“दीदी! क्या सचमुच के डेविल होते हैं..?” बंटी ने सहज बालोचित्त जिज्ञासा से पूछा।” कहानी को दुबारा सुनने के बाद वह सहम गया था। “हाँ! दादी कहती है। टी.वी. में भी दिखाया जाता हैं, मीनस् होते हैं।”

"रेपिस्ट"
राजेश झरपुरे
जेठ की शाम।कॉलोनी में घरों के दरवाज़े खुलते तो बच्चों का समूह इमली के पेड़ के नीचे इकट्ठा हो जाता। पेड़ बहुत घना है। उसके नीचे और आसपास खूब छाँव और शीतलता रहती हैं। उसके छोटे-छोटे सूखे पत्ते सब घरों के बच्चों को न्यौता देना नहीं भूलते। बच्चों की माँएँ बहुत चिढ़तीं। पूरा आँगन न्यौते से भर जाता। जेठ की दुपहरी में घरों में कैद, कूलर पंखों की हवा से कुम्हलाए बच्चों की किलकारियाँ पेड़ के सान्निध्य में आकर चमक उठती। यह चमक दोपहर की चमक से ज़्यादा तीक्ष्ण और उन्मुक्त होती।
अपनी कारपोरेटेट सोच के अधीन कॉलोनाईज़र ने उनके सीने में चोरी-छुपे हींग भरवाकर उन्हें सुखाकर गिरा देने का षड्यंत्र रच डाला। जैसे कोई शत्रु को स्लो पाईज़न देने का रचता हैं। हालाँकि कॉलोनाईज़र इस तरह का पाप करने से पूर्व क्षणभर के लिए दहल गया था पर उसने हेतु पर ध्यान गड़ाये रखा। उसका लोभ, लाभ तक आसानी से पहुँच रहा था। उसने शीघ्र ही अपने डर पर विजय पा ली। वह उसी रास्ते पर चल पड़ा जहाँ उसका लाभ था। इस तरह पाप के रास्ते पर चलने से पूर्व उसने पेड़ों से कहा था “...चलो! मैं तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हें जंगल तक छोड़ आता हूँ। तुम वहाँ रहना अपने बंधु-बांधव के साथ। हम यहाँ अपने वालों के साथ ठीक-ठाक तरीके से रह लेंगे। हम और हमारे लोग लगातार बढ़ते जा रहे हैं। तुम्हें हमारे लिए कुछ जगह तो छोड़ना ही पड़ेगा।” यह उसकी भलमनसाहत थी। पर पेड़ नहीं माने। पेड़ मानते भी नहीं। उनका स्वभाव झुक जाना हैं। उन्होंने झुककर विनम्रता से कहा “...यह सम्भव नहीं। तुम मनुष्य हो। तुम अपना नला कटने के बाद पृथक अस्तित्व में आते हो। हम पेड़ हैं। अपने नले और जड़ों से जुड़कर ही जीवित रह सकते हैं। तुम हम पर दया करो। हमें यहीं रहने दो।” पहले एक पेड़ झुका फिर सभी पेड़ ने झुककर विनती की। कॉलोनाईज़र तो व्यापारी ठहरा। वह व्यापार के मामले में अपने बाप का भी कहा नहीं मानता था। ये तो फिर बेचारे पेड़ थे। वह नहीं माना। उसने पेड़ों की विनती ठुकरा दिया। उसने हींग की बात मानी। हींग पेड़ से अधिक ताकतवर था। उसे अपने से कमजोर लोगों के आगे झुकना और उनकी बातें सुनना बिल्कुल पसंद नहीं था। हींग उसके व्यापार के पक्ष में था। वैसे भी उसे चीज़ों और लोगों का अपने विपक्ष में होना पसंद नहीं था। यही कारण था कि नक़्शे में दिख रहे पेड़ उसकी पहली नापसंद बन गये।
हींग ने एक पक्के दोस्त की तरह वायदा किया। उसने दो साल का वक़्त माँगा। कॉलोनाईज़र अपने स्वार्थ के लिए दो साल रुक सकता था पर हींग ने सच्ची दोस्ती निभाते हुए उस हरे भरे भूखंड़ को दो साल से कुछ महीने पहले ही सफ़ाचट कर दिया। भूखंड समतल मैदान में बदल गया। बस! बचा रहा इमली का पेड़। यद्यपि उसके भी सीने में ड्रील कर दिया गया था। हो सकता है जल्दी और कोई देख न ले के डर से मजदूर भाई उसमें हींग डालना भूल गये हो। जब सब पेड़ सूख कर गिर गये तो पता चला वह नक़्शे के हिसाब से गली नंबर पाँच और छः के बाईस फीट चौड़े रास्ते के आखिर में आ रहा हैं। वहाँ उसके होने से निर्माण कार्य और कॉलोनी की सुन्दरता में कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हाँ! थोड़ा आकर्षण ज़रूर बढ़ रहा हैं।
इस तरह उसका होना बना रहा। वह जल्द ही बन और बस गई कॉलोनी का हिस्सा हो गया। आस-पड़ोस में लोग भले ही एक-दूसरे में बातचीत न करते हो। एक-दूसरे के घरों में उनका आना-जाना न हो पर वे सब इमली के पेड़ के पास तक अवश्य आते जाते। कॉलोनी की अन्य गलियों की अपेक्षा, गली नम्बर पाँच-छः में कुछ ज़्यादा आवाज़ाही रहती। इसी गली में 34 नम्बर डुप्लेक्स में रहने वाली नीतू की मम्मी को इमली का पेड़ फूटी आँख नहीं सुहाता था। उसका मानना था “...पेड़ भी शुभ-अशुभ फलदायी होते हैं। पेड़ में या तो देव रहते है या दानव। यह उनका गृह कहलाते हैं। इमली का पेड़ तो बड़ा ही अशुभ होता है। इसमें शैतान का डेरा होता हैं। मेरा बस चले तो इसे तुरन्त कटवाकर फिकवाँ दूँ।” स्वीटी की मम्मी जो नीतू की मम्मी की पड़ोसन है- इस बात से इत्तफ़ाक नहीं रखतीं। वह कहती “... घर के आसपास पेड़ होने चाहिए। हमें शुद्ध वायु मिलती हैं। शुद्ध वायु जहाँ से मिले वह शुभ। पेड़ पर न देव रहते हैं न दानव। पेड़ पर पक्षियों का घोंसला होता हैं। वे रहते हैं वहाँ। उनका कलरव किसी मधुर संगीत से कम नहीं होता। आप जो बता रही हैं, वह सब कहीं-सुनी बातें हैं। जो प्रत्यक्ष हैं- आप उसे देखें और महसूस करे।” नीतू की मम्मी स्वीटी की मम्मी से सहमत नहीं हो पाती। वह डरती है। उसका ज्ञान उसे डरपोक बनाता है। वह अपने डरपोक स्वभाव के कारण सदैव अपनी बेटी नीतू को पेड़ के समीप जाने से रोकती रही है पर बच्चे कहाँ मानते..?
गली नम्बर पाँच-छः में रहने के कारण नीतू और स्वीटी का इमली के पेड़ पर पहला हक है, ऐसा उन दोनों का मानना था। गली नम्बर तीन-चार से जब डॉली, मिनकी, रितू और बंटी आकर पेड़ के नीच़े बॉल उछालने लगे तो नीतू का माथा ठनका। वह अभी तैयार ही हो रही थीं। कल उसका हैप्पी बर्थ डे है। यह बात वह अपने सभी फ्रेन्ड्स को बताना चाहती थीं। उसने सोचा सभी फ्रेन्ड्स पहले उसके घर आयेंगे तब वह उनको बतायेगी और उन्हीं के साथ पेड़ के नीचे खेलने चले जायेगी। सभी फ्रेन्डस को देखकर मम्मी नाराज़ नहीं होती। वह तनिक उदास हो गई लेकिन मम्मी के मुँह फेरते ही वह गेट से बाहर निकलकर पेड़ के समीप पहुँच गई। उसके घर के गेट के खुलने की आवाज़ सुनकर पड़ोस से स्वीटी भी दौड़ी चली आईं।
पक्षी अपने घोंसले में लौट रहे थे। बच्चों का हँसना, खिलखिलाना और पक्षियों का कलरव पेड़ की खिलखिलाहट में बदल गया। भरी दुपहरी में तेज़ धूप और लू के थपेड़े सहने के बाद भी वह मुसकरा रहा था। कॉलोनी की अन्य गलियों से भी बच्चे दो-दो, तीन-तीन के ग्रुप में आने लगे थे। स्वीटी और नीतू पेड़ का चक्कर लगा रही थीं। अन्य बच्चों ने भी बॉल को एक तरफ़ कर दिया और उनके पीछे पेड़ का चक्कर लगाने लगे। पेड़ बच्चों के लाड़-प्यार से बंध चुका था। वह सदैव इस तरह के बंधन के लिए आतुर रहता पर बच्चे शाम को ही घर से निकल पाते थे। वह शाम से उनकी प्रतीक्षा करता। जब सारे बच्चे उसके इर्द गिर्द इकट्ठे हो जाते तो वह भी एक बच्चे की तरह झूम उठता।
दौड़-भाग के खेल में मिनकी अचानक औंधे मुँह गिर पड़ी। पेड़ की जड़ का ऊपरी सिरा सतह पर झांक रहा था। उसकी सेंडिल का अग्र भाग उससे टकरा गया। बच्चे अचानक थम गये। नीतू ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया और पेड़ से टिकाकर बैठा दिया। स्वीटी ने उसकी फ्राक से इमली के सूखे पत्तों को झाड़ा। उसके घुटने छिल गये थे। मिनकी ने स्वीटी से कहा “...स्वीटी तेरा घर पास है। जा! दौड़कर कोई एन्टीसेप्टिक क्रीम ले आ। बहुत दर्द हो रहा होगा बेचारी को।” स्वीटी ने कुछ सुना और कुछ नहीं। वह दौड़कर घर से बोरोप्लस का ट्यूब उठा लाई। रितू ने झट उसके हाथ से टूयब लेकर मिनकी के घुटने में लगा दिया। बंटी घुटने के बल बैठा था। वह मिनकी के घुटने से रिसते खून को अपने नन्हें-नन्हें हाथ से पोंछता हुआ लगातार फूंक मार रहा था। मिनकी न रो रही थी, न सिसक रही थी। बस! सहमी हुई थी। उसे डर था -मम्मी नाराज़ होगी। डांटेगी। ज़्यादा गुस्सा हुई तो दो-चार थप्पड़ भी जड़ सकती है।
नीतू के मुख पर अतिरिक्त प्रसन्नता छा गई थ। मम्मी-पापा द्वारा लाई लाईट ग्रीन कलर की फ्रॉक उसकी आँखों के सामने तैर गई। केक और टॉफ़ी तो कल पापा ऑफ़िस से लौटते समय लायेंगे। बच्चों की उदासी के साथ पेड़ की उदासी भी छटने लगी। हवा का एक गुनगुना सा झोंका आया। सब बच्चों के मुख हलकी धूल से नहा गये।
“ऐ मिनकी! तेरी दादी ने तुझे जो डेविल वाली कहानी सुनाई थी न वैसी ही कहानी कल टी. वी. पर आई थी...” डॉली ने कहा।

राजेश झरपुरे
सम्पर्कःतात्या टोपे वार्ड नम्बर 40,
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“दीदी! क्या सचमुच के डेविल होते हैं..?” बंटी ने सहज बालोचित्त जिज्ञासा से पूछा।” कहानी को दुबारा सुनने के बाद वह सहम गया था। “हाँ! दादी कहती है। टी.वी. में भी दिखाया जाता हैं, मीनस् होते हैं।” डॉली ने कहा। वह राक्षस जैसी किसी चीज़ के धरती पर होने की बात को अपने मन में पक्के तौर पर बैठा चुकी थीं। सभी बच्चों को भी राक्षस शब्द से डर लगता था। उन्होंने सचमुच का राक्षस नही देखा था। उनकी कल्पना में दो सींग, लम्बे-लम्बे नाखून, बड़े-बड़े बाल और विकराल देह वाले किसी आदमकद की तस्वीर को जड़ दिया गया था। वे सब उसे राक्षस मानने लगे। “हाँ! बहुत डेन्जरस् होते हैं- डेविल। स्वीटी ने हाथ की अंगुलियों को पंजे की तरफ़ मोड़कर बंटी को डराते हुए कहा। वह सचमुच डर गया। पीछे हटा और मिनकी के गले में हाथ डालकर उससे लिपट गया।
“डरपोक! डरपोक!! डरपोक!!!
कहकर सभी बच्चे उसे चिढ़ाने लगे।
बंटी को भी ताव आ गया। उसने मिनकी के गले से हाथ निकालकर ऊपर उठाया और जोर से चीखा “...तुम सब डरपोक हो। बंटी नहीं है।”
फिर ख़़ुद भी अन्य बच्चों की तरह चिल्लाने लगा... “डरपोक! डरपोक!! डरपोक!!!”
डर और साहस के बीच बंटी की डाँवाडोल होती नाव को देखकर सभी बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े। इस सामूहिक हँसी में बंटी की भी छोटी-सी हँसी शामिल थी जिसे सागर में उठने वाली बड़ी लहरों के बीच एक छोटी और ताकतवर लहर के रूप में स्पष्टता महसूस किया जा सकता था। इस हँसी में पक्षियों का कलरव और पेड़ का उन्माद भी शामिल था। मंद-मंद चल रही बयार में वह भी बच्चों की तरह झूम रहा था।
स्वीटी ने जोर से चिल्लाकर कहा “...भागो! भागो!!”
सब बच्चे भागकर अपने-अपने घर चल दिए।
बंटी असामंजस्य में वहीं खड़ा रहा। उसे समझ में नहीं आया। उसने ऐसा क्या पूछ लिया कि सब दीदी डरकर भाग गई...? वह कुछ समझ पाता उससे पहले एक ईगल इमली के पेड़ के ऊपर आकर बैठा। बंटी अपने आपको अकेला पाकर उसे देखकर डर गया और जोर से चीखकर कहने लगा... भागो! भागो !! ईगल आया है। सभी बच्चे पहले ही दौड़ पड़े थे। वह भी दौड़कर अपने घर की तरफ़ चल पड़ा।
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