री-लोड कीजिये क्रांति — शुऐब शाहिद


री-लोड कीजिये क्रांति — शुऐब शाहिद



वरना देशद्रोही कहलायेगा

— शुऐब शाहिद

मैं अक्सर सोचता हूँ कि आखिर वो क्या कारण रहे होंगे, जिनको, हमने ग़ुलामी करार दिया। और ग़ुलामी भी ऐसी कि जिसके खिलाफ पूरा देश खड़ा हो गया, और क़ुर्बान होने दिए अपने लाखों नौजवानों को। क़ुरबानी ऐसी, कि जिसमें इज़्ज़त, दौलत और जानें तक शामिल थीं। कितने भयावह होंगे वो हालात, जिसके ख़िलाफ़ हमने 90 साल तक जंग लड़ी। और जंग भी ऐसी कि जिसको ज़माना याद रखे।



इसमें कोई शक़ नहीं है मैंने और आपने बचपन से जो तारीख पढ़ी है वो पूरी तरह तो सच नहीं है। ना हमारी तारीख पूरी तरह सच है, ना सरहद के उस पार पढ़ायी जाने वाली तारीख़ और ना ही उस अँगरेज़ कौम की किताबें पूरा सच बताती हैं, जिसको हम हारी हुई कौम समझते आये हैं। दरअसल अपनी अपनी कौमियत (राष्ट्रीयता) के मुताबिक हीरो बनाये गए। हीरो में संसार की सम्पूर्ण खूबियाँ जमा की गयीं और विलेन संसार के सबसे दुश्प्रजाति से सम्बन्ध रखने वाले लोग थे।

इस अधूरी सच्चाई वाली तारीख की बुनियाद पर भी मैं ग़ुलामी के ऐसे कारण नहीं देखता कि जहाँ किसी अँगरेज़ ने किसी हिंदुस्तानी को बिना किसी भी बहाने के सिर्फ इसलिए मार दिया हो कि उसकी रसोई में कोई 'राष्ट्रद्रोही खाना' रखा था। 

आज़ादी के बाद का भारत, और ख़ास तौर पिछले दो-एक साल से जो कुछ देख रहा हूँ ये सब मुझे उससे कहीं ज़्यादा भयावह महसूस होता है। यूनिवर्सिटियों में छात्र सुरक्षित नहीं। जेल में अंडरट्रायल कैदी महफूज़ नहीं। डंके की चोट पर, सरकारी तंत्र के साथ मिल कर एक धर्म विशेष के प्रसिद्ध धर्मस्थल को तोड़ दिया जाता है। साम्प्रदायिक दंगे के नाम पर सरकारी तौर पर एक खास धर्म के लोगों का क़त्ल-ए-आम जायज़ हो जाता है। देशभक्ति के नाम पर पत्रकारों को, वकीलों को, कलाकारों को और अन्य समाज के प्रतिष्ठित वर्ग को सताना, पीटना तथा उन्हें क़त्ल कर देना एक राष्ट्रवाद का पैमाना बना दिया जाता है। किसानों और सैनिकों का अपमान, शोषण और उनका क़त्ल/आत्महत्या महज़ एक मामूली आंकड़ा बन कर रह जाती है।
shoeb shahid

कोई आम आदमी नहीं बोलेगा। कोई छात्र नहीं बोलेगा, वरना देशद्रोही कहलायेगा। कोई साहित्यकार, पत्रकार यहाँ तक के किसी राज्य का मुख्यमन्त्री भी नहीं बोलेगा। और जो कोई बोलेगा तो जवाब में बस एक शब्द काफी है 'देशद्रोही'। कोई फिल्मकार, फिल्म नहीं बनाएगा जब तक राष्ट्र भक्ति का सर्टिफिकेट ना ले ले। कुछ फिल्मकारों ने तो ये सर्टिफिकेट खरीद लिया। कुछ को शायद पीट कर राष्ट्रवादी बनाने गई थी 'करणी सेना'।

किसी सरकारी विभाग को अपनी भूल और जुर्म स्वीकारने की आवश्यकता नहीं, बस बुलन्द आवाज़ से कहिये कि 'ये काम पाकिस्तान ने किया है, या उस धर्म विशेष के नौजवानों (मुसलमानों) ने', कि जिनके लिए ना कोई मानव अधिकार हैं और ना किसी की हमदर्दी

हज़ारों बातें हैं, जो ये आधी सच्ची तारिख ने भी कभी नहीं बतायी....

यदि उन महापुरुषों की जँग जायज़ थी। तो उससे भी कहीं ज़्यादा ग़ुलाम हम आज हैं। और उससे भी बड़ी जँग आज लड़ने की ज़रूरत है।

जँग, इस फासीवाद से।

और कन्हैया का ये कहना बिलकुल ठीक है - 'भारत से आज़ादी नहीं, भारत में आज़ादी।

देश के नौजवानों, एक बार फिर वक़्त के बिगुल की आवाज़ सुनो, और पूरा करो उस ख्वाब को, कि जिसको देखा था, तुम्हारे ही जैसे उन नौजवानों ने, जिनके नसीब में सिर्फ क़ैदख़ाने और फाँसी के फन्दे ही आ सके। तुम्हारी जँग फासीवाद के खिलाफ थी, जो आज भी सीना ताने तुम्हारे सामने खड़ा है।

क्रान्तिकारी अभिवादन सहित

- शुऐब शाहिद
Shoeb Shahid is a young artist, activist from Bulandshahr

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ब्रिटेन में हिन्दी कविता कार्यशाला - तेजेंद्र शर्मा
दो कवितायेँ - वत्सला पाण्डेय
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh