देवदत्त पटनायक ने चमत्कार कर दिखाया — ममता कालिया


ज्ञान गुणसागर की प्रार्थना — ममता कालिया

ज्ञान गुणसागर की प्रार्थना 

रविवासरीय हिंदुस्तान से...





ऐसे समय में जब आधुनिकता और पश्चिमीकरण की दौड़ में हम अपनी प्राचीन भक्ति और धर्म से दूरी बना चुके थे, यकायक शिक्षित समाज के कुछ विद्वानों ने धर्म और इतिहास केंद्रित पुस्तकों को नवीन पद्धति से परखना शुरू किया। पारंपरिक और पौराणिक मिथकों को तर्कसंगत ढंग प्रस्तुत करने के लिए प्रसिद्ध देवदत्त पटनायक ने अपनी पुस्तक ‘मेरी हनुमान चालीसा' में यह चमत्कार कर दिखाया है। जो चालीसा प्रेमी गीता प्रेस की पतली-पतली चालीसा पुस्तिकाओं के अभ्यस्त हैं, हो सकता है उन्हें एक सौ पचानबे रुपये की यह नयनाभिराम पुस्तक महंगी लगे। लेकिन जो लोग चालीसा के निहायत सरल-से लगने वाले रूप में छिपे गूढार्थ का ज्ञान अर्जित करने को उत्सुक होंगे, उन्हें यह पुस्तक अच्छी लगेगी। इसमें प्रत्येक छंद की सारगर्भित व्याख्या की गई है।

मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई इस पुस्तक का सरल सुबोध अनुवाद भरत तिवारी ने किया है। हममें से जो मित्र अब तक भरत तिवारी को एक छायाकार, पत्रकार के रूप में जानते थे, जरा संभल जाएं। इस अनुवाद से  स्पष्ट है कि भरत के पास बड़ी समर्थ भाषा और भाव-संपदा है। यह पुस्तक अवधी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी में रूपांतरित होकर भी अपनी अर्थगर्भिता में अत्यंत समृद्ध है।

प्रायः मंगलवारों को हमने मंदिर के प्रांगण में हनुमान-भक्तों को बड़बड़ाहट, हड़बड़ाहट में हनुमान चालीसा के छंदों को गड़बड़-पाठ करते देखा है। विवाह के मंत्रों की तरह अबूझ, अगम्य होते हैं ये मंगलवारी पाठ। उन भक्तों से पूछा जाए तो वे शायद इसका अर्थ न समझा पाएं। वास्तव में ऐसे भक्तों के लिए हनुमान चालीसा मुख्य रूप से आस्था की चीज है। इसलिए वे इस पुस्तक से और किसी चीज की शायद  ही अपेक्षा करते हों। लेकिन देवदत्त पटनायक ने अपनी पुस्तक में आस्था को अक्षुण्ण रखते हुए इसमें अंतर्निहित पौराणिकता के सूत्रों का उद्घाटन भी बाखूबी किया है।

मेरी हनुमान चालीसा, देवदत्त  पटनायक, अंग्रेजी से अनुवाद : भरत तिवारी, रूपा पब्लिकेशंस, मंजुल प्रकाशन,  मूल्य : 195 रुपये।
हिंदुस्तान से साभार





(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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