का भाव बनाए रखने की भी जरुरत है।

सच - एक

    
       मैंने  वर्ष 2003 से 07 तक  एक संस्था में काम किया। जो कि किन्हीं कारणों से घर से निकल गए बच्चों को उनके घर पहुचाने का काम करती थी। काम के दौरान ही एक बच्चा मुझे कोटा स्टेशन पर मिला जो कि जयपुर का था। यह बच्चा बोलते समय मुंह को कुछ टेढ़ा कर के बोलता था मुझे लगा कि इसे कोई न्यूरो प्रॉब्लम है या हो सकता है शायद बचपन से ही इसे ऐसी दिक्कत हो। पता नहीं। उससे बहुत बात करने, बहुत कोशिश करने  के बाद भी उसने हमें नहीं बताया कि वह घर से क्यों निकला है ? एक कार्यकर्ता के साथ मैं जयपुर की बजाज नगर की कच्ची बस्ती क्षेत्र में उस बच्चे को घर छोड़ने गई। उसके घर में घुसते ही मैंने उसकी मॉ को नमस्ते करते हुए कहा ’ये आपका बच्चा है’। उसकी माँ ने बेरुखी से हमें देखते हुए कहा ’नहीं ये मेरा बच्चा नहीं है’। तीन-चार बार घर से निकल गया है। मुझे लगा कि अभी ये काफी गुस्से में हैं मैंने माहौल को काफी सहज बनाने की कोशिश की। थोड़ी देर बाद वो हमसे ठीक से बात करने लगीं। बच्चे की मॉ ने हमसे कहा कि इसके पिताजी से मिल कर जाना। हमें भी लग रहा था कि इसके पिताजी इसकी पिटाई नहीं करें। हम उसके पिताजी से मिल लें, माहौल को थोड़ा सामान्य कर के जाएं तो अच्छा होगा। लगभग एक घंटे बाद उसके पिताजी घर आए उन्होंने शराब पी रखी थी परन्तु वे पूरी तरह होश में थे। बेटे को देख कर हमसे बात करते हुए वे बोले ’मैडम मेरे एक ही बेटा है मैंने इसको उस स्कूल में करवाया ये वहां नहीं पढ़ा फिर दूसरे स्कूल में पढ़ाया यह वहां भी नहीं पढ़ा। और उससे बोले ’हरामजादे मैं तुझे खाने को नहीं देता हॅू और मेरे सामने उसके कपड़ों का बक्स खोल कर दिखाने लगे मैडम देखो इसके कपड़े। कुत्ते मैं तेरे लिए कपड़े नहीं लाता हॅू’ ? वे वन विभाग में चौकीदार थे। मुझे कहने लगे मैडम मेरी सरकारी नौकरी है इतनी तनख्वाह मिलती है, इतने ऊपर से हो जाते हैं। माहौल सामान्य हो जाए और बच्चे की पिटाई नहीं हो मैं तब तक ही वहां रुके रहना चाहती थी।

सच - दो

      एक बच्चा हमें जयपुर रेलवे स्टेशन पर मिला बच्चे के शरीर पर जगह-जगह गरम चिमटे लगाए जाने के निशान थे। बच्चे से बातचीत में पता लगा कि उसकी पिता ने दूसरी शादी की है। और शरीर पर गर्म चिमटे उसकी दूसरी मां ने लगाए हैं। मैं और मेरे साथ सह कार्यकर्ता जयपुर के सांगानेर  क्षेत्र में उसके घर गए। हम जब उसके घर पहुंचे तब घर में उसकी मां और नानी थे। उसकी सौतेली मां के दो बच्चे भी थे। हमारे घर में घुसते ही उसकी मां ने हमसे बड़ी की बेरुखी से बात की और बल्कि यह भी महसूस करवाया कि हम इस बच्चे को यहां क्यों ले कर आए हैं ? कुछ देर बातचीत के बाद हमने पूछा कि ’इसके शरीर पर ये निशान कैसे बने हुए हैं’ ? उसकी मां ने कहा ’इसको ऊपर की हवा लग गई है रात को उठ-उठ कर भागता है। इसलिए इसके चिमटे गरम कर के लगाए हैं अब इसे मरने तो दूंगी नहीं’। हमसे बातचीत के दौरान उस महिला की  बेपरवाही साफ बता रही थी कि ये घर से चला जाए तो अच्छा है कहीं भी जाए भाड़ में। हमने कभी प्यार से तो कभी बाल अधिकारों का हवाला देते हुए उस महिला से बात की तो वह बोलीं ’रह लेगा घर में। मैं क्या मना कर रही हूं यहां रहने को’। हम दो-तीन दिन बाद उससे मिलने गए उसकी मां ने लगभग हमको वहां से भगाने जैसा व्यवहार किया। हम उसके पिता से मिलना चाहते थे। मुझे लग रहा था कि वह कुछ दिनों के बाद वापिस घर से निकल गया होगा।

      माइकल जैक्सन के पिता बेहद क्रूर इंसान थे। एक साक्षात्कार के दौरान वे अपनी बचपन की बात करते हुए फफक कर रो पड़े थे। बचपन में मैं भी कभी-कभी घर से भाग जाना चाहती थी परन्तु नहीं भागी क्योंकि पता था कि दुबारा इस घर में नहीं आ सकूंगी। यहां गिजुभाई की किताब याद आती है ’माता पिता बनना कठिन है’। 

सच - तीन

      जयपुर-अजमेर हाइवे पर बांदरसिंदरी कच्चे घरों की बस्ती है जिसमें सड़क के किनारे एक ओर बलाई जाति के व दूसरी ओर नट समुदाय के लोग रहते हैं। यहां समुदाय की पारिवारिक पृष्ठभूमि देना जरुरी है क्योंकि आम-जन इस पृष्ठभूमि से परिचित नहीं होंगे। और वे इस लड़की की स्थिति को शायद नहीं समझ पाएंगे जिसके बारे में मैं आगे बात करने जा रही हॅू। बांदर सिंदरी बस्ती में नट समुदाय की लड़कियां देह व्यापार का काम करती हैं। इनके पास ट्रक वाले आ कर घंटे-दो घंटे बिता कर जाते हैं। कभी-कभी रेड भी पड़ती है जिसमें लड़की व लड़के को पुलिस पकड़ कर ले जाती है वहां से महीने दो महीने बाद ये लड़कियां जब छूटती हैं तो पोकरण के पास पद यात्रा करते हुए बाबा रामदेव के मंदिर में ढोक देने जाती हैं, ढोक देने जाने को ’जात देना’ बोलते हैं जो कि मनौती के तौर पर ये बोलती हैं। परिवार के पुरुष ताश खेलते हैं और गुटका खा कर थूकते रहते हैं। यहां के दो-तीन लड़के जो कि दूसरी-तीसरी कक्षा तक पढ़े थे। हमने उनको किशनगढ़ में साबुन ही फैक्ट्री में काम बताया इस पर उनका कहना था ’मैडम वहां तो 1500 रुपये ही देंगे इतने तो हम गुटका खा कर ही थूक देते है’ं। हमने जन शिक्षण संस्थान अजमेर से भी युवा लड़कों को कुछ ट्रैड सिखाने की कोशिश की परन्तु  उन्होंने संस्थान के किसी भी टेªड को सीखने से मना कर दिया और ऐसे टैªड को सीखने की इच्छा जाहिर की जो कि संस्थान के पास नहीं था। इन परिवार की बहुएं देह व्यापार का काम नहीं करती हैं। देह व्यापार के काम में आने के लिए  लड़कियों को 9-10 वर्ष की आयु से ही चमकने कपड़े पहनाना, लिपिस्टिक लगाना, उनके परिवार या समाज की कोई बड़ी लड़की जो  मुंबई गई हो वो कैसे दो-दो मोबाइल मेण्टेन करती है ये सब्जबाग दिखाकर छोटी लड़कियों को देह व्यापार के काम में आने के लिए तैयार किया जाता है। यहां से लड़कियां मुंबई भी जाती हैं जिनके बारे में घर वाले बाहर वालों को कहते हैं कि मौसी के गई है, बुआ के गई है। इस व्यापार में लगी लड़कियां हमसे बात करने में कतराती थीं। थोड़ी बात करने पर वे कहतीं ’मेरे बाप के बहुत कर्जा है इसलिए मुझे ये काम करना पड़ रहा है’। समुदाय के लोग नहीं चाहते थे कि हम उनसे बात करें। मैंने एक बार इस समुदाय के एक व्यक्ति से पूछा  कि ’बहुएं इस काम को क्यों नहीं करतीं’ ? तो उसका जवाब था ’बहुएं करें तो हम काट डालें उनको’। बहुएं पर्दे में रहती हैं। इन परिवारों में लड़कियां पैदा होने पर खुषी मनाई जाती है। तीन-चार लड़कियों के पैदा होने पर इनमें से एक-दो की शादी कर दी जाती है जिसमें लड़के वालों से हजारों या लाख दो लाख रुपया लिया जाता है। कुंवारी लड़कियां देह व्यापार का काम करती हैं। ये लड़कियां जब देह व्यापार के काम में उतरती हैं तो पहली बार पुरुष के संपर्क में आने पर उत्सव मनाया जाता है इसे ’नथ उतारने’ की रस्म कहा जाता है और उस पुरुष से हजारों या लाख रुपये भी लिए जाते हैं जिसे लड़की के घरवाले अपने पास रखते हैं। यहां हम इस समुदाय के बच्चों को पढ़ाने का काम करते थे। आम ग्रामीण व शहरी समाजों में इस समुदाय को हेय दृष्टि से देखा जाता है। इस समुदाय के छोटे बच्चों से अन्य समुदाय के बच्चे भेदभाव करते हैं और उन्हें चिढ़ाते हैं। देह व्यापार के काम में लगी लड़कियों को इस काम से बाहर निकालना हमें बड़ा ही मुष्किल लगता था।  इसलिए हमने तय किया कि हम पहले साल में छोटे बच्चों को पढ़ाने का काम करेंगे जिससे लड़कियों को पढ़ने के अवसर मिले। इनके परिवारों में आना-जाना होगा तब हम इनकी स्थितियों को बेहतर समझ भी सकेंगे। और संवाद की स्थितियां भी बन पाएंगी। दूसरे वर्ष में लड़कियां जब हमारे पास पढ़ने आएंगी तब हम कुछ लड़कियों को इस काम में जाने से रोक पाएंगे तथा तीसरे वर्ष में दो-तीन लड़कियों को भी यदि हम इस काम से निकाल पाते हैं तो यह हमारे लिए बड़ी उपलब्धिा होगी और इससे पीड़ित लड़कियां इस काम को छोड़ने की हिम्मत भी जुटा पाएंगी। हमारे सेंटर पर आने वाली 9-10 साल की लड़कियां मुझसे कहतीं ’दीदी मैं ये काम नहीं करना चाहती (देह व्यापार का )। वहां हमारी कार्यकर्ता बच्चों को रोज पढ़ाने जाया करती थीं। महीने में 1-2 बार मैं भी मीटिंग करने ,चल रहे काम की मॉनीटरिंग करने जाती थी वहां समुदाय के लोग हमें तरह-तरह से परेशान करते। कभी कहते ’हमारे जात के एक आदमी को नौकरी दो’। कभी कहते आपकी संस्था तो फुक्कड़ है दूसरी संस्था के लोग हमें घुमाने ले जाते हैं कोल्ड ड्रिंक पिलाते हैं होटल में रुकवाते हैं। हमारे पानी का कनेक्शन करवाओ।(पानी का कनेक्शन बिल जमा नहीं कराने पर जलदाय विभाग ने काट दिया गया था और पानी एक ही हैंडपंप से महिलाएं भरती थीं ) संस्था कार्यकर्ता जो कि  हर दिन वहां के बच्चों को को पढ़ाने जाया करती थीं ने एक दिन मुझसे कहा मैडम आपसे सुमन  बात करना चाहती है वह देह व्यापार का काम छोड़ना चाहती है। सुमन 21 वर्ष की लड़की थी जो कि लगभग 9-10 वर्ष से देह व्यापार का काम कर रही थी। दो-तीन दिन के बाद मैं वहां गई। मैंने सुमन को उसके घर से बुलवाया। उसे डर था कि वह यह काम छोड़ देगी तब भी लोग उसे वैश्या के रुप में ही जानेंगे और कमाई कितनी होगी दूसरे काम में, वह क्या काम कर सकती है ? उसने ऐसे ही ही बहुत सारे सवाल मुझसे किए। वह पांचवी कक्षा तक पढ़ी थी। मैंने कहा कि सुमन हमारी संस्था का एक चिल्ड्रन होम कोटा में चलता है तुम वहां खाना बना सकती हो। मैं खुद वहां लगातार जाती रहती हॅू और संस्था में भी वहां महिला कार्यकर्ता हैं तुम्हें किसी भी तरह डरने की जरुरत नहीं है। मैं आज प्रोजैक्ट कॉर्डीनेटर हॅू अगर मैं  यह काम छोड़ देती हूं तो अनुपमा हॅू। घर पर बच्चों की मम्मी हूं। तुम पर जो लेबल यहां लगा है वह यहां से निकलते ही छूट जाएगा। जब तुम वहां काम करोगी तो बच्चे तुम्हें दीदी ही कहेंगे। होम में बच्चों का खाना बनाने के लिए 1800 रुपये मासिक वेतन व रहने खाने की व्यवस्था होगी और अपनी सुरक्षा प्रति तुम आश्वस्त रहो। इतनी बात होने के बाद सुमन अपने घर चली गई। लगभग पौन घंटे बाद सुमन हमारे पास वापिस आई और उसके पीछे-पीछे उसकी मां। सुमन ने मुझसे कहा ’दीदी मैं ये काम नहीं छोड़ सकती मुझे दिसम्बर में भाई की शादी करनी है’ ( इस समुदाय में बेटे की शादी करने के लिए लड़की वालों को पैसा दे कर बहू लानी होती है पिता कोई काम नहीं करते हैं इसलिए शादी की जिम्मेदारी लड़कियों की ही होती है जो कि देह व्यापार का काम कर के पैसा घर में देती हैं घर चलाने का यही एक जरिया होता है। बहनें भाईयों की शादियां करती हैं इसलिए भाईयों की बेटियां फिर पूरे परिवार दादी, बुआ सहित पूरे परिवार का खर्चा उठाती हैं। बुआओं की अपनी भतीजियों से अपेक्षा होती है कि हमने तेरे बाप को पाला, शादी की, अब मैं बूढ़ी हॅू प- तू तेरे परिवार के साथ मेरा भी खर्चा उठा अब मेरे पास ग्राहक नहीं आते। मैं उससे थोड़ी बात करना चाहती थी परन्तु उसकी मां के सामने मैं और वो हम दोनों ही खुल कर बात नहीं कर सके। थोड़ी देर के बाद मैंने उसके पिताजी को बुलवाया और उनसे बात की। उसके पिताजी मेरी ’हां’ में ’हां’ मिलाते रहे। और घर जा कर बहुत गुस्से में सुमन से बोले ’जा वो मैडम तुझे नौकरी दे रही है’।

        15-20 दिनों के बाद मैं फिर वहां गई तो पता चला कि पिछले कुछ दिनों से सुमन नशे की गोलियां ले रही है जिससे उसके पास कोई ग्राहक नहीं आए और ऐसा करने पर उसके पिताजी जबरदस्त डंडे से पिटाई कर रहे हैं उसके घर जाने और सुमन के बारे मे पूछने पर हमारी कार्यकर्ता को उसके पिता व बुआ ने डॉटते हुए कहा जाओ कह दो सबसे “इसको हम मारते हैं नशा करेगी तो मारेंगे ही”। शरीर बेच-बेच कर दिसम्बर में भाई की शादी करने वाली सुमन ने सितम्बर में ही नशे और नींद की गोलियां ज्यादा मात्र में खा कर आत्महत्या कर ली।

अनुपमा तिवाड़ी 

कवियित्री, सामाजिक कार्यकर्ता
एम ए ( हिन्दी व समाजशास्त्र ) तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक।
पिछले 24 वर्षों से शिक्षा व सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली संस्थाओं में कार्य रही हैं। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन राजस्थान में संदर्भ व्यक्ति के रूप में कार्यरत।
देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनेक कवितायें व कहानियाँ प्रकाशित। प्रथम कविता संग्रह "आईना भीगता है" प्रकाशित ।
जयपुर, राजस्थान .... ईमेल: anupamatiwari91@gmail.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

गलत
आपकी सदस्यता सफल हो गई है.

शब्दांकन को अपनी ईमेल / व्हाट्सऐप पर पढ़ने के लिए जुड़ें 

The WHATSAPP field must contain between 6 and 19 digits and include the country code without using +/0 (e.g. 1xxxxxxxxxx for the United States)
?