दिल्ली से हैदराबाद जाने वाली गाड़ी, “नागपुर” से होकर गुज़रती है ! और “नागपुर” से बड़ी चिंता क्या हो सकती है

बीजेपी में एक बड़ी चिंता ये थी के दलित और मुसलमान लामबंद हो रहा है
— अभिसार
पिक्चर अभी बाकी है दोस्त
कुछ लोगों ने मुझसे पूछा ! प्रधानमंत्री ने गौ-रक्षकों पर इतनी बड़ी बात कह दी! आपने इसपर कोई टिप्पणी नहीं की? कोई ब्लॉग नहीं लिखा ? तो मेरा उनको एक मात्र जवाब होता है । पिक्चर अभी बाकी है दोस्त! अब गौर कीजिये टाउन हॉल में प्रधानमंत्री ने क्या कहा था । उसकी तारीफ मैंने भी की थी । मोदीजी ने साफ़ कहा था के राज्य सरकारों को एक डोसियर तैयार करना चाहिए, ऐसे गौ-रक्षकों पर... और फिर ये भी जोड़ दिया के “सत्तर से अस्सी फीसदी” तथाकथित गौरक्षक ऐसे काम में लगे हैं, जिसकी समाज में कोई जगह नहीं है और अपनी बुराइयों को छुपाने के लिए उन्होंने गौरक्षकों का चोला पहन लिया है। मगर हैदराबाद तक आते आते, अस्सी फीसदी “मुट्ठी भर” में बदल गया । आरएसएस यानी संघ ने भी राहत की सांस ली, क्योंकि संघ को भी टाउन हॉल में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए आंकड़े पर एतराज़ था । यानी सिर्फ 24 घंटों में प्रधानमंत्री का हृदय परिवर्तन हो गया । तो जैसा मैंने कहा पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। उत्तर प्रदेश में चुनावी अभियान के दौरान प्रधानमंत्री माहौल को देखकर इसमें फिर से संशोधन कर सकते हैं । कहानी में अभी ट्विस्ट आना बाक़ी है।क्या एक देश का प्रधानमंत्री इतना बेबस हो गया है के गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले लोगों के सामने अपनी 56 इंच की छाती दिखाकर उसपर गोली दागने की बात करने लगे ?
हैदराबाद में प्रधानमंत्री ने बेहद नाटकीय अंदाज़ में एक बात और कही...
‘वार करना है तो मुझ पर करें, गोली चलानी है तो मुझ पर चलाएं, मेरे दलित भाइयों पर नहीं’
मुझे इस बयान की नाटकीयता से ज्यादा इसमें दिखती विवशता पर एतराज़ है । क्या एक देश का प्रधानमंत्री इतना बेबस हो गया है के गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले लोगों के सामने अपनी 56 इंच की छाती दिखाकर उसपर गोली दागने की बात करने लगे ? गौरक्षा के नाम पर जिन लोगों को ज़लील किया जा रहा है, वो आपसे सुरक्षा की उम्मीद रखते हैं । जिस बेइज्जती से दलितों को गुज़ारना पड़ा है, उसके लिए उन्हें किसी राजनीतिक स्टंट की नहीं, आपके गंभीर आश्वासन की ज़रूरत है । और ये भी बताएं के “अस्सी फीसदी” कैसे “मुट्ठी भर” में तब्दील हो गया और कैसे टाउन हॉल में दिया गया गंभीर बयान अब सीने पे गोली चलाने वाले फिल्मी संवाद में तब्दील हो गया ।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के शब्दों में, “लोग भी बड़े निर्दयी हैं। देश के शक्तिमान छप्पनिया प्रधानमंत्री (56 की छाती वाले) के हैदराबादी आर्तनाद को सुनकर पिलपिले डायलॉगबाज़ क़ादर ख़ान की मिसाल दे रहे हैं। नाशुक़्रे कहीं के। “

ओम थानवी की बातें सत्ता पक्ष से लेकर तमाम भक्तों को पसंद नहीं आती, लिहाज़ा इनके तंज़ को नज़रंदाज़ किया जा सकता है । मगर एक बात मैं चाहकर भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहा । जब बात गोली खाने की हो ही रही है, तो गौरक्षा के नाम पर तो मुसलमान कम ज़लील नहीं हुआ है । कितनों को मौत के घाट उतार दिया गया है, आप इससे वाकिफ होंगे । मैं ये भी जानता हूँ के ये पढ़कर आपमें से कुछ को यह अच्छा नहीं लग रहा होगा... ज़रूर सोच रहे होंगे, कि ये क्या दलित, मुसलमान का रोना रो रहे हो? पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है! लाश सिर्फ लाश होती है। उसके मज़हब की बात क्यों करना । तो मान्यवर ये न भूलें के भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में मृतकों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है । 58 पहुँच चुका है । वाजपेयी की मरहम लगानी वाली नीति तो दूर, जिसका ज़िक्र प्रधानमंत्री मोदी कर चुके हैं, एक बयान तक नहीं आया है । मगर दलितों को नहीं भूले मोदी।
अब इसके पीछे की राजनीति बेहद दिलचस्प है । उना और बाकी जगहों पर जिस तरह दलितों और मुसलमानों को गौरक्षा के नाम पर निशाना बनाया जा रहा था और उसकी जो व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी, उससे बीजेपी में एक बड़ी चिंता ये थी के दलित और मुसलमान लामबंद हो रहा है और अगर ये दो सियासी शक्तियां मिल गयी तो मायावती को लखनऊ पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता । लिहाज़ा कुछ ऐसा किया जाए के ये गठबंधन जुड़ने से पहले बिखर जाए । यही कारण है प्रधानमंत्री ने भावनात्मक अपील की। काश के आपने कहा होता, “गोली मारना है तो मुझे मारो, मेरे दलित और मुसलमान भाइयों को छोड़ दो!” मगर ना ! ऐसा कैसे हो सकता है? उत्तर प्रदेश का तो पूरा सियासी खेल बिगड़ जायेगा । कश्मीर पर आपकी खामोशी की वजह भी शायद यही है । क्योंकि इस वक़्त कश्मीर पे बोलने का अर्थ यानी बुरहान वानी और उससे जुडी सियासत में उलझ जाना, और जो पार्टी सत्ता में रहकर भी बारहमासी चुनावी तेवर में रहती है, उससे हम संवेदनशील मुद्दों पे टिप्पणी की उम्मीद की गुस्ताखी कैसे कर सकते हैं ? क्यों? गलत है न ?
दुःख की बात ये है के हैदराबाद के सांकेतिक मायने भी हैं । यहाँ मुसलमानों की एक बड़ी आबादी है और ये बात प्रधानमन्त्री भी समझते हैं । दलित सन्दर्भ की बात की जाए तो हैदराबाद को रोहित वेमुला काण्ड से जोड़ कर देखा जाता है, जो बीजेपी के लिए ज़बरदस्त शर्मिंदगी का सबब बनी थी । इसलिए भी शायद मोदीजी ने अपनी दलित संवेदना व्यक्त की... क्योंकि मौके तो आपके पास ढेरों हैं। “मन की बात” की बात से लेकर “संसद सत्र “, इतने मौके... मगर नहीं! संसद के चालू सत्र के बावजूद, आपने हैदराबाद में अपनी बात रखी । इस उम्मीद के साथ कि इसका सन्देश उत्तर प्रदेश से लेकर गुजरात, सब जगह पहुँच जाएगा, बगैर किसी जवाबदेही और सवाल जवाब के । लोकसभा में आप इस पर चर्चा इसलिए नहीं चाहते, क्योंकि कांग्रेस को आपको घेरने का मौका मिल जायेगा। बहनजी तो लोकसभा में हैं नहीं, बीजेपी को आशंका है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर आक्रामक हुई, तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी के वोट शेयर पर असर डाल सकती है, क्योंकि मुझे नहीं लगता के दलित वोट, मायावती के अलावा कहीं और जायेगा । सारी कवायद इसी बात की है । मैंने भी पहले यही सोचकर टाउन हॉल में प्रधानमंत्री के बयान की तारीफ की थी, मगर हैदराबाद पहुँचते पहुँचते, उसके मायने बदल गए । अस्सी फीसदी, “ मुट्ठी भर” में तब्दील हो गया । दलितों और मुसलमानों के संभावित सियासी गठजोड़ की भी चिंता थी और हाँ! ये न भूलें, के दिल्ली से हैदराबाद जाने वाली गाड़ी, “नागपुर” से होकर गुज़रती है ! और “नागपुर” से बड़ी चिंता क्या हो सकती है !
“नागपुर” !
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8 टिप्पणियाँ
Excellent article
जवाब देंहटाएंExcellent conclusion sir
जवाब देंहटाएंSuperb....
जवाब देंहटाएंWell articulated blog my friend!
जवाब देंहटाएंWell articulated blog my friend!
जवाब देंहटाएंसुना है ABP ने ट्विटर पर आपको बैन कर दिया है!
जवाब देंहटाएंमायावती जी तो उत्तर प्रदेश में सालों साल रहीं और स्वयं दलित होते हुए कौनसी उन्होने दलितों की किस्मत बदल दी (स्वयं को छोडकर)। मोदी जी तो पूरे देश के लिये अच्छा काम कर रहे हैं और यही उनके विरोधियों को हजम नही हे रहा।
जवाब देंहटाएंhttps://www.youtube.com/watch?v=XdSi57r93sU
जवाब देंहटाएंआपका पूर्वाग्रहसाफ झलकरहा है..जबकि फोनो दे रहा आपका साथी संयत है.