चौं रे चम्पू, 'थाई पुण्यवी की अल्पना' —अशोक चक्रधर | Choun re Champoo - Ashok Chakradhar


चौं रे चम्पू 

थाई पुण्यवी की अल्पना  

—अशोक चक्रधर

—चौं रे चम्पू! कब लौटि कै आयौ बैंकाक ते?

—कल रात ही लौटा हूं। तीन दिन पहले वहां एक कविसम्मेलन था। दिव्य हुआ। श्रोता चार घंटे हिले नहीं। लतीफ़ाविहीन शुद्ध उमंग-तरंग का कविसम्मेलन। मेरे साथ पवन दीक्षित, तेज नारायन तेज और मधुमोहिनी उपाध्याय ने ख़ूब रंग जमाया। आयोजक सुशील धानुका और प्रदीप सिंहल प्रसन्न थे। कुछ श्रोता जिन्हें पिछले सात-आठ बरस में हास्य कविसम्मेलन के नाम पर लतीफ़े सुनने की आदत पड़ गई है वे ज़रूर थोड़े निराश हुए होंगे।

—तौ तुम चारों कल्ली लौटे औ का?

—नहीं! वे तीनों तो अगले ही दिन लौट गए थे। मैं गया बैंकाक शहर से लगभग तीस किलोमीटर दूर शिल्पाकोर्न विश्वविद्यालय। वहां ‘द्क्षिणपूर्व एशियाई देशों में हिंदी भाषा एवं साहित्य के विविध रूप’ विषय पर दो दिन की अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी संगोष्ठी होनी थी। एक दिन पहले ही पहुंच गया था। 

—तैंनैं बैंकाक की रातन की रंगीनी नायं देखी?

—अरे चचा बीस-पच्चीस साल पहले सपत्नीक गया था। देह-व्यापार देख कर बड़ी वितृष्णा सी हुई थी। पुराने क़िस्से फिर कभी, अभी शिल्पाकोर्न विश्वविद्यालय की सुनो। संगोष्ठी के स्थानीय संयोजक संस्कृत के आचार्य डॉ. केदार नाथ शर्मा थे। सीधे सरल स्वभाव के बिंदास विद्वान। विश्वविद्यालय के संस्कृत अध्ययन केंन्द्र में पिछले तीन साल से संस्कृत और पालि पढ़ा रहे हैं। उन्होंने देखा कि संस्कृत और पालि भाषा में नए विद्यार्थियों की रुचि कम हो रही है क्योंकि वे अब अपने भारत-प्रेम में हिंदी सीखना चाहते है। केदार जी अनौपचारिक रूप में, अलग से, हिंदी की कक्षाएं भी लेने लगे। फिर उनके मन में विचार आया कि क्यों न अपने विभाग में हिंदी को औपचारिक रूप से पढ़ाना प्रारंभ कराएं। विश्वविद्यालय परिषद के अध्य़क्ष प्रो. खुन्यिंग खैस्री स्री अरून और अन्य अधिकारियों ने सहमति दे दी। हमारे यहां की तरह तो था नहीं कि शिक्षा का एक टापू बन गया तो वह किसी अन्य द्वीप से मिल ही नहीं सकता। बहरहाल, परिणाम अच्छा निकला। तीन साल पहले चार-पांच विद्यार्थी थे अब लगभग डेढ़ सौ हो गए हैं। हमारा विदेश मंत्रालय और यहां का भारतीय दूतावास भी उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है। विदेश मंत्रालय की उपसचिव हिंदी, डॉ. सुनीति शर्मा भारत से खूब सारी पुस्तकें ले आईं। थाईलैंड में भारत के राजदूत श्री हर्षवर्धन शृंगला, हैं तो नॉर्थ ईस्ट के पर हिंदी में गहरी रुचि रखते हैं। अगले दिन संगोष्ठी के उद्घाटन के लिए आए थे।

—एक दिना पैलै जाय कै का कियौ जे बता।

—आपकी दिलचस्पी संगोष्ठी में नहीं है चचा। वहां अगले दिन के लिए तैयारी करते बच्चों को देखा। बी.ए. की एक छात्रा रंगीन बुरादों से अल्पना बना रही थी। एक दीपक की लौ के ऊपर एक मोरपंख था। मैं बोला, अरे ये मोरपंख जल जाएगा। वह हिंदी में निष्णात नहीं थी। उसने कोई उत्तर नहीं दिया पर अपने आईफोन पर अल्पना की एक सम्पूर्ण डिज़ाइन दिखाई, जिसमें दीप के चारों ओर लगभग पंद्रह मोरपंख थे। डिज़ाइन देख कर यह भय जाता रहा कि मोरपंख जल जाएगा। भाषा की चार दक्षताओं, सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना में से वह सुनकर समझना सीख गई थी। यानी, मेरा प्रश्न समझ गई थी। मैंने उसे ‘अल्पना’ और ‘रंगोली’ दो शब्द बोलने सिखाए। नाम पूछा, उसने बताया, पुण्यवी सोंग्सर्म। वाह, पुण्यवी कितना अच्छा नाम है। अगले दिन मैंने देखा कि उसके पुण्य-कार्य के साथ बड़ा अन्याय हुआ।

—का भयौ?

—अगले दिन मैंने देखा कि पुण्यवी की रंगोली पूरी हो चुकी थी। शानदार कलाकृति! ऐसा लगता था मानो वह अल्पना फ़र्श के पत्थर का ही एक हिस्सा हो। थोड़ी देर बाद आशियान देशों से आए हुए प्रतिभागी बेध्यानी में अल्पना को रौंदते हुए चले गए। पुण्यवी तो वहां नहीं थी लेकिन उसकी छात्रा मित्रों की आंखों में आंसू आ गए। छात्र भी गुमसुम से थे। ज़ाहिर है पुण्यवी ने कई घंटे मेहनत की होगी। मुझे भी काफ़ी दुख हुआ। ’थाईलैंड हिंदी परिषद’ के अध्यक्ष, अपने पुराने मित्र सुशील धानुका भी दुखी हुए। हम संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में चले गए। सत्र के बाद बाहर निकले तो देखा कि रंगोली सबने मिलकर ठीक कर दी है और उसके चारों ओर सुरक्षा के लिए गमले रखे हुए हैं। सच चचा, बड़ी राहत मिली। 

—तू पहले दिना की और बातन्नै बता!

—मैं समझ गया चचा, तुम्हारी दिलचस्पी, संगोष्ठी में नहीं है। 


एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
थोड़ा-सा सुख - अनामिका अनु की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025