Hindi Poetry: युवा कवि देवेश पथ सारिया की हिंदी कवितायेँ


Hindi Poetry: युवा कवि देवेश पथ सारिया की हिंदी कवितायेँ

अच्छी कवितायेँ

Hindi Poetry

युद्ध में हूँ

जीवट की यह बेला है
हर योद्धा युद्ध में अकेला है
सुदूर कहीं, गिरी-कंदराओं में
दिव्यदीप की खोज में हूँ
खिंची धनुष की प्रत्यंचा पर
नये नुकीले तीर में हूँ
पूर्वजों से चली आई
धारदार शमशीर में हूँ


तुम गा रही हो विरह के गीत 
युद्ध और विरह के असमंजस से जूझता 
विरह में भस्मीभूत मैं युद्ध में हूँ 
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क्या इन कविताओं ने ईमेल के इनबॉक्स में आने के बाद यह तय किया कि वह तब सामने आयेंगी जब कोरोना हमें तालाबंद कर देगा, क्या उन्हें पता था कि अब हम उन्हें बेहतर समझेंगे...

कविताओं को भविष्य मालूम होता है.

शिनचू, ताइवान की नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो देवेश पथ सारिया की यह कवितायेँ मिली तो बीस दिनों पूर्व थीं किन्तु पढ़ी आज हैं. पहली कविता आपने पढ़ी, आगे भी पढ़िएगा, देवेश की कविता एक जगह कहती है: बहुत कसकर मत बांधना तारों को/ यदि खोलना पड़े उन्हें कभी / तो किसी के चोट न लगे / गांठों की जकड़न सुलझाते हुए. और कहीं यह भी बतलाती है: थान से कटने से पहले की तरह/ हम जुड़ जाना चाहते हैं . बाकि आप पाठकों की प्रतिक्रिया बताएगी...

अच्छी कविताओं की बधाई युवा कवि डॉ देवेश पथ सारिया!

भरत तिवारी
शब्दांकन संपादक
29/3/2020

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युवा कवि देवेश पथ सारिया की हिंदी कवितायेँ 

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तारबंदी 

जालियों के छेद 
इतने बड़े तो हों ही 
कि एक ओर की ज़मीन में उगी 
घास का दूसरा सिरा 
छेद से पार होकर 
सांस ले सके 
दूजी हवा में 

तारों की    
इतनी भर रखना ऊंचाई 
कि हिबिस्कुस के फूल गिराते रहें 
परागकण, दोनों की ज़मीन पर 

ठीक है, 
तुम अलग हो 
पर ख़ून बहाने के बारे में सोचना भी मत 
बल्कि अगर चोटिल दिखे कोई 
उस ओर भी 
तो देर न करना 
रूई का बण्डल और मरहम 
उसकी तरफ फेंकने में  

बहुत कसकर मत बांधना तारों को 
यदि खोलना पड़े उन्हें कभी 
तो किसी के चोट न लगे 
गांठों की जकड़न सुलझाते हुए  

दोनों सरहदों के बीच 
'नो मेन्स लैंड' की बनिस्पत 
बनाना 'एवेरीवंस लैंड' 
और बढ़ाते जाना उसका दायरा 

धर्म में मत बांधना ईश्वर को 
नेकनीयत को मान लेना रब 
भेजना सकारात्मक तरंगों के तोहफे 

बाज़वक़्त
तारबंदी के आरपार 
आवाजाही करती रहने पाएं 
सबसे नर्म दुआएं 
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नेपथ्य से संगीत 

कान में बांसुरी की तरह 
बजती रही तुम्हारी पुकार 

शुक्र नेपथ्य में छूट गया था कहीं 
रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीच 
मैं सिर पर शौर्य पताका ताने 
सूर्य-सा चमकता खड़ा था 
मृत्यु के अँधेरे कोलाहल में 

इस विभीषिका में 
बांसुरी के संगीत की रौ में 
आंखें  मूँद बह जाने का अर्थ होता—
तीर का गले को बींधते चले जाना

बांस की धुन पर 
थिरकती रही तलवार 
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समान्तर ब्रह्माण्ड में 

वे जो समान्तर ब्रह्माण्ड में रखते हैं यक़ीन
अक्सर करते हैं कल्पना अपने प्रतिरूप की 
उस दूसरे ब्रह्माण्ड में 
उनकी कल्पना में शामिल होती है उम्मीद 
कि उनके प्रतिरूप होंगे 
सर्वसमर्थ होने की हद तक परिपूर्ण
उस दूसरी, अनजान दुनिया में 

दरअसल, वे एक असंभव परिदृश्य में 
अपनी मनमाफिक परिभाषा गढ़ते हैं 

किसी समान्तर ब्रह्माण्ड में 
यदि चुननी हो मुझे  
अपने अस्तित्व की वांछित परिभाषा  
तो मैं होना चाहूंगा 
हूबहू 
अपने जैसा 
किसी भी दूसरी दुनिया में 
इस क्षण की अपनी 
तमाम बुराइयों और अच्छाइयों के साथ 
जिनसे तनिक भी इधर-उधर होने पर 
मैं, मेरे जैसा रह ही नहीं जाता;
जिनके बिना 
कोई, मेरा प्रतिरूप नहीं हो पाता  

अपने परिपूर्ण हो सकने की सारी महत्वाकांक्षायें 
बेहतरी की सारी उम्म्मीदें 
मैं सहेजकर रखूंगा 
इसी दुनिया के लिए
जहां मेरे पास है—
जिजीविषा और जूझने की सामर्थ्य 
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पर्दे  

हम एक ही पंक्ति में  
ऊपर-नीचे के दो फ्लैट की खिड़कियों पर 
टंगे हुए सफेद परदे हैं, एक जैसे 
एक ही थान से कटे हुए

दूर के जंगल से चलकर जब हवा पहुंचती है यहां 
और टकराती है हमसे
तब हम एक ही दिशा में उड़ते, उठते हैं 
हममें से नीचे वाला पर्दा ज्यादा ऊपर उठता है
और ऊपर वाला थोड़ा कम 
मानो कोशिश हो यह 
कि नीचे वाला पर्दा उड़कर ऊपर वाले परदे तक पहुंच जाए 
जबकि ऊपर वाला पर्दा  
हवा का भरसक प्रतिरोध करता हुआ
अपनी जगह तक पर रुका रहे
थान से कटने से पहले की तरह 
हम जुड़ जाना चाहते हैं  

हवा के तेज़-धीरे होते झटकों के समीकरणों पर  
एक दूसरे को छूने की कोशिश करते हैं जी तोड़
भूल जाते हैं हम 
कि भले ही कितने ही बौने होते जा रहे हों फ्लैट 
फिर भी ऊपर-नीचे की दो खिड़कियों के बीच
कुछ दीवार तो होती ही है 
इसी दीवार पर सर पटक पटक 
हममें से नीचे वाला पर्दा आ गिरता है फ़िर नीचे 

ऊपर वाला पर्दा ना उड़ने के अपने प्रतिरोध को खो 
उड़ जाना चाहता है पूरी ताकत से
जकड़ने वाले कुंदों को तोड़
कि जब गुरुत्वाकर्षण खींचेगा नीचे
तब वह गिरेगा एक बार गलबहियां कर
नीचे वाले पर्दे से 

नीचे वाला पर्दा अनुगमन का विचार कर
हां में सर झकझोड़ता है
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एक विचारमग्न कवि के लिए 

मुस्कराहट— 
जीवन का एक ज़रूरी अवयव 

नहीं, मैं नहीं मुस्कुरा सकता 
एक झूठी मुस्कान 
महज़ फोटो के लिए 

अजनबियों के साथ मैं बांटता हूं मुस्कुराहट 
और 
अपनों के बीच 
अमूमन, सिर्फ मुस्कुराने भर से 
नहीं चल पाता मेरा काम 
मैं ठठाकर हंसता हूं बहुत 
पर वह हंसी नहीं होती झूठी 

सुंदर फोटो के लिए 
मुस्कुराहट एक बिंब है 
जिसे तुम चुनते हो 
और, गांभीर्य दूसरा 
जिसे मैं चुनता हूं 
हंसोड़ के अलावा 
मैं एक कवि भी तो हूं 

तुमने कभी देखी है 
कवि मणि मोहन की तस्वीर? 
गांभीर्य भी कैसे मणि की तरह मोहक होता है 
एक विचारमग्न कवि के लिए 
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डॉ देवेश पथ सारिया 
पोस्ट डाक्टरल फेलो
रूम नं 522, जनरल बिल्डिंग-2
नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी
नं 101, सेक्शन 2, ग्वांग-फु रोड
शिन्चू, ताइवान, 30013
फ़ोन: +886978064930
ईमेल: deveshpath@gmail.com

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