प्राण जाए पर वचन न जाए का मामला — रवींद्र त्रिपाठी #BahubaliTheConclusion part 2


If you've been following the income at the box office juggernaut that is Baahubali 2: The Conclusion (also spelt as Bahubali part 2), then you'll know that within just five days at the theatres, its collections amount to a neat Rs 600 crore.

बाहुबली 2: द कनक्लूजन part 2

review फिल्म समीक्षा — रवींद्र त्रिपाठी

निर्देशक- एसएस राजौमौली
कलाकार- प्रभाष, अनुष्का शेट्टी, सत्यराज, राणा डागुबत्ती, रम्या कृष्णन, नासेर

poster


राजामौलि के बारे सिर्फ ये कहना कि वे सिर्फ भव्यता के सहारे फिल्म बनाते हैं, सही नहीं होगा। वे गजब के किस्सागों है। उनकी फिल्मों में, और इस फिल्म में भी, भव्यता के साथ साथ `आगे क्या होगा?’ वाला सवाल हमेशा मौजूद रहता है। — रवींद्र त्रिपाठी
Ravindra Tripathi
जो फिल्मप्रेमी लगभग साल भर से इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे थे कि `बाहुबली को कटप्पा ने क्यों मारा?’, उनके लिए तो फिलहाल इतना ही कि मामला कुछ कुछ प्राण जाए पर वचन न जाए का है। अमरेंद्र बाहुबली को अपने दिए वचन की रक्षा करनी थी, मां शिवगामी को अपने वचन की रक्षा करनी थी और कटप्पा को भी। इन तीन चरित्रों ने अलग अलग लोगों को अपनी तरफ से वचन दिए थे और इस चक्कर में अमरेंद्र बाहुबली को कटप्पा ने पीठ के पीछे से तलवार घोप दिया। इसके अलावा सिर्फ इतना ही कि कटप्पा कृतघ्न नहीं था और बाहुबली के वंशज के लिए भी प्राण जाए पर वचन न जाए के शपथ पर कायम रहा।

`बाहुलबली 2- द कनक्लूजन part 2’ भी `बाहुबली’ के पहले भाग की तरह ही भव्य है और साथ ही जजबाती भी। इसमें भी उसी तरह के चमत्कारपूर्ण और `अविश्वसनीय पर सत्य’ वाले दृश्य हैं। शानदार विजुअल इफेक्ट और प्रतिशोध की महागाथा की वजह से ये फिल्म दर्शकों की उत्सुकता को बनाए रखती है। `बाहुबली’ के पहले भाग में दर्शकों को पता चल गया था कि अमरेंद्र बाहुबली (प्रभाष) के हाथ से माहिष्मती का सिंहासन निकल गया था और भल्लाल देव (राना डागुबत्ती) को मिल गया था। लेकिन वो सिंहासन किस वजह से हाथ निकला था इसका पता इस दूसरे भाग में मिलता है। और ये भी कि अमरेंद्र बाहुबली को किससे प्रेम हुआ था, महेंद्र बाहुबली की मां कौन थी, और शिवगामी (रम्या कृष्णन) ने क्यों और किस तरह नवजात महेंद्र बाहुबली की जान बचाने के लिए नदी की अगाध जलराशि में छलांग लगाई- इन सबका पता आपको इस दूसरे भाग में होता है। बदले की आग तो एक कहावत है लेकिन किस प्रकार विरोधी को बदले की आग में सचमुच जलाया जाता है वह भी इस फिल्म में दिखता है।

निर्दशक राजामौली ने राजमहलों में चलनेवाले षड्यंत्र को भी पूरी तरह दिखाया है और पारंपरिक युद्धों की तकनीक को भी। हालांकि ये तकनीक वास्तविक युद्धों के नहीं है और जिस तरह के तीर, भाले, तलवार, गदाएं, ढाल और दूसरे पारंपरिक अस्त्र शस्त्र दिखाए हैं वो सिर्फ अमर चित्र कथाओं में ही मिलते हैं। ये सब डिजाइनर हथियार है और इनका वास्तविक युद्धो में कभी इस्तेमाल नहीं हुआ। अगर कभी इस्तेमाल हुआ तो फिल्म में। पर ये सारे हथियार इतने लुभावने है कि दर्शकों के मन में किसी तरह का भय नहीं पैदा करते बल्कि उनको चमत्कृत करते हैं। दर्शक सोचता रह जाता है कि अच्छा गदा युद्ध ऐसा मनोरंजक होता है, तीर इतने सजावटी सामानों जैसे होते हैं?

इसके दूसरे भाग में अमरेंद्र बाहुबली का इश्क भी दिखाया है। उसकी प्रेमिका और बाद मे पत्नी देवसेना (अनुष्का शेट्टी) खुद भी सैन्यविद्या में निपुण है। देवसेना की तलवारबाजी और तीरदांजी के दृश्य भी रोचक हैं और अमरेंद्र बाहुबली के साथ उसके रोमांटिक दृश्यों में हास्य का भी खूब प्रयोग हुआ है। वैसे देवसेना आज की नारी लगता है। स्वाभिमान से भरी। सिर्फ अपने गहनों से वह किसी राज कुमारी की तरह सजी संवरी लगती है।

निर्देशक राजामौलि के बारे सिर्फ ये कहना कि वे सिर्फ भव्यता के सहारे फिल्म बनाते हैं, सही नहीं होगा। वे गजब के किस्सागों है। उनकी फिल्मों में, और इस फिल्म में भी, भव्यता के साथ साथ `आगे क्या होगा?’ वाला सवाल हमेशा मौजूद रहता है। उन्होंने बाहुबली श्रृंखला की इन दो फिल्मों के माध्यम से जो तीन चरित्र दिए हैं- बाहुबली, कटप्पा, और शिवगामी – वे भी भारतीय जनमानस में अपनी जगह बना चुके हैं। किसी और फिल्मकार ने ऐसा नहीं किया है। हालांकि राजामौलि तेलगु फिल्मकार है पर उनकी फिल्म हिंदी और दूसरी भाषाओं में आकर पूरे देश के लोगों दिलों में अपनी जगह बना रही है। माहिष्मती नाम के जिस राज्य को उन्होंने इस फिल्म में दिखाया है वो काल्पनिक है और उसके राजपरिवार के सदस्य भी। इसकी आलीशान इमारतें भी। बाहुबली के वीरता और शौर्य की कहानी भी पूरी तरह काल्पनिक है लेकिन कल्पना की ये दुनिया इतनी रंगारंग है कि दर्शक कुछ वक्त के लिए अपनी वास्तविक दुनिया को भूल जाता है। ये कहीं अवास्तविक नहीं लगता कि एक बिगड़ैल हाथी को अमरेंद्र बाहुबली सिर्फ अपने हाथों के बूते संभाल लेता है। दर्शक को लगता है कि यही होना चाहिए था।
राजामौलि वास्तविकता के फिल्मकार नहीं है। उन्होंने किसी सामाजिक विमर्श को बाहुबली श्रृंखला की फिल्मों से जन्म नहीं दिया है। वे एक तरह के जादूगर हैं जो अविश्वसनीय को मोहक बना देते हैं और शंख ध्वनियों और ड्रमों की आवाजों के माध्यम से एक ऐसे काल्पनिक लोक की रचना करते हैं जो दर्शक को कुछ देर के लिए ही सही अपना वर्तमान भूलने के लिए विवश कर देती है। अगर आपको चमत्कारबाजी से परहेज नहीं है तो `बाहुबली’ का ये दूसरा भाग अच्छा लगेगा।  हां, आपके आधुनिक विचारों को कुछ जगहों पर झटका लग सकता है।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ