कह दो तुम — प्रेमा झा की कवितायेँ



प्रेमा झा की कवितायेँ | Poems of Prema Jha

कवितायेँ 

प्रेमा झा



कह दो तुम

तुम जो कह देते तो
चाँद तक अड़गनी टांग देती

दुपट्टा सितारों वाला डालकर उस पर
तुम्हें सपनों की कहानियां सुनाती
तुमको बताती राजा की बारात
रानी का महल
और
राजकुमारी के ख्वाब के किस्से
मैं तुमको गुनगुनाती सुबह की धुप में
तुमसे कहती आती जाड़े की खुशबुओं के एहसास
और चांदी वाली धूप की कवितायेँ
तुम जो कह देते
मैं पुराने महल की दीवार पर चित्रकारी खिंच देती
मैं उगा लेती लकड़ी का घोड़ा, पुरवइया के पर, रानी माँ के शौकिया हुक्के का धुंआ
मैं आकाश हूँ, चन्द्रमा और सूरज भी
तुम जो कह देते बन जाती पुराना किला, मस्जिद की मीनार और मकबरे की छत
मुहब्बत मेरी फ़िरोज़ शाह की मज़ार के बड़े पेड़ों-सी
परी और जिन्नातों के साये-सी
छूटता ही नहीं जो
इकतारे पर तानती हुई धुन जिसके
बंजारन गाती रहती है गलियों में
तुम जो कह दो तो
बन जाऊंगी मैं घण्टी, मेला, आग, सुनामी
या फिर
भटकती रह जाऊंगी बन कर आत्मा!






हर्फ़ प्यार के 

जिंदगी को बदलते हुए
देख रही हूँ
एक आदिम सच
और ज़ाया हो जाने की हकीकत से
बावस्ता होते हुए
जब धरती खत्म हो जाएगी
और
हवा असर करेगी सिर्फ
कोई एक नाम होगा
वो तुम्हारा ही होगा
क्योंकि जब
आंधियाँ चल रही थी
मैनें तुझे गुनगुना लिया था
सृष्टि की शुरुआत और अंत के मध्य
तुम और
तुम्हारा होना
कुछ हो जाने-सा
ऐसा उलझ गया है कि
अब बस आंधिया चलती हैं
और
शहर, मुल्क, सीमाएं
सृष्टि के विलीन हो जाने तक भी
एक स्लेट-सी कोशिश करती रहेंगी
उसे मिटाने की
उसे उगाने की....


जूही के फूल 

बवंडर है तुझमें खो जाना
एक जाल-सा
जो मेरे घर को उलझा दिए हुए है
तुझे किसने बुलाया था कि
आ भीतर दाखिल हो
तुमने कुंडियों के रिवाज़ को सीखा नहीं क्या?
अजीमुश्शान सन्नाटे के हो लगते बादशाह
तारिक़ सफ़क की रात
आ गए एक कुंवारी लड़की के घर
लो तेल डाल दिए हमने दीए में
देखूं तो कौन है तू राहगीर
जो मेरी रागिनी में
अकेला जलने लगा है
जलकर, बदनाम होना
है एक अलग तरह की कामयाबी
दीवानों की बस्ती में तुझे लोग
पुरअसरार जादूगर कह रहे हैं
क्यों चला आया है तू ?
ये जानते हुए भी कि
रातरानी की उम्र में
सुबह नहीं होती!


घर 

मैं चुप अपने घर को कागज़ में लपेटती हूँ
कुछ शब्द उकेरती हूँ
और रंग की पुड़िया में डूबो देती हूँ
घर को सूटकेस में रखती हूँ
आओ, तुमको एक थाली चाँद दूं
दूं कटोरा-भर धूप
एक शीशी ओस घर में मेरे
थोड़ा समंदर का खारापन अंजुरी में
थोड़ा मेरी आँखों में!
मैं एक टुण्ड्रा बर्फ हूँ
हूँ थोड़ा-सा चेरापूंजी मौसम
मैं एक घर ख्याल हूँ
एक ज़िन्दगी सच हूँ।
प्रेमा झा 
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना