Header Ads Widget

एक चुनाव और क़िस्मत की दो चाबियाँ! - क़मर वहीद नक़वी | Qamar Waheed Naqvi on Election 2014

नारे विकास के हों, सपने भविष्य के हों, बातें सुशासन की हों, दावे कड़क कप्तानी के हों, तेवर टनाटन ओज के हों, और टीका हिन्दुत्व का हो, तो फिर और क्या चाहिए?  


बहुत बाजा-गाजा है. बहुत धूम-धड़ाका है. बहुत शोर है. कानफाड़ू ज़हरीला शोर! मौसम आम के पेड़ों पर बौर आने का है, लेकिन इस बार इस आम चुनाव में सब बौरा रहे हैं! वही हो रहा है, जो नहीं होना चाहिए! वैसे जो हो रहा है, वह न होता तो शायद बड़ी हैरानी होती! ऐसा होगा, ऐसी धकपुक तो महीनों पहले से लगी थी! आख़िर यह कोई मामूली चुनाव नहीं है. यह बीस चौदह का चुनाव है! ऐसा चुनाव जो शायद फिर कभी न आये! नमो के लिए भी और आरएसएस के लिए भी! अजीब बात है. एक चुनाव है, क़िस्मत की दो चाबियाँ हैं! एक नमो के लिए, एक आरएसएस के लिए! निरंकुश आत्मसत्ता के सिंहासन पर आरूढ़, आकंठ आत्ममद में मदहोश, एक आत्मकेन्द्रित, आत्ममुग्ध व्यक्ति की चरम महत्त्वाकांक्षाएँ इस चुनाव में दाँव पर हैं! नमो आ सके तो आ गये, वरना फिर उनके लिए दोबारा कोई दरवाज़ा नहीं खुलेगा! और उधर दूसरी तरफ़ है, एक षड्यंत्रकारी सनक, एक पुरातनपंथी, फासीवादी विचारधारा, हिन्दू राष्ट्र की कार्ययोजना! आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी लगता है कि 1998-99 के बाद शायद यह दूसरा सुनहरा अवसर है, जो उसे दिल्ली की गद्दी पर क़ाबिज़ करा सकता है और वह हिन्दू राष्ट्र के अपने सपने को फिर कुछ नयी साँसें दे सकता है! संघ को लगता है कि इस बार तो नमो रथ की सवारी उसके मनोरथ को दिल्ली में मज़बूती से स्थापित कर सकती है! अबकी बार मोदी सरकार बन गयी तो हिन्दू राष्ट्र ज़्यादा दूर नहीं!

सब कुछ सामने है. दिख रहा है. लेकिन नहीं भी दिख रहा है! जब कुछ असुविधाजनक न देखना हो या डर के मारे कोई कुछ न देखना चाहे, तो आँखें बन्द कर लेना सबसे सुविधाजनक रास्ता होता है! 

          और अब जो हो रहा है, उसमें कुछ भी छिपा हुआ नहीं है! सब कुछ सामने है. दिख रहा है. लेकिन नहीं भी दिख रहा है! जब कुछ असुविधाजनक न देखना हो या डर के मारे कोई कुछ न देखना चाहे, तो आँखें बन्द कर लेना सबसे सुविधाजनक रास्ता होता है! कभी-कभी मदहोशी में, बेहोशी में, बौरायी हुई हालत में भी आँखें नहीं खुलतीं. कभी-कभी भक्ति में, तल्लीनता में, प्रेम के आनन्द में भी अकसर आँखें नहीं खुलतीं! और कभी-कभी तो तन्मयता की ऐसी स्थिति आती है कि आँखें खुली हों, तब भी कुछ नहीं दिखता. आदमी सोचता है, महसूस करता है कि वह सब देख रहा है, लेकिन आँखें कहीं और देख रही होती हैं और वह नहीं दिख पाता जो दिखना चाहिए था! सो बहुतेरी ऐसी स्थितियाँ हैं, जब जागती-खुली-सी लगनेवाली आँखें या तो सो जाती हैं या वे अपनी कल्पना के सुहाने दृश्य गढ़ कर आदमी के दिल-दिमाग़ को बहकाये रखती हैं!

          संघ प्रमुख मोहन भागवत को कभी आपने ध्यान से सुना है? आइए हम बताते हैं कि हिन्दू-मुसलिम सम्बन्धों के बारे में भागवत क्या कहते हैं? उनका कहना है, “आपस में इस लड़ाई को लड़ते-लड़ते ही भारत के हिंदू -मुसलमान साथ रहने का कोई ना कोई तरीका अवश्य ढूंढ लेंगे और वह तरीका हिंदू तरीका होगा.” अब भी आपको कोई शक है कि संघ का इरादा क्या है? यानी मुसलमान अगर भारत में हिन्दुओं के साथ ‘चैन’ से रह सकते हैं तो वे ‘हिन्दू तरीक़े’ से ही रह सकते हैं! यही नहीं, पिछले ही साल का भागवत का एक और भाषण है, जिसमें वह दावे के साथ कहते हैं कि भारत में हिन्दू राष्ट्र का सपना शायद अगले तीस बरसों में पूरा हो जायेगा. बहुत देर लगी तो ज़्यादा से ज़्यादा पचास साल में हिन्दू राष्ट्र के ‘परम वैभव’ को प्राप्त कर लिया जायेगा! वह कहते हैं कि यह गणितीय जोड़-घटाव है, कोरी कल्पना नहीं और इतने समय में यह लक्ष्य हासिल कर ही लिया जायेगा!

          हिन्दू राष्ट्र को लेकर संघ आज से पहले इतनी उम्मीद से कभी नहीं दिखा! वजह बिलकुल साफ़ है. संघ को लगता है कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के उसके बुनियादी एजेंडे के लिए इससे अधिक अनुकूल राजनीतिक स्थितियाँ शायद ही कभी मिल सकें. परम्परागत तौर पर पाँच प्रमुख राजनीतिक धाराएँ इस देश की राजनीति को प्रभावित करती रही हैं. काँग्रेस, समाजवाद,  साम्यवाद, दलित राजनीति और हिन्दुत्व की धारा. आज भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, लुँजपुँज शासन, ख़राब अर्थव्यवस्था और नेतृत्व के असमंजस से लस्त-पस्त पड़ी काँग्रेस जनता में अपनी विश्वसनीयताऔर प्रासंगिकता वापस पाने के लिए जूझ रही है, हिन्दुत्व की धुर विरोधी दो और राजनीतिक विचारधाराएँ समाजवाद और साम्यवाद खंड-खंड विखंडित हो कर मृत्यु शैय्या पर हैं, देश के तमाम राज्यों में एक-एक नेता वाली तमाम छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियाँ सत्ता भोग रही हैं और संघ आज नहीं तो कल उन्हें आसानी से निगल सकता है, दलित राजनीति भी बसपा के एक टापू के तौर पर केवल उत्तरप्रदेश में ही सिमट कर रह गयी है और वह भी पूरी तरह सिर्फ़ मायावती के सहारे साँसें ले रही है. मायावती के बाद वहाँ भी कोई नहीं है! ऐसे में जो भी बचा, सिर्फ़ संघ ही बचा! तो अगर यह चुनाव किसी तरह भी जीत लिया जाये, और अगर काँग्रेस दोबारा न उठ खड़ी हो पाये तो आगे संघ को दूर-दूर तक कोई बाधा नहीं दिखती!

          मानना पड़ेगा कि संघ अपने राजनीतिक आकलन में बिलकुल भी ग़लत नहीं है. इसीलिए उसने मोदी पर दाँव लगाया है. इसीलिए धर्मनगरी काशी से मोदी को युद्ध में उतारा गया है. कहा जाये या न कहा जाये, बोला जाये या न बोला जाये, लोग इसे ‘धर्मयुद्ध’ समझेंगे ही! नारे विकास के हों, सपने भविष्य के हों, बातें सुशासन की हों, दावे कड़क कप्तानी के हों, तेवर टनाटन ओज के हों, और टीका हिन्दुत्व का हो, तो फिर और क्या चाहिए? और अब जब मोदी को रोकने की जुगत में टुकड़े-टुकड़े बँटी सेकुलर ताक़तें मुसलिम वोट बैंक को लूटने के लिए तरह-तरह के पैंतरे खेल रही हैं, उससे वह संघ के ही काम को आसान कर रही हैं. आख़िर मोदी ने जानवरों के माँस निर्यात की ‘गुलाबी क्रान्ति’ को गोहत्या से जोड़ कर हिन्दुत्व कार्ड खेल ही दिया. चुनाव में तनाव बढ़ रहा है. हिन्दू-मुसलिम ध्रुवीकरण का बारूद तैयार हो रहा है!

          अभी कोबरापोस्ट ने एक बड़ा स्टिंग आपरेशन कर दावा किया कि बाबरी मसजिद अचानक भारी भीड़ के उन्माद से नहीं ढही थी, बल्कि इसके लिए लम्बी तैयारी की गयी थी, कारसेवकों को अलग-अलग काम के लिए महीनों पहले से गहन ट्रेनिंग दी गयी थी और यह संघ की पूर्व नियोजित कार्रवाई थी! दावा यह भी किया गया कि उस समय के काँग्रेसी प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव को भी इसकी पूर्व जानकारी थी! वैसे इसमें हैरानी की कोई बात नहीं. संघ ख़ुद ही दावा करता है कि हर पार्टी में, यहाँ तक कि साम्यवादियों में भी उसके कार्यकर्ता घुसे पड़े हैं!

          ज़ाहिर है कि संघ को अब मंज़िल बहुत निकट दिख रही है. और अगर इस चुनाव में संघ की कार्ययोजना के मुताबिक़ नतीजे आ गये तो विकास धुन गाते-गाते लोग मोहन भागवत की भविष्यवाणी के कुछ क़दम और क़रीब पहुँच जायेंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं!

(लोकमत समाचार, 5 अप्रैल 2014)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’? — सिंधुवासिनी
कहानी — नदी गाँव और घर  — स्वप्निल श्रीवास्तव kahani nadi gaanv aur ghar swapnil srivastava
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy