![Hindi Poetry: सुनो प्रिये — रंजीता सिंह की प्रेम कवितायेँ](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1ZBGuT_-RpxaTeDd_PyrmLP6azLKIuF6P118drZDaPb3Q-RJ3-uG2HiJLxlk7DpbLtFIMEaB427Tku7gc3rB8xyxZ345oIAK3KAb0BM297ugGDvnfc45nnzCjjUaLXKzFaMoxBDwDiagd/s1600-rw/Hindi-Poetry-%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25A8%25E0%25A5%258B-%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587-%25E2%2580%2594-%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%259C%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE-%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25B9-%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580-%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%25AE-%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2581.jpg)
रंजीता सिंह की प्रेम कवितायेँ
उन तमाम मुश्किलों, जिनमें जीवन अपने वजूद को बचाने का फिक्रमंद हो, के बीच प्रेम की साँस का चलते रहना भी उसी फ़िक्र का हिस्सा रहे. अंततः हमेशा प्रेम ही मानवता का रक्षक ईश्वर है। पत्रिका 'कविकुम्भ' की संपादक रंजीता सिंह की यह चार कवितायेँ पढ़ते हुए यह अहसास हुआ। उनका शुक्रिया और बधाई।भरत एस तिवारी
शब्दांकन संपादक
सुनो प्रिये
एक
सुनो प्रियेजब मैं काकुलें खोले
आधे वृत्त सी
झूल जाऊँ,
तुम्हारे आलिंगन में,
तो उसी दम
तुम
मेरी कमर पर
बांध देना
सदी के
सबसे खूबसूरत
गीतों की कमरघनी
और देखना
बहुत धीरे से
सरक आयेगा
चाँद,
मेरी हथेली पर
और फिर
हजारों ख़्वाहिशें
फूलों सी खिल उठेंगी,
सुनो प्रिय
किसी दूधिया चाँदनी रात में
मेरे चेहरे से
ज़ुल्फ़ों को
हटाते हुए,
तुम फिसल आना
पीत पराग सी
नरमी लिए
और मेरे गले के तिल पे
धर देना
कोई
दहकता बोसा
और फिर देखना
किसी चन्दन वन का
धू-धू कर जलना
.
.
.
.
दो
सुनो प्रिये
मेरे अंदर उतरती है
कोई भरपूर नदी
जो दूर ऊँचे ख़्वाहिशों के टीलों से
आ गिरती है किसी जलप्रपात सी
सुनो प्रिये
प्रेम में पड़ी औरत
हो जाना चाहती है
नदी से झील
और टिकी रहना चाहती है
प्रेमी के सीने पर
सदियों
सदियों
मुँह छिपाए
सुनना चाहती है
अपना ही देहगीत
.
.
.
.
तीन
सुनो प्रिये
अपनी ही तयशुदा
बंदिशों के बावजूद
संभावनाओं की आखिरी हद तक
एक-दूसरे को
इतनी शिद्दत से चाहना
अपनी ही दूरियों में
एक दूसरे को पल पल महसूस करना
और फिर तवील रात के अंधेरों को
मुस्करा कर सहते हुए
रख लेना
अपनी आँखों पर
एक वर्जित प्यार
सुनो प्रिये
यही वो प्रेम है
जिसमें पड़ी औरत
हो जाती है
खुश्बू सी लापता।
.
.
.
.
चार
सुनो प्रिये
जब दुनिया के सारे मौसम
अपनी गति से बदलते हैं
प्रेम तब भी
बना रहता है
जस का तस
सुनो प्रिये
प्रेम कभी नहीं बदलता
टिका रहता है
अपनी जगह
एक ही लय
एक ही गति
एक ही ध्रुव पर
सुनो प्रिये
प्रेम का
न बदलना ही
उसका
सबसे बड़ा
सौंदर्य है
सुनो प्रिये
आकर ठहरो
कभी इस एकरंग मौसम में
और देखो
इसी एक रंग में खिल उठे हैं
दुनिया के सारे
रंग।
— रंजीता सिंह
ईमेल: kavikumbh@gmail.com
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1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर
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