
राजस्थान पत्रिका से सेवानिवृत्त मुख्य उपसंपादक सुश्री चम्पा शर्मा अब स्वतंत्र लेखन करती हैं। 1985 से 2008 तक 'दीदी की चिट्ठी’ स्तंभ (राजस्थान पत्रिका) लिखने वाली चम्पाजी ने कैलगरी के शताब्दी वर्ष के दौरान 1975 में कनाडा और अमरीका में कथक और राजस्थानी नृत्य भी प्रस्तुत किया है। 29 मई 1950 में जन्मीं चम्पाजी राजस्थान विश्वविद्यालय से दर्शनशा में एम.ए. हैं।
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रावण बाबा नम:
कुछ लोग श्रद्धा से रावण की पूजा करते हैं।
वाल्मीकि ने भी उसे चारों वेदों का ज्ञाता माना है। उन्होंनेे यह भी लिखा है - अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।। यानी रावण को देखते ही राम मुज्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि वह रूप, सौंदर्य, धैर्य, कांति तथा सभी लक्षणों से युक्त है।’
मध्य भारत का एक गांव-रावणग्राम।
विदिशा जिले के इस छोटे-से गांव में दशहरे के दिन का नजारा देखकर आप हैरान रह जाएंगे। यहां रावण रामायण महाकाव्य का खलनायक नहीं है। वह भक्तों का आराध्य है। वे उन्हें श्रद्धा से बाबा कहते हैं और ‘रावण बाबा नम:’ का जाप करते हुए उनकी आराधना करते हैं। रावणराज मंदिर में लेटी मुद्रा में रावण की एक बहुत ही प्राचीन प्रतिमा है। खुद को रावण का वंशज बताने वाले यहां के कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का मानना है कि रावण एक विद्वान ब्राह्मण था। उनमें कुछ ऐसे विलक्षण गुण थे, जो किसी के लिए भी प्रेरक हो सकते हैं। इसलिए उनका पुतला जलाना उचित नहीं है। इसी भावना से खीर-पूड़ी का भोग लगाकर वे रावण की पूजा करते हैं।
विदिशा जिले के इस छोटे-से गांव में दशहरे के दिन का नजारा देखकर आप हैरान रह जाएंगे। यहां रावण रामायण महाकाव्य का खलनायक नहीं है। वह भक्तों का आराध्य है। वे उन्हें श्रद्धा से बाबा कहते हैं और ‘रावण बाबा नम:’ का जाप करते हुए उनकी आराधना करते हैं। रावणराज मंदिर में लेटी मुद्रा में रावण की एक बहुत ही प्राचीन प्रतिमा है। खुद को रावण का वंशज बताने वाले यहां के कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का मानना है कि रावण एक विद्वान ब्राह्मण था। उनमें कुछ ऐसे विलक्षण गुण थे, जो किसी के लिए भी प्रेरक हो सकते हैं। इसलिए उनका पुतला जलाना उचित नहीं है। इसी भावना से खीर-पूड़ी का भोग लगाकर वे रावण की पूजा करते हैं।
वैसे तो दशहरे के दिन अधिकांश जगहों पर रावण का पुतला जलाया जाता है, लेकिन रावणग्राम के अलावा भी कुछ स्थान ऐसे हैं, जहां रावण के मंदिर हैं और लोग उनकी श्रद्धा से पूजा करते हैं। नेपाल, इंडोनेशिया, थाइलैंड, कंबोडिया और श्रीलंका के लेखकों ने अपनी रामायण में लिखा है कि रावण में चाहे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। रावण की मां कैकसी राक्षस पुत्री थीं, इसलिए बेटे में अपनी मां के संस्कार आना लाजिमी था। पर ऋषि संतान होने के कारण रावण में अपने पिता विश्रवा के अच्छे संस्कार भी आए। वह अपने पिता की तरह शंकर भगवान का परम भक्त, विद्वान, महातेजस्वी, पराक्रमी और रूपवान था। वाल्मीकि ने भी उसे चारों वेदों का ज्ञाता माना है। उन्होंनेे यह भी लिखा है - अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।। यानी रावण को देखते ही राम मुज्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि वह रूप, सौंदर्य, धैर्य, कांति तथा सभी लक्षणों से युक्त है।’ इसीलिए कुछ लोगों का मानना है कि रावण के गुणों का सम्मान किया जाना चाहिए, उन्हें जलाना ठीक नहीं। रावण को पूजने के मकसद से कुछ स्थानों पर रावण के मंदिर भी बनाए गए।
मध्यप्रदेश के ही एक और जिले मंदसौर के रावण रुंडी क्षेत्र में भी पैंतीस फुट की एक दस सिर वाली रावण की प्रतिमा 2005 में स्थापित की गई थी। हर साल दशहरे के दिन उनकी पूजा करने वाले यहां के नामदेव वैष्णव समाज के लोगों का मानना है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहीं की थीं। इसी भावना से वे रावण को अपना दामाद मानते हैं और औरतें उनसे पर्दा रखती हैं।
राम भक्त बहुल प्रदेश राजस्थान में भी रावण का मंदिर होना मायने रखता है। जोधपुर में देव ब्राह्मणों के काफी परिवार बसे हुए हैं। ये खुद को महर्षि मुद्गल के वंशज बताते हैं। महर्षि मुद्गल महर्षि पुलस्त्य (रावण के दादा) के रिश्तेदार थे। इस नाते उनकी रावण के प्रति श्रद्धा है और उन्होंने यहां रावण का मंदिर बनवाया है। कहते हैं, रावण की पत्नी मंदोदरी मंडोर की थीं। मंडोर जोधपुर की प्राचीन राजधानी थी। वहां एक मंडप बना हुआ है। कहा जाता है कि रावण का मंदोदरी से विवाह यहीं हुआ था। इसे सभी रावणजी की चंवरी कहते हैं। जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र में महादेव अमरनाथ और नवग्रह मंदिर परिसर में रावण की प्रतिमा शिवजी को अर्ध्य देते स्थापित की गई थी, इस भावना से कि लोग उनकी भक्ति को समझें। उनके इस अच्छे पहलू का अनुसरण करें। पुजारी पंडित कमलेश कुमार देव के मुताबिक भक्तगण रोज उनकी पूजा करते हैं और दशहरे के दिन पिंडदान करते हुए उनका श्राद्ध करते हैं।
एक और जगह जहां रावण मुख्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं, वह है कानपुर। लखनऊ का एक संप्रदाय रावण को हिंदू धर्मग्रंथों का विद्वान मानते हुए इस बात पर जोर देता है कि उनकी अच्छी बातों को उजागर किया जाना चाहिए। सैंकड़ों साल पहले, यहां के महाराज शिव शंकर ने कानपुर में रावण का मंदिर बनवाया था। केवल साल में एक बार दशहरे के दिन यह मंदिर खुलता है और सभी संप्रदाय के लोग उन्हें नमन करते हैं। मंदिर की नींव 1868 में रखी गई और इसके कुछ सालों बाद ही रावण की प्रतिमा को स्थापित किया गया। मंदिर की पांचवीं पीढ़ी के पुजारी हरिओम तिवाड़ी के मुताबिक रावण वीर, बुद्धिमान और बहुत ही अच्छा द्रविड़ गौड़ ब्राह्मण राजा था। वीणा बजाने में निपुण रावण सामवेद का समर्थक भी माना जाता है। आयुर्वेद, राजनीति विज्ञान, जादू-टोना और पवित्र ग्रंथों का ज्ञाता रावण ने रावण संहिता की भी रचना की, जो कि फलित ज्योतिष पर एक सशक्त रचना है। इसे काली किताब के नाम से भी जाना जाता है।

-चम्पा शर्मा
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Ravan Mahaa Gyaanee Tha Lekin Ek Apraadh ke Kaaran Usne apne ko narak mein dhakel diyaa .
जवाब देंहटाएंRavan Baba ki jai
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