निर्मल वर्मा - विनोद भारदवाज संस्मरणनामा

लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, फिल्मकारों की दुर्लभ स्मृतियाँ
संस्मरण 13
कवि, उपन्यासकार, फिल्म और कला समीक्षक विनोद भारदवाज का जन्म लखनऊ में हुआ था और टाइम्स ऑफ़ इंडिया की नौकरी क़े सिलसिले में तत्कालीन बॉम्बे में एक साल ट्रेनिंग क़े बाद उन्होंने दिल्ली में दिनमान और नवभारत टाइम्स में करीब 25 साल नौकरी की और अब दिल्ली में ही फ्रीलांसिंग करते हैं.कला की दुनिया पर उनका बहुचर्चित उपन्यास सेप्पुकु वाणी प्रकाशन से आया था जिसका अंग्रेजी अनुवाद हाल में हार्परकॉलिंस ने प्रकाशित किया है.इस उपन्यास त्रयी का दूसरा हिस्सा सच्चा झूठ भी वाणी से छपने की बाद हार्परकॉलिंस से ही अंग्रेजी में आ रहा है.इस त्रयी क़े तीसरे उपन्यास एक सेक्स मरीज़ का रोगनामचा को वे आजकल लिख रहे हैं.जलता मकान और होशियारपुर इन दो कविता संग्रहों क़े अलावा उनका एक कहानी संग्रह चितेरी और कला और सिनेमा पर कई किताबें छप चुकी हैं.कविता का प्रतिष्ठित भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार क़े अलावा आपको संस्कृति सम्मान भी मिल चुका है.वे हिंदी क़े अकेले फिल्म समीक्षक हैं जो किसी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म जूरी में बुलाये गए.1989 में उन्हें रूस क़े लेनिनग्राद फिल्म समारोह की जूरी में चुना गया था. संस्मरणनामा में विनोद भारद्धाज चर्चित लेखकों,कलाकारों,फिल्मकारों और पत्रकारों क़े संस्मरण एक खास सिनेमाई शैली में लिख रहे हैं.इस शैली में किसी को भी उसके सम्पूर्ण जीवन और कृतित्व को ध्यान में रख कर नहीं याद किया गया है.कुछ बातें,कुछ यादें,कुछ फ्लैशबैक,कुछ रोचक प्रसंग.
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एफ 16 ,प्रेस एन्क्लेव ,साकेत नई दिल्ली 110017
ईमेल:bhardwajvinodk@gmail.com
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तब वे करोल बाग़ के मकान में रहते थे और मेहमानों से छत के छोटे कमरे में मिलना पसंद करते थे. एक चौकी, कुछ किताबें, बड़े भाई राम कुमार की एक छोटी पेंटिंग इस कमरे की पहचान थी. मैं कैसेट रिकॉर्डर ले गया था और मेरे पास मोत्सार्ट की चालीसवीं सिम्फनी का एक कैसेट था. इंटरव्यू से पहले मैंने संगीत लगा दिया. निर्मलजी बोले, कौन सा संगीत है तो मैं चौंका क्योंकि इस सिम्फनी की ओपनिंग दुनिया भर में बहुत लोकप्रिय है. शायद निर्मलजी ने ज्यादा ध्यान से नहीं सुना होगा. बहुत अच्छा इंटरव्यू हुआ, निर्मलजी को भी छपने के बाद बहुत पसंद आया. निर्मलजी ने कहा अब मेरी किताबों की तारीफ होती है, तो मुझे ख़ुशी नहीं होती है और जब बुराई होती है, तो कोई अफ़सोस भी नहीं होता. हिंदी आलोचना की स्थिति दयनीय है.
एक बार मैंने उन्हें बताया की ‘शब्द और स्मृति’ की समीक्षा दिनमान में कर रहा हूँ. वे हंस कर बोले, तब तो तुम्हें मिठाई खिलानी चाहिए. पता नहीं क्या लिख दो. खैर, वे समीक्षा से प्रसन्न हुए. लेकिन जब मैंने उनके उनकी एक किताब की आलोचना कर दी तो चित्रकार स्वामीनाथन की प्रदर्शनी के उद्घाटन की पार्टी में काफी पीने के बाद वे मेरे पास आये और बोले, मुझे तुम जैसे संवेदनशील व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं थी की इतने गैप के बाद आई मेरी किताब पर ख़राब लिखोगे. मैंने कहा, निर्मलजी अगर आप मुझे इतना संवेदनशील मानते हैं तो फिर बहस का कोई मुद्दा नहीं है.
मुझे निर्मलजी की लेखक छवि हमेशा प्रभावित करती थी. वे मुझ पर जब नाराज़ भी होते थे, तो प्यार से. भोपाल का एक किस्सा तो दिलचस्प है. निर्मलजी का गगन गिल से अभी विवाह नहीं हुआ था, पर उनकी मित्रता पुरानी थी. भोपाल आने से पहले गगन एक अधेड़ पाकिस्तानी लेखक के साथ पुस्तक मेले में काफी दिखी थीं. विवाह को ले कर निर्मलजी कोई फैसला नहीं कर पा रहे थे. भोपाल में एक रात पार्टी के बाद सब धुत हालत में बस में बैठ गए ‘पलाश होटल’ आने के लिए. निर्मलजी का मकान रास्ते में था. वे उतर गए. गगन बातें कर रही थी और भी करना चाहती थी. मैं उसके कमरे में देर रात तक उसकी बातें सुनता रहा. दरवाजा खुला था पर रात 3 बजे किसी ने खटखटाया. मैंने देखा, निर्मलजी खड़े थे. वे होटल तक पैदल चल कर रात को आये थे. वे बोले, तुम अभी तक यहीं हो. हाँ, गगन बातें कर रही थी. तो ठीक है, तुम बातें जल्दी से ख़त्म करो और जाओ. मैं बाहर कुर्सी पर बैठा हूँ. मैं कुछ देर तक बिना वजह बातें करता ही रहा. बाहर निकला तो देखा, कोई दूसरी भाषा की लेखिका निर्मलजी से बातों में व्यस्त है. मैंने चुपचाप निर्मलजी से विदा ली.
सारिका वाली बातचीत में निर्मलजी ने जीवनी और आत्मकथा लेखन के बारे में कहा था, हिंदी की जीवनियों में सिर्फ व्यक्ति की मूर्ति पूजा की जाती है, जैसे उसमें कमज़ोरियाँ नहीं रहीं, अंतर्द्वंद्व नहीं रहा. गांधी अपवाद थे जिन्होंने इतने निर्मम ढंग से अपनी सेक्स ज़िन्दगी और उसके ट्रैप्स के बारे में लिखा.
क्या निर्मलजी पर कोई निर्मम हो कर लिख पायेगा? हर महान लेखक के भी ट्रैप्स तो होते ही हैं.
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