तीन प्रेम कवितायेँ
राखी सुरेन्द्र कनकने
मुंबई में रहने वाली राखी सुरेन्द्र कनकने का जन्म सन् 1982 को मध्य प्रदेश में स्थित जबलपुर मे हुआ। बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न राखी ने इंजीनियरिंग के साथ-साथ जनसंचार में स्नातकोतर की पढाई की। पत्रकार के तौर पर आपने कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं मगज़ीनो, जिनमे ग्लोबल मूवी और फ़िल्म एंड टी.वी. ट्रेड प्रीव्यू में उप-संपादक के पद पर अपनी सेवाएं प्रदान की। वर्त्तमान में आप में एक मल्टीनेशनल कंपनी के लिए विश्व स्तर पर कारपोरेट कम्युनिकेशन संभल रही हैं।
राखी सुरेन्द्र कनकने के लेखन में स्वाभाविक अभिव्यक्ति, सरलता, बिम्बों एवं प्रतिबिम्बों के साथ-साथ विषयों की गहराई, प्रेम की अनूठी परिकल्पना दिखाई देती है ।
ईमेल: rakhikankane@yahoo.com
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आहट
फिर आई किसी के आने की आहट ...ए दिल देख कोई आया है...
नहीं, ये वो नहीं...
मुसाफ़िर है शायद
वो नहीं आया...
अब तो रात भी खोयी-खोयी सी है...
चाँद का चेहरा मायूस मालूम होता है...
तारों की टिमटिमाहट धुंधली पड़ रही है...
वो दिया भी अब हौले-हौले से शोर कर रहा है...
जैसे कुछ खफा-खफा सा है...
हर सड़क इंतज़ार कर के अब थक चुकी है...
कदमों के निशान भी धुंधले पड़ गए हैं...
चलो, अब वो दिया भी बुझा दो...
और बंद कर दो किवाड़...
वो नहीं आया...
वो नहीं आएगा ...
वो ख़त
अलमारी के सबसे ऊपर वाले हिस्से के ...
उस कोने में कुछ ख़त पड़े हैं...
बरसों से वो इंतज़ार में हैं तुम्हारे ...
तरसते हैं तुम्हारे स्पर्श को ...
जिस गोंद से उन्हें बंद किया था ...
वो अब सूख चुकी है ...
मगर उन ख़तों में आज भी एक उमंग है ...
उमंग तुम्हारे स्पर्श की ...
इस आस में वो अब तक साँस ले रहे हैं ....।
आप आओगे ना?
रात सूनी-सूनी सी लग रही है ...
मैं और चाँद ...
कुछ तारों के संग ...
जाग रहे हैं ...
आपको याद कर रहे हैं ...
चाँद ने वादा किया है ...
रात भर राहें रोशन करेगा ...
और तारों ने पहरेदारी का ज़िम्मा लिया है ...
तो सुनो ...
अब आप चोरी-चुपके जल्दी से मेरे पास आ जाओ ...
आप आओगे ना ...???