उन लोगों ने अपने टाइटैनिक का कितना ढिंढोरा पीटा
और एक हम हैं...”
और एक हम हैं...”
शनिवार 8 फरवरी की शाम, दिल्ली के प्रसिद्ध कला केन्द्र अक्षरा थिएटर में लेखक रामू रामानाथन के अग्रेज़ी नाटक ‘3 सकीना मंज़िल’ का मंचन हुआ जिसका । दीपक धमीजा निर्देशित ‘3 सकीना मंज़िल’ का दर्शकों ने पूरी तरह भरे थिएटर में भरपूर आनंद उठाया। करीब दो घंटे लंबे नाटक की पटकथा की सशक्तता का अंदाजा लगाने के लिये इतना कहना काफी होगा कि नाटक में दो ही पात्र हैं और पता ही नहीं लगता कि दो घंटे कब बीत गये।
3 सकीना मंज़िल, विभाजन के पहले के उस समय की कहानी है जब, देश अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था, दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध से तबाह हो रही थी, और हिन्दी फिल्म उद्योग अपने पैरों पर खड़ा होना सीख रहा था। इस सब के बीच, 3 सकीना मंज़िल, बंबई की एक पुरानी इमारत में, दो मौन प्रेमियों की प्रेम कहानी जन्म लेती है. समय का चक्र उन्हें जुदा तो करता है लेकिन पाँच दशकों के उनके रास्ते एक बार फ़िर आपस में मिलते हैं।
संगीत का बखूब प्रयोग किया गया है, प्रेमी युगल नायक “तरुन सिंघल” और नायिका “पुनीत सिक्का” ने बेहतरीन अभिनय किया है। एक ही समय में 1944 और पाँच दशक बाद के वक्त में, आने-जाने का अभिनय दोनो कलाकारों ने बड़ी कुशलतापूर्वक निभाया है। नाटक में “बॉम्बे डॉक्स एक्सप्लोसन” पर कई सवाल उठाये गये है जिनमे से एक ये है - जहाज में 130 सोने के सिल्लियाँ लदी थीं, जिनमे से सिर्फ़ 43 ही मिलीं, वो भी कोई तीन साल बाद, बाकियों के ना मिलने का अर्थ यही हुआ कि आज भी 83 करोंड़पति ऐसे है, जिनके बारे में कुछ नहीं पता।
हाँ और एक बात नाटक में एक सच यों आता है “देखो , उन लोगों ने अपने टाइटैनिक का कितना ढिंढोरा पीटा। और एक हम हैं...” सनद रहे कि टाइटैनिक का डूबना (1912) और बॉम्बे डॉक्स का एक्सप्लोसन (1944) दोनों ही 14 अप्रैल को हुये हैं।
1 टिप्पणियाँ
यह घटना ज्ञात नहीं थी।
जवाब देंहटाएं