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रवीश कुमार की बेहतरीन से बेहतर बगैर लाग-लपेट दो-टूक | Ravish Kumar ki Aaj ki News


अब यूपी को भी इंटरनेट बंदी की आदत होते जा रही है...रवीश कुमार

दिल्ली के टीवी स्टूडियो थीम और थ्योरी की बहस में चले गए हैं, जबकि ग्राउंड पर अब भी कहानियां आप तक पहुंचने के लिए सिसक रही हैं. 


18 साल के आमिर हंज़ला को उसके पिता टीवी के डिबेट से लेकर पटना की गलियों में ढूंढ रहे हैं.

क्या दुनिया की कोई पुलिस है जो भारत की पुलिस को बता सके कि इंटरनेट चालू होते हुए कानून व्यवस्था कैसे संभाली जा सकती है? जिस तरह से बात-बात में भारत में इंटरनेट बंद होने लगा है उससे लगता है कि हमारी पुलिस को सारा काम तो आता है, लेकिन जब इंटरनेट चलता है तो वह कानून व्यवस्था नहीं संभाल पाती है. आईटी सेल खुलेआम गालियां से लेकर धमकियां लिखते रहते हैं, पुलिस को उनसे ख़तरा नहीं होता है. लेकिन ऐसा क्यों होता है कि वैसे पोस्ट वाले ही ज़्यादातर गिरफ्तार होते हैं जो सरकार पर सवाल या कटाक्ष करते हैं?





अच्छी बात है कि अब प्रोफसरों की बिरादरी को भी फर्क नहीं पड़ता कि उनके सहयोगियों को गद्दार कहा जाता है. वाइस चांसलर को यह बात बुरी नहीं लगती है ये सबसे अच्छी बात है.

हांगकांग में 15 मार्च से प्रदर्शन चल रहे हैं मगर वहां पर इंटरनेट बंद नहीं हुआ है. वहां कारण यह था कि इंटरनेट बंद हुआ तो भारी आर्थिक नुकसान होगा. कश्मीर में नेट बंद होने से ही 10,000 करोड़ के नुकसान का अनुमान है फिर भी इंटरनेट बंद हुआ. यही नहीं हांगकांग का प्रदर्शन लंबा चला, पुलिस से टकराव हुआ, हिंसा भी हुई लेकिन सिर्फ दो ही लोगों की मौत हुई. यूपी में एक हफ्ते के भी 19 लोगों की मौत हो गई है. कहीं संख्या 21 भी बताई जा रही है.

दुनिया में जहां कहीं भी लोकतंत्र नामक चीज़ है वहां पर 145 दिनों तक इंटरनेट बंद नहीं रहा है.
लद्दाख नामक नए केंद शासित प्रदेश के करगिल में 145 दिनों के बाद इंटरनेट शुरू हो गया है. इतने ही दिनों से जम्मू कश्मीर में भी इंटरनेट बंद है. साढ़े चार महीने से सुप्रीम कोर्ट में इंटरनेट बहाल करने की याचिका है. अभी तक फैसले का ही इंतज़ार है. कश्मीर टाइम्स की अनुराधा भसीन ने याचिका दायर की थी. दुनिया में जहां कहीं भी लोकतंत्र नामक चीज़ है वहां पर 145 दिनों तक इंटरनेट बंद नहीं रहा है. अब यूपी को भी इंटरनेट बंदी की आदत होते जा रही है. क्या कोई पुलिस की गालियां बंद करा सकता है? कई वीडियो में पुलिस सांप्रदायिक गालियां भी देती हुई सुनी जा सकती है. दिल्ली के टीवी स्टूडियो थीम और थ्योरी की बहस में चले गए हैं, जबकि ग्राउंड पर अब भी कहानियां आप तक पहुंचने के लिए सिसक रही हैं.

पटना के सोहैल अहमद अपने 18 साल के बेटे को 21 दिसंबर से ढूंढ रहे हैं. 
18 साल के आमिर हंज़ला को उसके पिता टीवी के डिबेट से लेकर पटना की गलियों में ढूंढ रहे हैं. 21 दिसंबर को पटना के फुलवारी शरीफ में सामने ये भीड़ आ गई और नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगों पर पत्थर मारने लगी. इसी तरफ से सामने खड़े प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलती हैं और 11 लोग घायल हो जाते हैं. पुलिस ने बेशक 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है, जिसमें गुड्डू चौहान और नागेश सम्राट पर कथित रूप से गोली चलाने के आरोप हैं. इसी गोलीबारी में आमिर ग़ायब हो गया. उसके पिता 21 तारीख से ढूंढ रहे हैं मगर आमिर का पता नहीं चल रहा है. हारुन नगर के सोहैल अहमद ने आमिर हंज़ला के पिता ने एफआईआर कराई है मगर अभी तक पता नहीं चला है.





बनारस की सवा साल की चंपक 19 दिसंबर से अपनी मां एकता शेखर और पिता रवि शेखर को ढूंढ रही है. बनारस की चंपक के मां और पिता जेल में हैं, क्योंकि वे नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुई रैली में हिस्सा लेने गए थे. हमारे सहयोगी अजय सिंह ने बताया कि जो 56 लोग गिरफ्तार हुए हैं, उन्हें पहले मजिस्ट्रेट के यहां ज़मानत की अर्जी दी लेकिन वहां खारिज हो गई. जब सेशन कोर्ट गए तो पुलिस केस डायरी नहीं दे सकी. इसलिए ज़मानत पर फैसला नहीं हो सका और 1 जनवरी की तारीख लग गई. इस तरह से सवा साल की चंपक को अपनी मां से और पिता से 5 दिन और दूर रहना होगा. 1 जनवरी को ज़मानत नहीं मिली तो चंपक का इंतज़ार लंबा हो सकता है. 19 दिसंबर से एकता शेखर और रवि शेखर जेल में बंद हैं. ज़ाहिर है अपने मां बाप को पास में न देखकर चंपक के दिलो दिमाग़ पर भी असर पड़ता होगा. अजय सिंह ने बनारस के एक वरिष्ठ मनोचिकित्सक से बात की.

जिस बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हुए ज़िंदगी गुज़री है वहां उनके नाम के आगे गद्दार लिख दिया गया है
आपने खबर सुनी होगी कि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के 51 प्रोफेसरों ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध किया और छात्रों से भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए अपील की. उस पत्र पर सबके दस्तखत हैं, लेकिन ख़ौफ इतना ज़्यादा हो गया है कि प्रोफेसर स्तर के शिक्षक भी मीडिया से बात नहीं कर पा रहे हैं. वे फोन उठा तो रहे हैं, लेकिन बोल नहीं रहे हैं. यही नहीं जिस यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हुए ज़िंदगी गुज़री है वहां उनके नाम के आगे गद्दार लिख दिया गया है.

कुछ दिन पहले मैं यूनिवर्सटी ऑफ कोलंबिया बर्कली गया था. अमरीका की नामी यूनिवर्सिटी है. यहां पर मैंने जो देखा वो आज के भारत की यूनिवर्सिटी में आप कल्पना नहीं कर सकते हैं. यहां प्रोफेसर के कमरे के बाहर नोटिस बोर्ड पर नारंगी रंग का यह छोटा सा पोस्टर भी प्रोफेसर को जेल भेजने के लिए काफी था. लेकिन यहां आराम से लगा है. किसी ने हटाया नहीं. इस पर लिखा है कि हम मांग करते हैं कि ट्रंप कुसी छोड़ें. मानवता के नाम पर हम इस फासीवादी अमरीका का विरोध करते हैं.

अच्छी बात है कि अब प्रोफसरों की बिरादरी को भी फर्क नहीं पड़ता कि उनके सहयोगियों को गद्दार कहा जाता है. वाइस चांसलर को यह बात बुरी नहीं लगती है ये सबसे अच्छी बात है. उधर एनआरसी और डिटेंशन सेंटर को लेकर कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे की पोल खोलने में बहुत मेहनत कर रहे हैं.




इज़ इक्वल टू की मेरी थ्योरी को सही साबित करने की प्रतियोगिता के बीच हम आपको हम राष्ट्रपति का अभिभाषण सुनाना चाहते हैं. 20 जून 2019 को संसद के संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा था कि मेरी सरकार ने यह तय किया है कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न की प्रक्रिया को प्राथमिकता के आधार पर अमल में लाया जाएगा, जबकि 20 दिसंबर को रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री ने कहा कि मेरी सरकार ने एनआरसी पर कभी चर्चा ही नहीं की.

आखिर जब सरकार ने चर्चा ही नहीं कि तब राष्ट्रपति के अभिभाषण का हिस्सा कैसे बन गया? 
कैमरे को भी जैसे पता है कि जब राष्ट्रपति एनआरसी ज़िक्र करेंगे तो किन्हें क्लोज़अप में रखना है यानि किन्हें दिखाना है. गृहमंत्री अमित शाह ताली बजाते हुए देखे जा सकते हैं. यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि राष्ट्रपति ने जिस मेरी सरकार का ज़िक्र किया वो प्रधानमंत्री मोदी की ही सरकार थी. आखिर जब सरकार ने चर्चा ही नहीं कि तब राष्ट्रपति के अभिभाषण का हिस्सा कैसे बन गया? आज दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में मार्च निकला. ज़ोर बाग में भीम आर्मी के चंद्रशेखर आज़ाद की रिहाई के लिए लोगों ने हाथ बांध कर मार्च किया, ताकि उन्हें किसी हिंसा के आरोप में गिरफ्तार न किया जा सके. यह मार्च पीएम के निवास तक जाना चाहता था मगर नहीं जाने दिया गया. इसके अलावा यूपी भवन के सामने भी जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी ने प्रदर्शन का आह्वान किया था. जो सबसे पहले और अकेले लड़की आई उसे भी डिटेन कर लिया गया. यहाँ धारा 144 लगी थी. ये लोग यूपी भवन को इसलिए घेर रहे थे क्योंकि इनके अनुसार यूपी में सैंकड़ों लोगों को गलत मुकदमों में फंसाया गया है.
संसद में जब कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि सावरकर ने ही नागपुर में सबसे पहले धर्म के आधार पर दो राष्ट्र के सिद्धात की बात की थी. इसके जवाब में अमित शाह ने यही कहा था कि सावरकर ने ऐसा कहा था या नहीं उसकी जानकारी नहीं है और वे खंडन भी नहीं कर रहे हैं. जबकि सावरकर ने ऐसा कहा है और कई किताबों में इसका ज़िक्र है. 
पुलिस प्रदर्शनकारियों पर हिंसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है. दिल्ली पुलिस ने 400 लोगों को पकड़ा मगर सबको बाद में छोड़ दिया. जामिया की सृजन चावला भी वहां पहुंच गई यह सुनकर कि उसकी यूनिवर्सिटी के छात्रों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है. सृजन चावला ने मौके से अपना बयान भेजा था हम आपको दिखाना चाहते हैं. जामिया के बाहर प्रदर्शनों का सिलसिला थमा नहीं है. जामिया के पास शाहीन बाग में भी महिलाओं का रात भर प्रदर्शन होता है. छात्र और शिक्षक तरह तरह से प्रदर्शन कर रहे हैं. 12 दिसंबर से ही यहां पर प्रदर्शन हो रहे हैं. शरद शर्मा ने वहां से रिपोर्ट भेजी है.

हमने अपने सहयोगी आलोक से पूछा कि एक हफ्ते में यूपी कितना बदल गया है.
दूसरी तरफ यूपी आज शांत रहा. कई ज़िलों में इंटरनेट बंद था. कई जगहों पर पुलिस ने फ्लैग मार्च किया. यूपी सरकार की एक प्रेस रिलीज जारी हुई है, जिसमें लिखा है कि बुलंदशहर में मुस्लिम समुदाय ने हिंसा नमाज़ के बाद हुई हिंसा पर अफसोस जताया है और हर्जाने के तौर पर पुलिस को 6 लाख 27 हज़ार, 507 रुपये का डिमांड ड्राफ्ट और पुष्प सौंपे हैं. 510 भी नहीं, 507 रुपये. कितना सही हिसाब है. इसी प्रेस रिलीज में लिखा है कि मुज़फ्फरनगर में मौलानाओं ने हिंसा के लिए माफी मांगी है. हमने अपने सहयोगी आलोक से पूछा कि एक हफ्ते में यूपी कितना बदल गया है.

सावरकर के साथ ज्योतिबा फुले और साहू जी महाराज के साथ बीच में भारत माता की भी तस्वीर है
वहीं, बीजेपी नागरिकता समर्थन कानून के पक्ष में बड़े अभियान की तैयारी कर रही है, जिसमें लोगों को प्रेरित किया जाएगा कि एक करोड़ लोग कानून के समर्थन में प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे. यह अभियान 5 जनवरी से शुरू होकर 15 जनवरी तक चलेगा. बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और दूसरे वरिष्ठ नेता अभियान में हिस्सा लेंगे. नागरिकता कानून के समर्थन में बीजेपी की कई जगहों पर सभाएं हो भी रही हैं. असम में मुख्यमंत्री सोनेवाल ने पहली बार समर्थन में रैली की और बड़ी सभा हुई. मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान में भी नागरिकता कानून के समर्थन में सभा हुई. इस मंच पर आप सावरकर का बड़ा सा पोस्टर देख सकते हैं. सावरकर के साथ ज्योतिबा फुले और साहू जी महाराज के साथ बीच में भारत माता की भी तस्वीर है. मंच का नाम संविधान सम्मान मंच रखा गया है. संसद में जब कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि सावरकर ने ही नागपुर में सबसे पहले धर्म के आधार पर दो राष्ट्र के सिद्धात की बात की थी. इसके जवाब में अमित शाह ने यही कहा था कि सावरकर ने ऐसा कहा था या नहीं उसकी जानकारी नहीं है और वे खंडन भी नहीं कर रहे हैं. जबकि सावरकर ने ऐसा कहा है और कई किताबों में इसका ज़िक्र है. अगस्त क्रांति मैदान में किस तरह के नारे लगे. नारे लग रहे थे कि विरोधियों की कब्र खुदेगी सावरकर की धरती पर, जेएनयू की कब्र खुदेगी सावरकर की धरती पर. ममता की कब्र खुदेगी सावरकर की धरती पर. बहरहाल नारे सुने और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इन्हीं बातों को मंच से दोहराया.





सोचिए मुंबई में दो-दो प्रदर्शन हुए, लेकिन वहां पर कोई इंटरनेट बंद नहीं किया गया है
मुंबई के ही आज़ाद मैदान में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन हुआ. आज़ाद मैदान और अगस्त क्रांति मैदान के बीच 4 किमी की दूरी है. आज़ाद मैदान में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में एक बड़ी सभा हुई. इंकलाब मोर्चा के बैनर तले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, एएमयू, जेएनयू, जामिया मिल्लिया, आईआईटी बांबे और मुंबई यूनिवर्सिटी के कॉलेज के छात्र शामिल हुए. सोचिए मुंबई में दो-दो प्रदर्शन हुए, लेकिन वहां पर कोई इंटरनेट बंद नहीं किया गया है. उमर खालिद, स्वरा भास्कर, ऋचा चड्ढा और वरुण ग्रोवर भी इस सभा में पहुंचे. कई सामाजिक संगठन के लोग भी शामिल हुए. पूजा ने आज़ाद मैदान से रिपोर्टिंग की है.

(NDTV वेबसाइट से साभार
ये लेखक के अपने विचार हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.)
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