ख़तावार: जवाब तो देना होगा — भरत तिवारी


letter-to-sushant-sharma-bharat-tiwari

रवीश ने मोदीजी को ख़त लिखा, तो उनको सुशांत सिन्हा जी ने, तो अब मैं सुशांत सिन्हा जी को, क्योंकि जवाब तो देना होगा

 — भरत तिवारी 




सुशांत जी, जयसिया राम!
     औरअब सीधे मतलब पर — अर्थात  :

अपना क़द ऊंचा नहीं कर सके, तो दूसरे के ऊंचे क़द को, खींच कर छोटा करने की सोचना, मूर्खतापूर्ण है। सुशांत भाई आपके व्यक्तित्व में क्या-क्या ऐसा है कि आप की और रवीश की आपस में नहीं निभी होगी, वह सब आपने अपने ख़त में लिख दिया है, हो सके तो अपने पत्र को, अपनी कमियाँ देखने और सुधारने के लिए पढ़िए। यकीन मानिये, आपका पत्र रवीश को लिखा पत्र नहीं बल्कि डॉक्टर का, आपके लिए लिखा, परचा है।

रवीश बेशक दो हैं, (वैसे हम सब दो हैं, आप-भी) एक वह रवीश जो पत्रकार है, और दूसरा वह रवीश, जो एक सामान्य इंसान है।

हमारी किसी इनसान के लिए पसंदगी या नापसंदगी, हमारा अपना निर्णय होता है। कोई इनसान किसी को बहुत अच्छा, और वही इनसान किसी दूसरे को बहुत बुरा लग सकता है, यह हमसब जानते हैं।

किसी पत्रकारिता के लिए, हमारी पसंदगी या नापसंदगी, हमारी सोच और हमारी विचारधारा का निर्णय होती है। पत्रकारिता के कारण, कोई पत्रकार किसी को बहुत अच्छा, और वही पत्रकार किसी दूसरे को बहुत बुरा लग सकता है। किसी पत्रकार को नापसंद किये जाने का, हमारा निर्णय, यदि हमारे, उसके इंसानी-पक्ष की नापसंदगी के कारण है, तो क्या यह सही है ?

लोकतंत्र में, सत्ता के खिलाफ बोलना, सत्ता को उसकी कमियां दिखाना, बतलाना, कितना मुश्किल काम है, अगर आपको यह नहीं पता है तो एक बार अपने चैनल पर यह करने की कोशिश कीजिए, आपको सब समझ में आ जाएगा (हो सकता है आप समझते हों तभी ख़त लिखा...) यह आप सत्ता की खिलाफ़त नहीं कर सकते। वह जिसे पत्रकारिता कहते हैं, इस समय, पत्रकारों की समझ से गायब है। आसान जिंदगी की चाहत में, पत्रकारिता के कठिन रास्ते को, ओवरब्रिज बनाकर आसान तो कर दिया है, लेकिन उस ओवरब्रिज पर — जिस पर सत्ता की मखमली कालीन बिछी हुई है — कुछ गिने-चुने पत्रकार पांव नहीं रखते। वह नीचे के, कठिन रास्ते पर चल रहे होते हैं, यह वही रास्ता है, जिसके रोड़े समाज को लहूलुहान कर रहे होते हैं। रोड़े हटाने और अनभिज्ञ जनता को उन में दबकर मरने से बचाने के बजाय, जो पत्रकार मखमली ओवरब्रिज पर चढ़े, नीचे गड्ढों को भरते पत्रकारों पर हमला कर रहे होते हैं, वह पत्रकार नहीं है: सत्ता के दलाल है।

रवीश को निजी तौर पर जितना मैं जानता हूं, वह थोड़ा ही है, लेकिन उस थोड़े में भी, मुझे यह अच्छी तरह मालूम है कि रवीश किसी की सहायता कर सकने का, झूठा दावा नहीं करते, हमारे यहां कहावत है: दाता से सूम भला जो ठावें देय जवाब। रवीश का एक इंसान के रूप में, एक दोस्त के रूप में, सहायता से इंकार कर देना, कितना गलत है, और कितना सही, यह निर्णय हम नहीं ले सकते। झूठी दिलासा देने के बजाय सत्ता के सच्चे-झूठ का पर्दाफाश अधिक ज़रूरी है।



मुझे नहीं समझ में आता कि आप को, इस बात से क्या दिक्कत हो सकती है, जब कोई इंसान अपनी मेहनत के बदौलत किसी ऊंचाई पर पहुंचता है, तो वह क्यों खुश नहीं हो, वह क्यों अपनी खुशियों का इजहार, अपने माता-पिता से नहीं कर सकता? आपका अनुभव अलग हो सकता है, किंतु मेरा अनुभव यही है कि संतान के आगे बढ़ने पर, सबसे ज्यादा खुश, उसके माता पिता होते हैं, अपने संतान को ऊंचाई पर पहुंचा देखने पर, मां बाप, जितनी खुशी से, जितने उल्लास से और जितने बच्चे बनकर अपनी संतान की उपलब्धियों को बता रहे होते हैं, वह मार्केटिंग नहीं कर रहे होते हैं, वह खुश होते हैं। आखिर किस बेटे की बात आप कर रहे हैं जो अपनी उपलब्धियों को पिता से ना बताएं। या पिता को बताने के बहाने हम सबको न बताये, आपको इसमें जो दिख रहा है, उसका दूसरा पक्ष भी है: जब कोई, जमीन से जुड़ा, अपने अनुभवों को, दूसरों से साझा करता है तब वह हजारों-हजार उम्मीदों को पोषित करता है। हम, सफल लोगों की, आत्मकथाएं, किसलिए पढ़ रहे होते हैं? आपके हिसाब से तो उन सारी आत्मकथा के नायक अपने को ‘आई एम अ सेलेब्रिटी’ बता रहे हैं ?

हम पेशा लोगों की, साथियों की तनख्वाहें, हम पेशा लोगों की और साथियों की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं! जितनी जलन, साथी की तनख्वाह के बढ़ने पर हो रही होती है, उतनी और कहीं नहीं, यह यूनिवर्सल है, माने आप अकेले नहीं हैं। हां, तब आप अकेले हो गए, जब आप रवीश की तनख्वाह को लेकर, अपने दुख को, अपने ख़त में लिखते हैं...

मुझे लगता है आप पत्रकारों की हत्याओं से अनभिज्ञ हैं। ज़रा पता कीजिए, मोदी-सरकार बनने के बाद से, सत्ता के खिलाफ लिखने वाले, कई पत्रकारों की, निर्मम हत्या हुई है। जो लोग मखमली ओवरब्रिज पर हैं, वह प्रोटेक्टेड है। लेकिन नीचे जहां देश है, वहां हत्याएं हो रही हैं और रवीश ही नहीं, उनके जैसे और भी लोग हैं, जिन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी उतनी सुरक्षित नहीं है। यह अकारण नहीं है : लोगों को बाकायदा फोन आते हैं, इमेल आती हैं, सोशल मीडिया पर खुलेआम धमकियां मिलती हैं, महिला पत्रकारों को बलात्कार की धमकी दी जाती है। आपको शायद ना पता हो मगर इन धमकियां देने वालों में, ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदीजी ट्विटर पर फॉलो करते हैं, जिनकी तस्वीरें सरकार के मंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री तक के साथ खींची होती हैं। यह आपको नहीं पता है! क्योंकि, अगर आपको पता होता तो आप के मन में, रवीश द्वारा प्रधानमंत्री को लिखी गई चिट्ठी पढ़ने के बाद, उठने वाले सवाल नहीं उठते; अगर आपको पता होता तो आप बीमार रवीश को नहीं बल्कि उस मानसिकता को, जिसके कारण पत्रकारों की हत्याएं हो रही हैं, और उन सबको, जो इस मानसिकता को पोषित कर रहे हैं, बीमार मानते और लिखते।

आप कहते हैं कि ‘टीवी पर गरीबों का मसीहा दिखने और सच में होने में फर्क होता ही है’, यह पढ़ने के बाद मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपने यह बात रवीश के लिए लिखी है, या फिर उसके लिए जिसे बकौल आपके ‘रवीश चुनौती देकर हीरो दिख रहे हैं’?

संस्थान की बातों को खत में आपने किस कारण से लिखा है, यह आप ही जानते होंगे, क्योंकि संस्थानों को जानने वाला, यह जानता है कि संस्थानों की अपनी-अपनी राजनीति होती है, जिससे बाहर के लोगों का कोई लेनादेना नहीं होता, हां यह है कि जो नहीं जानता रहा होगा वह अब आपके ख़त से जान सकता है।



आप का एक किस्सा अच्छा लगा जिसमें आप बताते हैं कि आपने कोई फेसबुक पोस्ट प्रधानमंत्री के फेवर में लिख दी थी और आपको नौकरी से निकाले जाने की धमकी दे दी गई थी। वह धमकी थी यह तो आप खुद ही कह रहे हैं, लेकिन उस पोस्ट को लिखने का क्या फायदा हुआ, यह आज हमें दिख गया।

खैर मैं यह सब इसलिए लिख रहा हूं कि वह कुछ पत्रकार जो मखमली ओवरब्रिज पर चारण- भाट की तुरही बजा रहे हैं, वह राजदीप सरदेसाई, अभिसार शर्मा, ओम थानवी, सागरिका घोष, पुण्य प्रसून बाजपेई, रवीश कुमार, सिद्धार्थ वर्धराजन, श्रीनिवासन जैन आदि नीचे खड़े पत्रकारों को घेरने की कोशिश, नहीं करें। आप आनंद में रहिये, इन्हें और हम सब को, बीमार लोगों की बीमारियां बताने, और इलाज करने दीजिए, क्योंकि अगर देश बिस्तर पर पड़ गया तो उसे उठाने की शक्ति आप में नहीं है।

धन्यवाद
भरत तिवारी
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04--10-2017) को
    "शुभकामनाओं के लिये आभार" (चर्चा अंक 2747)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

दमनक जहानाबादी की विफल-गाथा — गीताश्री की नई कहानी
वैनिला आइसक्रीम और चॉकलेट सॉस - अचला बंसल की कहानी
जंगल सफारी: बांधवगढ़ की सीता - मध्य प्रदेश का एक अविस्मरणीय यात्रा वृत्तांत - इंदिरा दाँगी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
अखिलेश की कहानी 'अँधेरा' | Hindi Kahani 'Andhera' by Akhilesh
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
समीक्षा: अँधेरा : सांप्रदायिक दंगे का ब्लैकआउट - विनोद तिवारी | Review of writer Akhilesh's Hindi story by Vinod Tiwari
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES