1996 में हमारा टीवी दल कराची में दाऊद इब्राहिम के मकान की तलाश करने वाला पहला दल था — राजदीप सरदेसाई
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Narendra Modi of India Meets Pakistani Premier in Surprise Visit (Photo: The New York Times) |
विभाजित मानसिकता का देश है पाकिस्तान
— राजदीप सरदेसाई
अभिनेत्री-राजनेता रम्या पर सिर्फ इसलिए राजद्रोह का मामला दायर किया गया, क्योंकि उन्होंने कह दिया कि पाकिस्तान नर्क नहीं है। यह अजीब मामला जब चर्चा में है तो मैं यह कहना चाहूंगा कि भारत के बाहर से रिपोर्टिंग करने के मामले में भारतीय पत्रकारों के लिए पाकिस्तान से बेहतर देश नहीं है। 1995 और 2004 के बीच मुझे कई बार पाकिस्तान जाने का मौका मिला। हर यात्रा एक रहस्योद्घाटन साबित होती। 1996 में हमारा टीवी दल कराची में दाऊद इब्राहिम के मकान की तलाश करने वाला पहला दल था। कराची में गृहयुद्ध जैसे संघर्ष के सबसे खराब दिनों में हमने वहां एमक्यूएम अतिवादियों पर विशेष रिपोर्ट की थी। हमने लश्कर के आतंकी शिविरों और मुरीद के स्थित जमात-उद-दावा के मुख्यालय से रिपोर्टिंग की। पेशावर के हथियार बाजार में घूमे और पाक-अफगान सीमा पर स्थित ओसामा बिन लादेन की ‘गुफा’ तक भी लगभग पहुंच ही गए थे (पाकिस्तानी ‘संपर्क’ अंतिम क्षण में तब बिदक गया जब उसे पता चला कि उस यात्रा में हमारे वीज़ा के दायरे में लाहौर व इस्लामाबाद के बाहर के इलाके नहीं हैं)।
पाकिस्तान की हर यात्रा में तत्कालीन राजनीतिक स्थिति चाहे जो भी रही हो, गर्मजोशी और मेहमाननवाजी में कोई परिवर्तन नहीं हुआ — राजदीप सरदेसाई
हमने पाकिस्तानी समाज पर सकारात्मक रिपोर्टें भी कीं। हमने अब्दुल सत्तार ईदी और कराची में उनके पीस फाउंडेशन का उल्लेखनीय काम दिखाया, पाकिस्तानी टीवी सीरियल के सेट (1990 के दशक में उन सीरियलों का हमारे यहां बड़ा क्रेज था) से रिपोर्टिंग की, पाकिस्तान की पहली महिला रॉक बैंड कलाकार से मिले, लाहौर की फूड स्ट्रीट पर फीचर बनाया। एक बार लालू प्रसाद यादव के साथ सद्भावना यात्रा के दौरान इस्लामाबाद के इतवारिया बाजार में उनके साथ पहुंचे तो इतने लोग इकट्ठे हो गए कि बाजार ठप हो गया (लालू ने अपनी खास शैली में एक आलू कैमरे की ओर करके नारा लगाया : ‘पाकिस्तान में आलू, बिहार में लालू’ जिस पर जोरदार तालियां बजीं।)
यह अहसास बढ़ रहा है कि भारत ने पाकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है और बरसों आतंकियों को समर्थन देकर ऐसा दैत्य पैदा हो गया है, जो देश को भीतर से खा रहा है — राजदीप सरदेसाई
पाक से रिपोर्टिंग करना कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि भारतीय टीवी दल को बहुत संदेह से देखा जाता था। हर यात्रा में हमारे पीछे आईएसआई की ‘एजेंसी’ कार होती थी। एक यात्रा में हम लौटती फ्लाइट में सवार होने के पहले मैकडॉनल्ड रेस्तरां गए। ‘एजेंसी’ कार हफ्ते से पीछा कर रही थी तो सोचा कि उन्हें भी नाश्ता करा दिया जाए इसलिए हम उन तक पहुंचे तथा उन्हें बर्गर और कुछ फ्रेंच फ्राइज़ दिए। उन्होंने बर्गर तो नहीं लिए, लेकिन धीरे से फ्राइज की प्लेट स्वीकार कर ली!
पाकिस्तान की हर यात्रा में तत्कालीन राजनीतिक स्थिति चाहे जो भी रही हो, गर्मजोशी और मेहमाननवाजी में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वाजपेयी की लाहौर यात्रा में तो ऐसा लगा कि दावतों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं हुआ : इसके पहले इतने कम भारतीयों ने इतने कम समय में इतने सारे कबाब हजम नहीं किए होंगे! करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के साथ क्रिकेट प्रैक्टिस पर भी गए, क्योंकि उनका इंटरव्यू लेने का यही एकमात्र रास्ता था। उनके तब के मीडिया सलाहकार मुशाहिद हुसैन ने सौम्य शब्दों में सलाह दी, ‘बस यह देखिएगा कि आप उन्हें आउट न कर दें।’ प्रैक्टिस के बाद न सिर्फ हमें इंटरव्यू लेने का मौका मिला बल्कि प्रधानमंत्री निवास पर शानदार बुफे की मेजबानी भी मिली। हमें अहसास हुआ कि क्रिकेट और भोजन शरीफ के दिल तक पहुंचने के दो रास्ते हैं : जहां हम पहाड़ों पर चल रहे युद्ध पर फोकस चाहते थे, शरीफ पाकिस्तानी गाजर के हलवे की तुलना उस गाजर के हलवे से करने में लगे थे, जो उन्होंने पुरानी दिल्ली में खाया था!

पाकिस्तानी घरों में रात के भोजन पर हल्की-फुल्की चर्चा में भारत-पाकिस्तान तुलना पसंदीदा विषय है, वह अब भी ऐसा देश है, जिस पर एलओसी पार के ‘बिग ब्रदर’ का जुनून पागलपन की हद तक सवार है। फिर चाहे इमरान खान और कपिल देव की ऑलराउंडर विशेषताओं की तुलना हो या नूरजहां और लता मंगेशकर के गायन की। हावी होने की प्रवृत्ति ऐसी बात थी कि जिससे निपटना आपको जल्दी ही सीखना होता है। इसी तरह कश्मीर और घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तानी हाथ का मुद्दा छेड़ते ही आपको द्वेषपूर्ण रवैये का सामना करना पड़ता है। पाकिस्तान के खुद अातंकवाद का ‘शिकार’ बनने से पहले के उस दौर में यह स्वीकार करने की तैयारी नहीं थी कि आतंकवादियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताना गलत है। बहस का अंत निर्दोष लोगों के खिलाफ हिंसा को तर्कसंगत ठहराने पर ही होता था। दो साल पहले कराची में ‘जनता से जनता’ के बीच ट्रैक-2 संवाद में मौजूदगी के दौरान पहली बार पाकिस्तानी मनोवृत्ति में बदलाव महसूस हुआ। पाकिस्तान में यह अहसास बढ़ रहा है कि भारत ने पाकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है और बरसों आतंकियों को समर्थन देकर ऐसा दैत्य पैदा हो गया है, जो देश को भीतर से खा रहा है। इसके बाद भी कश्मीर के लिए ‘भावनात्मक’ समर्थन का विचार पाकिस्तानी मानस से कभी दूर नहीं हुआ। समझदार पाकिस्तानी भी कश्मीर में संघर्ष को जायज ठहराता है। बरसों के सैन्य शासन, कट्टर इस्लामीकरण और भारत से शत्रुता पर टिके देश के वजूद के कारण पड़ोसी से परिपक्व तरीके से निपटने की औसत पाकिस्तानी की क्षमता कमजोर पड़ गई है।
इसीलिए पाक के साथ रिश्ते का तरीका न तो उसे रूमानी बनाने और न उसे दैत्य बनाकर पेश करने में है बल्कि हमारे राजनयिक रिश्तों में व्यावहारिक, बिज़नेस जैसे रवैये को शामिल करना होगा। हमें मानना होगा कि पाक न तो नर्क है और न स्वर्ग। यह तो भारत और भारतीयों के प्रति रवैये में खंडित मानसिकता का शिकार है। वरना किस देश में हिजबुल मुजाहिदीन सरगना सैयद सलाहुद्दीन आपको भारतीय ‘जासूस’ मानकर कमरे में बंद कर देता है और उसी रात होटल का पियानोवादक आपके सम्मान में ‘सुहानी रात ढल चुकी’ पेश करता है? हमारे लिए पाकिस्तान ऐसा ही है, जिसके मोहब्बत-नफरत वाले रिश्ते से सावधानी के साथ निपटना होगा।
पुनश्च : 2004 की क्रिकेट शृंखला में मैं लाहौर के निर्णायक वन-डे मैच में अपने नौ वर्षीय पुत्र को भी ले गया था। इस शृंखला में पाकिस्तानी दर्शक भारतीय तेज गेंदबाज के समर्थन में ‘बालाजी जरा धीरे चलो’ के नारे लगाते थे। जब भारत जीत गया तो एक निराश पाकिस्तानी समर्थक ने मेरे बेटे को पाकिस्तानी ध्वज भेंट किया। मेरे बेटे ने इसे तोहफा मानकर अपने कमरे की दीवार पर लगा दिया। तब यह सद्भावना का प्रतीक माना जाता था : खेद की बात है कि आज के भारत में शायद इसे राजद्रोह माना जाए!
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
राजदीप सरदेसाई
वरिष्ठ पत्रकार
दैनिक भास्कर से साभार
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2 टिप्पणियाँ
जानते हैं राजदीप आप,अपने पिता दिलीप सर (स्व. दिलीप सरदेसाई इंडियन टेस्ट क्रिकेटर ) की लिगेसी को पूरी तरह आत्मसात किए हुए हैं और आज भी आपके भीतर वो ऑक्सफोर्ड में क्रिकेट सीखता खिलाड़ी जीवित है जो स्वयं आप पर स्पोर्ट्समेन स्पिरिट
जवाब देंहटाएंकी सकारात्मक अच्छाई उंडेलता रहता है ... बधाई सर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा परसों सोमवार (05-09-2016) को "शिक्षक करें विचार" (चर्चा अंक-2456) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन को नमन।
शिक्षक दिवस की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'