Navneet Pandey Ki Kavitayen
क्या फर्क पड़ता है
वह पापी हैमारो! मारो!
उसे जी भर पत्थर मारो!
कोई पीछे न रहे
यह पुण्य कमाने से
लाओ! लाओ!
खोज खोज
दबाए- छिपाए हथियार
करो! करो! ताबड़तोड़ वार!
कितने सौभाग्य से मिलते हैं
ऎसे सुनहरे अवसर यार!
क्या फर्क पड़ता है
मारा गया सरे आम
एक गरीब, एक बेकसूर, एक लाचार
एक असहाय, एक बीमार
एक सही लड़ाई लड़ते-जूझते थक हार
हम कर लेंगे प्रायश्चित, दे देंगे बयान
और निकल पड़ेंगे ढूंढ़ने एक नया शिकार
नहीं तो अपनी जान से जाओ.....
मैं कर्फ्यू में हूंकर्फ्यू मतलब
सबकुछ दीवारों में
बन्द दरवाज़े
खिड़की भी नहीं खुलनी चाहिए
मैं कर्फ्यू में क्यूं हूं
मैं नहीं जानता
सिर्फ इतना जानता हूं
मेरा कोई कसूर नहीं है
मेरे परिवार का कोई कसूर नहीं है
हमने कोई कानून अपने हाथ में नहीं लिया
न हमने कभी कोई कानून नहीं तोड़ा
पत्थर बरसाना दूर
कभी किसी से हल्का बोल भी नहीं बोला
फिर भी हम कर्फ्यू में हैं
आज से नहीं कई कई दिनो से
न सूरज देखने की छूट है
न आसमान
इस बार तो ईद का चांद भी नहीं देख पाए
वे कहते हैं
बच्चे नहीं लड़ाके पैदा करो
अपने स्तनों में दूध नहीं
खून पैदा करो
बच्चों को किताबी नहीं
जेहादी तालीम दो
उनके हाथों
कलम, कला
काबलियत के रास्ते नहीं
खुदाओं की बंदगी राह लाओ
उन्हें ज़िंदगी के नहीं
कुर्बानी के गुर सिखाओ
दुनिया को आवामी नहीं
मज़हबी बनाओ
मज़हब ही दीन- ईमान है
मज़हब ही खुदा- भगवान है
तरक्की और तरक्की पंसद
गंद है
इससे अपनी नाक बचाओ
तलवारें चलाओ, त्रिशूल उठाओ!
आओ! आओ! आओ!
नहीं तो अपनी जान से जाओ.....
कोई नहीं जान पाएगा...
क्लासस्कूल
कॉलेज
कैरियर में
खेल के मैदान में
कुछ अलग करे बिना
मेरी ओर किसी का ध्यान नहीं जाएगा
मुझे कोई नहीं पहचान पाएगा
कारु का खज़ाना कभी हाथ नहीं आएगा
सड़क
भीड़
मीडिया के बीच
अप्राकृतिक रूप से
कुछ करे
मरे बिना
मेरी ओर किसी का ध्यान नहीं जाएगा
मेरी मौत पर किसी का बयान नहीं आएगा
मेरे घर-परिवार पर कोई दया-धन नहीं बरसाएगा
एक आम आदमी
एक आम तरीके से
भूख- प्यास
राशन- भाषण
रोजगार की लड़ाई लड़ते हुए
अपनी सड़ी- गली खोली में
कि किसी बनिए, ठेकेदार के यहां
कौड़ियों के मोल घानी के बैल मानिंद
चुपचाप मर जाएगा
क्यूंकि वह कोई सनसनी
धाकड़ खबर नहीं है
कोई नहीं जान पाएगा...
सत्ता साथ सत है बाकी सब
हम श्रमिको के यूनियन लीडरप्रतिरोध के बड़े- बड़े आलेख लिखते हैं
प्रतिरोध के बड़े- बड़े सेमिनारों में जाते हैं
मंचो पर नारे लगाते हैं, वाह-वाही पाते हैं
लेकिन जब बात सड़क पर उतरने
कुछ कर दिखाने की आती है
सत्ताएं बातचीत के लिए बुलाती है
प्रतिरोध की सारी चिंगारीयां
आग होने से पहले ही
वार्ताओं, संधियों में बदल जाती है
हको की आवाज़े, मांगे हमेशा की तरह
समझौतों की अर्थी हो जाती है
सत्ता साथ सत है बाकी सब...
प्रतिरोध की यही गत है बाकी सब...
मैं
मैंकभी नहीं मुरझाता
न ही सूखता
फ़ेंका जाता
कचरे मानिंद
खिला रहता
बिखेरता रहता
अपनी सीमाओं में
जैसी भी है अपनी खुश्बू
अगर तुमने तोड़ा न होता!
जो जैसा है कहना है!
समझौते, संधियां कदापि नहीं,भावनात्मक पाबंदियां कदापि नहीं
जो जैसा है
कहना है!
अपनी ही धार
बहना है!
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3 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति. बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! बहुत शुभकामना
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