head advt

मैनें कब माँगी खुदाई मुस्कुराने के लिए... #shair #ghazal


Lucy of UK, at Firoz Shah Kotla fort

मैनें कब माँगी खुदाई मुस्कुराने के लिए

डॉ. एल.जे भागिया ‘ख़ामोश’  की ग़ज़ल





    मैनें   कब   माँगी   खुदाई    मुस्कुराने   के   लिए,
    चंद  तिनके  ही  तो   माँगे   आशियाने   के   लिए

    मैं  ये  समझा  इश्क़  मेरा   खींच  लाया  है   उन्हें,
    वो   मगर   आये   थे  नक़्शे-पा   मिटाने  के  लिए

    ज़िक्र आँखों  का  करूँ  मैं  या अदाओं  का  तेरी,
    तू   सरापा   है   ग़ज़ल   इक  गुनगुनाने   के  लिए

    सोचकर  देखो  मिली  है  दो  ही  आँखें  क्यूँ  हमें,
    इक है पीने के लिए  और  इक   पिलाने   के  लिए

    तर्के-दुनिया  और   तर्के-दर्द    ही   काफ़ी    नहीं,
    तर्के-मौला  भी  करो  तुम  खुद को  पाने के  लिए

    भूख लगने पर जो  पीकर अश्क़ जीते हैं 'ख़ामोश',
    ऐ  ख़ुदा  दे ज़हर  ही  कुछ  उनको  खाने के लिए



डॉ. एल.जे भागिया  ‘ख़ामोश’
जन्म : 23.01.1953, वड़ोदरा,गुजरात
संपर्क : F-501,टिवोली, गोदरेज गार्डन सिटी, जगतपुर अहमदाबाद-382470
मोबाईल: 9879099185 लैंड-लाइन 079-40399185 
ई-मेल : ljbhagia@rediffmail.com


००००००००००००००००

SEARCH