कैंपस में टैंक — प्रितपाल कौर | #JNUTankDebate


प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार
प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार के अनुसार विश्व विद्यालय में एक टैंक रखा जाना चाहिए (फोटो: भरत तिवारी)
सूत्रों के अनुसार यह एक सोची समझी प्रक्रिया का हिस्सा है. उनके अनुसार विश्वविद्यालय में इन दिनों एक अजीब तरह की प्रशासनिक प्रक्रिया चल रही है जिसके तहत सभी तरह के फैसले लिए जा रहे हैं और कई इस तरह के काम किये जा रहे हैं, जिनकी अनुमति विश्व विद्यालय का कानून नहीं देता और जो यहाँ के इतिहास में पहले कभी नहीं हुए हैं.

 जे.एन.यू. बनाम फ़ौजी कैंपस 

— प्रितपाल कौर

दुनिया भर में अपनी शैक्षिक उत्कृष्टता के लिए जाने जाने वाले दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्व विद्यालय यानी जे.एन.यू. के मौजूदा कुलपति प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार के अनुसार विश्व विद्यालय में एक टैंक रखा जाना चाहिए ताकि यहाँ के छात्र देश के शहीदों की शहादत को हमेशा याद रख सकें.



इस रविवार विश्व विद्यालय में अठारवें कारगिल दिवस के मौके पर 'वेटरंस इंडिया' ने एक तिरंगा मार्च निकाला. जिसमें लगभग 2000 लोगों ने हिस्सा लिया. मार्च में शहीदों के 23 परिवारों ने भी हिस्सा लिया. मार्च के बाद हुए एक समारोह में कुलपति ने ये मांग केन्द्रीय मंत्रियों के सामने रखी जो उस वक़्त समारोह में मौजूद थे.

कुलपति की इस मांग पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.

यूनिवर्सिटी के भीतर ही दबे और मुखर सभी तरह के स्वरों में इसके विरोध में आवाज़ उठ रही है. प्रबुद्ध जनों का मानना है कि अपनी इस मांग के ज़रिये कुलपति ने एक नयी तरह की देशभक्ति को हवा देने की शुरुआत की है जिसकी जड़ें फ़ौज के हिंसक रोमांच में बसी हैं.

उनके अनुसार यह एक ऐसी कोशिश है जो यहाँ के छात्रों को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया से न जोड़ कर, एक ऐसी छद्म राष्ट्र भक्ति की तरफ मोड़ने की क्षमता रखती है, जिसके परिणाम दूरगामी हो सकते हैं. एक ऐसी राष्ट्र भक्ति जिसकी जड़ें सेना, शस्त्र और युद्ध के विनाशकारी रोमांच पर टिकी हैं. उनके अनुसार एक ऐसे शैक्षिक संस्थान में जहाँ बेहद प्रबुद्ध छात्र, काफी कठिन प्रक्रिया से गुज़र कर, दाखिल होते हैं और उनकी अपनी एक विशिष्ट विचार धारा भी होती है, उन पर इस तरह के प्रयोग करना जोखिम भरा भी हो सकता है.

सूत्रों के अनुसार यह एक सोची समझी प्रक्रिया का हिस्सा है. उनके अनुसार विश्वविद्यालय में इन दिनों एक अजीब तरह की प्रशासनिक प्रक्रिया चल रही है जिसके तहत सभी तरह के फैसले लिए जा रहे हैं और कई इस तरह के काम किये जा रहे हैं, जिनकी अनुमति विश्व विद्यालय का कानून नहीं देता और जो यहाँ के इतिहास में पहले कभी नहीं हुए हैं. इस तरह के फैसलों को लागू करने के लिए या तो कानून को धता बता दिया जाता है या फिर कानूनों की व्याख्या इस ढंग से कर ली जाती है कि संदेहास्पद फैसले भी सही मालूम होते हैं.

सूत्रों के अनुसार पिछले वर्ष कुछ वरिष्ठ सेना अधिकारी कुलपति से भेंट के लिए आये थे और उन्हीं के सुझाव पर अमल करते हुए रविवार को केन्द्रीय मंत्रियों से कुलपति ने यूनिवर्सिटी को टैंक मुहैया करवाए जाने की मांग की है.

विश्वविद्यालय की मौजूदा व्यवस्था से निराश कुछ फैकल्टी मेंबर्स का यह भी मानना है की उन्हें आश्चर्य नहीं होगा अगर भविष्य में विश्वविद्यालय परिसर की दीवारों पर राइफल और दूसरे शस्त्र भी सजावट की वस्तु बने हुए नज़र आयें.

उनके अनुसार इकीसवीं सदी में जब पूरा विश्व अब तक हो चुके युद्धों के लिए शर्मसार महसूस करता है. विश्व के विकसित देश उन पर गाहे-बगाहे अपना अफ़सोस जाहिर करते रहते हैं, यहाँ हमारे देश के बेहद महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट माने जाने वाले विश्वविद्यालय में एक ऐसी देशभक्ति को परिभाषित किये जाने की मुहिम चल रही है, जिसमें युद्ध और विनाश के प्रतीकों को प्रतिष्ठित किये जाने का प्रावधान है, जो बेहद शर्मनाक है.

कुलपति की ये मांग हो सकता है जल्द ही सरकार और सेना द्वारा पूरी कर दी जाए और जे.एन.यू. के परिसर में किसी विशिष्ट जगह पर छात्रों को एक टैंक रखा हुआ मिले. हो सकता है तब हम और आप जे.एन.यू. के छात्रों की सेल्फी इस टैंक के साथ अपने फेसबुक टाइम लाइन पर देख कर गर्व या शर्म के मिले जुले भावों से भर उठें.

pritpal kaur
Pritpal Kaur is a Sr Journalist and she can be contact at pritpalkaur@gmail.com (Photo (c) Bharat Tiwari)


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. बड़ा सोचिए ... आ. प्रितपाल जी,
    आपकी रिपोर्ताज सूत्रों का नाम लेकर शिक्षाशास्त्रियों और यूनिवर्सिटी के दीक्षितों को बरगलाने की कोशिश मात्र प्रतीत हुई, एक पाठक, स्टूडेंट, नेता, पत्रकार कोई भी इतना ज़रुर सिद्ध कर सकता हूँ देशभक्ति के लिए ना टेंक की ज़रूरत है और ना टेंक सामने देखकर कोई पूर्ण विकसित दिमागवाले वयस्क आतंकित हो अथवा दिक्भ्रमित हो बड़े हिटलरवादी सिद्ध होंगे |
    शायद आपके अनुसार शहीद उधम सिंह बटुकेश्वर दत्त भगत सिंह जैसे बिरले लोग टेंक या बम की अंतरात्मा से विश्वास का बल लेकर मज़े के लिए आतम्हूत कर आए होंगे या इज़राइल जैसा देश दुनिया में वीभत्स सोच रखने वाला देश ही होगा |
    नहीं ... और बहुत सुन लिया तथाकथित प्रबुद्ध प्रबोधनों को सम्मुचय से आँकड़े एकत्र कर सूत्रों की व्याख्या पर व्याख्यान दे लेना इसे मैं गंभीर पत्रकारिता नहीं ठहरा सकता| अच्छा होगा भारतीय सैनिक संस्थानों के सैनिक स्कूल;
    आर्मी इंजीनियरिंग कोर, सेना सिगनल और टेलीकम्युनिकेशन सेंटर एयरफ़ोर्स मेडिकल कालेज आदी के भी आँकड़े लिए जाएँ | भारतीय सैनिक और अफ़सर उतने ही उत्कृष्ठ प्रबंधक, सलाहकार और शिक्षाविद होते हैं |
    और हाँ देश के दीक्षार्थियों को टेंक जैसे हथियारों के लिए अतिसंवेदनशील बताना केवल एक प्रायोगिक कर्म
    हो सकता है स्वस्थ रिपोर्ताज़ कतई नहीं |

    * * *
    चल,
    इस छलिए
    दिल को
    मज़बूत
    कर लेते हैं,

    ऐसे कि;
    ये कड़वे सच
    और
    मीठे झूठ
    तोड ना
    डालें उसे |

    ~ प्रदीप यादव ~

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा