आखिर कब तक ?
मनमोहन कसाना
मैं तब लगभग सात साल का था। एक मासूम बालक जो सिर्फ स्कूल से आकर मां की गोद में दुबक कर बैठता और फिर मास्टर का दिया काम करके खेलता और थक कर सो जाता। लेकिन तब मेरे पर इल्जाम था ‘‘गौ हत्या’’ का। ये इल्जाम ही नहीं रहा बल्कि इसे धेाने के लिए मुझे गंगा नहाने जाना पडा। बात यह थी- उस दिन हरियाली तीज थी नहीं.....नहीं... मुख्य बात तो उससे पहले की है मैं एक अन्य लडका दोनों हमारे कुए के खेतों में चर रही गायों को भगाने गये थे। वहां पर जाकर हमने गाय को भगा दीया। वो गाय धीरा भंगी की थी। हमने लट्ठ दिखाया मात्र था उसे और वो भाग गई क्योकि वो आदतन थी। लेकिन अचानक 10 दिन बाद गाय बीमार हो गई। वो भूख के कारण बीमार पड गई थी ... और वो 5-7 दिन भूखी ही पडी रही। एक दिन मैं रास्ते में आ रहा था तो अपने घर के ओटा पे बैठे विशन ने मेरे उपर जुमला कसा ‘‘अब देखेंगे या पटेल कू , जब या चीकला पै या हत्याय रख देगें ’’हा....हा.....हा करके वो और उसकी घरवाली हंस पडे। मैं कुछ समझा नहीं लेकिन सब कुछ झेलकर घर आ गया। और फिर ठीक हरयाली तीज से तीन दिन पहले वह गाय मर गई।
पूरे के पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि पटैल के नाती ने गाय मार दई। और इसका प्रचार कर रहे थे विशन, मोजी, भेंडा और सुरेश...... न जाने क्यों? मेरा मासुम दिल तो यही सोच रहा था कि मेरे घर वाले बडे हैं गांव में इस झूठ को सावित कर देंगें। ....पुरै के पूरै गांव में हल्ला मच गया। सभी तरफ इसके चर्चे होने लगे। मैं था अपनी मस्ती में बडे घर का जो खुद को समझता था। तब एक दिन मेरे पापा ने भंगी से जाकर पूछा तो वह बोला ‘‘पटैल जी! ऐसो नाय मैनें तो काउ ते न कई’’ उस दिन मैं घर ही था स्कूल जाना बंद कर दिया था क्योकि वहां जयसिंह जैसे मुझे खिजाते थे। यह हरियाली तीज से एक दिन पहले की बात है ।तब मेरे एक काका ने मुझे सूंघ कर कहा ‘‘ अरर.... या छोरा में ते तो बूकंद मार रईयअ बुरी बास आरईअ हत्या उछल आई।’’ मेरी मां खून का घूट पी कर रह गई मैं तो ठहरा नादान बोल उठा ‘‘जीजी! कहां उछर रई अ’’ कहकर उसकी धेाती के पल्ले में मुहं झुपा लिया। कर भी क्या सकते थे हम आखिर अपने ही तो थे जो ऐसा कह रहे थे। उसी दिन शाम को पंचायत जुडी और पंचायत में सभी के सामने भंगी की बहु हरवती ने हाथ जोडकर कहा ‘‘ पटलौ! मेरी गाय तौ भूखी मरीईअ इन बालक के हाथन ते का मरेगी उ बडी और ये छोटे! लट्ठते मरती तो वाई टैम मर जाती 10 दिना में निई’’ ....... पंचायत में खुसर-पुसर होने लगी। तब उसमें से वो सभी जो विशन के साथ थे वो खडे हो के चले गये। और मैं सहम कर घर भाग के मेरी मां की गोद में दुबक के बैठ गया क्योंकि वो ही जगह थी जहां मुझे दिलासा मिलती थी। उस नासमझ होते हुए भी लगा कि कल का सूरज मेरी जिन्दगी बदलेगा। और ऐसा ही हुआ। उसी रात को विशन,मोजी,सुरेश और भेंडा सब मिलके धीरा भंगी जो आदतन शराबी था उसके लिए पानी की बाल्टी में दारु की थैली रख के ले गये थे। उस चांडाल चौकडी ने दारु की ऐसी नदी बहाई कि मेरी जिन्दगी के साथ-2 एक और की भी जिन्दगी बह गई और मैं बन हत्यारा। सुबह-2 जब मैं खेलकर आ रहा था तो हमारे ही काका हरगिलास ने (जो कि पार्टीबाजी में ज्यादा ही रुची रखता था) कहा ‘‘अरे! ओ कपूत! हत्यारे! यहां आ हरामजादे ......’’ मैं ये तमगा आज तक नहीं भूला। लेकिन फिर चुप रह गया। सुबह आज फिर उन्हीं आदमियों ने पंचायत जोडी और कहा ‘‘ भाई तम इन हत्यारेन ने गंगाजी नबाबे नहीं लै जायेंगे तो हम तारी पार्टी मेंते चले जायेंगं।’’ और उनके इतना कहते ही हमारे ही और कुटम वाले खडे होकर कहने लगे ‘‘चलौ ई सईयै लाऔ गडूआ डोरा’’ उस समय मेरी बनियान खेलने की बजह से गंदी हो रही थी। और वो मुझे ले जाने लगे मैं पहली बार चिल्लया ‘‘भाई मोपे तौ डण्डाउ नाऔ’’लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी। वो हंसने लगे। और मै रोने लगा .... मैं मेेरें पापाते कउगौ। उनकी हांसी ने साबित कर दिया कि हमने गाय मारी है।
मेरे पापा कारतूस लेने गये। लेकिन जब वो वापस आये तो मम्मी ने मना कर दीया। और कहा ‘‘नही! हम कहूं ना जावें याही रहेगै इनकी छाती पैई ..’’ तब मेरी मासूम कातर निगाहें उनकी तरफ झांक कर पूछ रही थी कि ‘’आखिर कब तक?’’
इसके बाद जब मैं स्कूल जाता तो गंजी टांट के कारण टोपा पहन कर जाता जो एक लडका जिसका नाम जयसिंह था वह भरी किलास में कहता ‘‘ओ हत्यारे इतै आ!’’ मैं हमेशा चुप रहता क्योंकि कहूं किससे घर वाले जिन्हाने पार्टी की खातिर यह सब किया। घर वालों को पार्टी चाहिऐ थी। लेकिन समय कभी ठहरता नहीं है। कुछ दिनों के बाद गांव के ही शिवराम ने एक चमार के रिश्तेदार को अपने ही घर में मार दिया। यह खबर भी फैली लेकिन दुबका चोरी। उससे किसी ने नहीं कहा गंगा नहाने की। इतना भेदभाव मैं जब भी यह सुनता सिर्फ मेरी आखें पूछती ‘‘आखिर कब तक?’’क्या यही इंसाफ है भगवान का। तब मेरी मां कहती ‘‘बेटा! उपर वारौ सबन कू देखे .....यहां नीतौ वहां सजा देवे।’’ और मैं आज भी उस वहां के इंतजार में हूं!
एक बरस के बाद हरियाली तीज के एक दिन पहले विशन ने मुझसे पूछा ‘‘छोरा! कल का बनायेंगे?’’ ...... मैने कहा ... पतौ का!.....और मार ले.....गाय... मार ले. मैं भी आखिर कब तक सुनता मै भी बोल उठा ‘‘खा तू गंगा की कसम ! तैंने मारतो देखेा।’’ ..... तो वह हंसते हुऐ बोला ....नां ..ना कतई नाए, फिरउ तू तौ गंगा नहाई दीयो।’’ मैं हर वक्त खामोश रहता। लेकिन अब खामोशी टूट गई थी। मैं चिल्लाते हुऐ बोला ‘‘तेने झूटी गंगा उठाई होगी तो भगवान तापेउ गाय मरवा देगो।’’ मैं कह गया यह सब वो भी सिर्फ बाल हट में। वह इसके बाद हंसता रहा और कहता रहा कहां अ भगवान तैने देखैा।
लेकिन भगवान है। उसी रात को कईयों विशन को अपने रंजका मे ते चर रही गाय कू डण्डान तै मारते देखा। लेकिन सुबह वह गाय वहीं पडी मिली फर्क सिर्फ इतना सा था कि उसके मुहं में करंट की टूटी हुई डोरी लगी मिली। लेकिन हाय री किस्मत। उस दिन मेरी बेवजह फूटी थी और आज विशन की .....! क्योकि जिस करंट का बहाना बनाने की वो सोच रहा था वह रात भर से तब तक नहीं आई। अबके वार मैने सभी से कहा तो मेरे काकाश्री ने मुझे फटकारते हुऐ कहा चुप रह! सबननें आप जैसोई समझे ..उ तो करंट ते मरी अ। पहले वो हंसे थे अवकी बार बारी मेरी थी मेरे साथ लगभग दस और हंसे थे। वो सब यक कह कर हंसे थे ‘‘हरगिलास! काल ते करंटई ना आयौ और बिना करंट ते कैसे मर गई ई वैसेउ करंट वारी डोरी तो लट्ठा में लटक रईअ।’’ फिर मैने कहा ‘‘ठीक है काका! फिरउ मै कोईते ना कउगौ भाई तमकू तौ पार्टी चईये।’’और मै हंसते हुऐ चलते-2 विशन से कहने लगा कै भाई कैसी रही है कै नाय भगवान। तभी वहां खडे हरगिलास काका ने कहा ‘‘चुप रह वालैंडी! च्कर-2 कर रैय।’’ तभी तिघरिया वालेन की औरत मरघट की तरफ से आती हुई बोली ‘‘हरगिलास कालते करंटई ना आयौ फिर काई ते मर गई ई बिचारी! अरर... याकै तो शरीर पै लट्ठन के निशान पड रैं मेरे राम ई का है रौ गांव में। ’’ इतना कह क रवह मुहं मटकाती हुई चली गई। और विशन हरगिलास काका के साथ हुक्का पीने लग गया।
और मैं घर की तरफ आते-2 वही सोच रहा था ‘‘आखिर कब तक ?’’ ये झूठों की महफिल। और आज फिर जब मेरी उम्र 20 साल है तब भी एक चमार की छोरी की कुर्ती फीड दी एक लडके ने तब भी मेरे गांव के पंच उसके बाप से कह रहे हैं कि ‘‘तू भी जबान छोरीय घर राखे !’’
आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला 2012-20-30 या आगे तक?
मनमोहन कसाना
गांव- भौंडागांव, पोस्ट- जगजीवनपुर
तहसील- वैर, जिला- भरतपुर राजस्थान 321408
फोन- 09672281281,
ईमेल manmohan.kasana@gmail.com
4 टिप्पणियाँ
रोचक कहानी, कभी कभी झूठ से लदे होने की कसमसाहट में जीवन अपना क्रम भूलने लगता है।
जवाब देंहटाएंaap sabi logo ka shukriya or me ummed karta hu aap log mujhe mera lrkhan sudharne me samay par ri dete rahenge
जवाब देंहटाएंbahut achhi kahani hai ye ....
जवाब देंहटाएं❤❤❤❤❤
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