औरतों की हँसी — देवदत्त पट्टनायक @devduttmyth (अनुवाद भरत तिवारी)


हँसी तो औरत... ?

देवदत्त पट्टनायक के अंग्रेजी लेख 'The laughter of women' का हिंदी अनुवाद: भरत तिवारी

औरतों की हँसी — देवदत्त पट्टनायक (अनुवाद भरत तिवारी)

हँसती स्त्रियों के इस चक्र को आज कम ही लोग जानते हैं। लेकिन ऐसे बहुत लोग हैं जिन्हें यह पता है कि महाभारत में, स्त्री की हँसी, कैसा ख़तरनाक मोड़ पैदा करती है।

औरतें हँस सकती हैं, लेकिन आदमी पर नहीं 
कालिदास को पढ़ते समय स्त्रियों को राजा के बाग़ में गाने, नृत्य करने, खेलने और हँसने के लिए बुलाये जाने के दृश्य नज़र आते हैं। कहा जाता था कि स्त्रियों की हँसी सुनकर पेड़ों से फूल झरने लगेंगे। उनकी हँसी उनकी सुरक्षा और ख़ुशी की भावना दिखाती थी। इसे मंदिरों की दीवारों और बौद्ध स्तूपों की सीमाओं पर उकेरा गया। इससे बनने वाला सकारात्मक ऊर्जा का घेरा, बुरी भावनाओं को अन्दर नहीं आने देता था।

हँसती स्त्रियों के इस चक्र को आज कम ही लोग जानते हैं। लेकिन ऐसे बहुत लोग हैं जिन्हें यह पता है कि महाभारत में, स्त्री की हँसी, कैसा ख़तरनाक मोड़ पैदा करती है।

दुर्गा को यह पता है, इसीलिए  युद्ध के मैदान में प्रवेश करते हुए वह 

दुर्योधन को फिसल कर तालाब में गिरते देख द्रौपदी हँसती है और उसे “अँधे राजा का अँधा बेटा” कहती है। दुर्योधन इससे इस कदर अपमानित महसूस करता है कि वह द्रौपदी को एक रोज़ सरेआम अपमानित करने की कसम खाता है। यह कहानी बार-बार दोहराई जाती है। एक औरत का एक आदमी पर हँसना , आदमी का इतना बड़ा अपमान माना जाता है कि औरत को सरेआम बेइज्ज़त किया जाना, सही ठहराने के लिए काफ़ी होता है। औरतें हँस सकती हैं, लेकिन आदमी पर नहीं।

हँसने वाली औरतों को शापित होना पड़ता है


हँसने वाली औरतों को शापित होना पड़ता है 
नाथ-सम्प्रदाय में एक कहानी सुनाई जाती है — एक दफ़ा सिंहल द्वीप की राजकुमारी मैनाकिनी आकाश को देख रही थी, उसे आकाश में रथ पर सवार एक देव नज़र आता है। हवा के कारण देव का अंगवस्त्र उसकी कमर से नीचे खिसक जाता है और उसके जननांग दिखने लगते हैं। अब यह देख राजकुमारी हँसने लगती है। देव उसे हँसता देख लेता हैं और समझ जाता है कि वह उसके जननांग को देख हंस रही है। देव अपमानित और शर्मिंदा महसूस करते हुए उसे श्राप देता है, “अब तुम्हें बाकी ज़िन्दगी त्रिया राज्य, यानी स्त्री राज्य में बितानी पड़ेगी।“ मतलब राजकुमारी को औरतों के देश में रहना पड़ेगा, जहाँ न कोई आदमी होगा, और इसलिए न उसका जननांग, और न राजकुमारी की वह हंसी... दोनों ही कहानियों में हँसने वाली औरतों को शापित होना पड़ता है।

हंसी जिस पर हँसा जा रहा होता है उसकी ताकत छीन कर हंसने वाले को दे देती है। दुर्गा को यह पता है, इसीलिए  युद्ध के मैदान में प्रवेश करते हुए वह महिसा और उसकी असुर सेना पर हँसती हैं।

जिन देशों के/ राजाओं को / पता नहीं हो, मजाक क्या 
जब स्टैंड-अप कॉमिक किसी बात या किसी पर चुटकी लेते हैं, उनका मजाक असल में किसी सामाजिक समस्या, या पारिवारिक सच्चाई की असलियत बताता उस-पर व्यंग्य होता है। दर्शक अलग-अलग जातियों, नेताओं, पत्नियों, बच्चों, आप्रवासियों, विदेशियों, गर्लफ्रेंडों, बॉयफ्रेंडों की आदतों को पेट पकड़ कर हँसते हँसते सुनते हैं। जो हँसता है उसे ताकत और ख़ुशी का अहसास होता है।

जिस पर हँसा जा रहा होता है उससे मजाक झेलने के लिए कहा जाता है। लेकिन हर कोई मजाक और उसकी हंसी में छुपी मनोवैज्ञानिक मार को नहीं झेल पाता है। एक मजाक, एक चुटकुला चोट दे सकता है, अपमानित कर सकता है, शर्मिंदा कर सकता है। जिससे कुछ लोग इसपर प्रतिबंध की मांग उठा देते हैं। अब सरदारों पर चुटकुले नहीं। समलैंगिकों या कालों या ट्रम्प या धर्म या अमेरिकियों या महिलाओं पर.... और अधिक चुटकुले नहीं। औरतों के मजाक करने से गुस्सा उबाल मारता है। और इसलिए यह वाला बारम्बार बहाना : महिलाओं की स्टैंड-अप कॉमेडी में “वो” मजा नहीं होता।

प्राचीन कालीन जोकर, संस्कृत नाटक के विदूषकों को हंसी की मारक क्षमता पता थी। इसलिए वे अपने चेहरों को रंग-पोत कर, उलटे-सीधे कपड़े पहनकर, खुद को मजाक बना लेते थे ताकी जिसका मजाक उड़ाया जाये वह संतुष्ट रहे। यह सावधानी यह चिंता, अभिव्यक्ति की आजादी को उपहास की आजादी मानते हुए, आधुनिक काल के कई कॉमिक नहीं करते।

जिन देशों के
राजाओं को
पता नहीं हो, मजाक क्या
वहां दांव पर
रख अपनी जाँ
करते व्यंग्य
स्टैंड-अप कॉमिक


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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