बीते ज़माने की 'नदी' यमुना की कहानी Hindi Review: River of Love in an Age of Pollution : Nalin Chauhan


यमुना की कहानी को उसके इतिहास के साथ चलते हुए, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कहने वाली यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से प्रकाशित डेविड एल हैबरमैन (David L. Haberman) की पुस्तक "रिवर ऑफ़ लव इन एन ऐज ऑफ़ पलूशन" के विषय में नलिन चौहान का रोचक लेख.




बीते ज़माने की 'नदी' यमुना की कहानी 

हिंदी रिव्यु, किताब: River of Love in an Age of Pollution 

— नलिन चौहान 

हमारे यहां नदी केवल नदी नहीं एक संस्कृति भी हुआ करती है। नदी का इतिहास शहर के इतिहास से पुराना होता है। उसके किनारे जो भी शहर बसा हो उसका पूरा जीवन उस नदी के इर्द गिर्द घूमता है। दिल्ली का जीवन भी कभी यमुना से जुड़ा था, कभी यह दिल्ली यमुना के कारण बसी थी।

यह एक इतिहास सम्मत तथ्य है कि राजधानी के रूप में दिल्ली के स्थान को यमुना के आकर्षक स्वरूप और पेयजल के लिए मीठे पानी की उपलब्धता के कारण चुना गया था। इतना ही नहीं, यमुना ने एक शहर के रूप में राजधानी के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लगभग सभी ऐतिहासिक विवरणों में दिल्ली के एक प्रमुख संसाधन के रूप में यमुना की सुंदरता का उल्लेख है।

दिल्ली में जमीन का ढलान और यमुना नदी के बहाव दोनों ही उत्तर से दक्षिण की ओर हैं। उत्तर भारत की प्राचीनतम नदियों में से एक यमुना अधिकांश उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली की पूर्वी सीमा रेखा के रूप में बहती है। यमुना नदी दिल्ली में पल्ला गांव से प्रवेश करती है और ओखला के पास जैतपुर में दिल्ली छोड़ देती है। दिल्ली में आने से पहले ही यमुना नदी से दो नहरें निकालने के कारण दिल्ली के मैदानी भाग में यह एक पतली धारा के रूप में बहती दिखती है, जिसे सिवाय बारिश के मौसम को छोड़कर सभी जगह से पार किया जा सकता है।


यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से प्रकाशित पुस्तक "रिवर ऑफ़ लव इन द ऐज ऑफ़ पाल्यूशन, द यमुना रिवर ऑफ़ नाॅदर्न इंडिया" (प्रदूषण के समय में प्रेम की सलिला, उत्तर भारत की यमुना नदी) में डेविड एल हैबरमैन ने दिल्ली के पारिस्थितिकी तंत्र और धार्मिक आस्था से उपजे द्वंद को रेखांकित किया है। यह एक रूप में, सदियों से एक देवी के रूप में पूजनीय, भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका के रूप में प्रसिद्व और अपने अनन्य भक्तों का एक क्षमाशील माँ के रूप में पोषण करने वाली यमुना नदी की उपेक्षा की कथा है। इसमें औद्योगिक और मानव जनित कचरे के साथ आर्थिक और जनसांख्यिकीय विकास तथा मानवीय लापरवाही का योगदान जगजाहिर है। दूसरे शब्दों में, यमुना की यह दुर्दशा भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों में जल स्त्रोतों के साथ किए गए धतकरम से जुदा नहीं है। वह भी तब जब हिंदू विचार और व्यवहार में नदी उपासना-भक्ति का एक महत्वपूर्ण स्थान है। समझने वाली बात यह है कि हैबरमैन ने इस समूचे विमर्श में स्थानीय समाज की धार्मिकता की बात को गौण नहीं होने दिया है।
हिन्दू पौराणिक आख्यानों के अनुसार, यमुना को “यम की बहन” यानि “मृत्यु के देवता की बहन” माना जाता है। हैबरमैन ने “रिवर ऑफ डेथ” शीर्षक वाले अध्याय में नाटकीय रूप से इस पौराणिक और व्युत्पत्ति संबंधी कड़ी को सुलझाने का प्रयत्न किया है। पुस्तक में हैबरमैन ने जिस विस्तृत रूप से नदी के प्रदूषण और उसकी जलधारा के शोषण की आधुनिक कथा को प्रस्तुत किया है, वह पाठकों के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से विचलित कर देने वाला प्रसंग है।



लेखक, जब उन्होंने पहली बार यमुना नदी को देखा था, ने पाठकों के समक्ष तुलनात्मक रूप से आज की स्थिति और 1980 के दशक के आरंभ वाले समय में यमुना नदी के साथ अपनी मधुर स्मृतियों का विवरण दिया है। तब विशाल कछुए, पानी में उछलती मछलियां और कई जलपक्षी सभी पनप रहे थे और तब तैराकी तन-मन को आनंद देने वाली बात थी न कि जल प्रदूषण के कारण अकल्पनीय रूप से जान-जोखिम काम। दिल्ली और ब्रज, कृष्ण भक्ति और तीर्थयात्रा का सबसे पवित्र क्षेत्र, से सबसे अधिक कचरा सीधे जलधारा में आकर गिरता है। इस तथ्य को रेखांकित करते हुए हैबरमैन लिखते हैं, यह विडम्बना की बात है कि नदी का सर्वाधिक प्रदूषित भाग वह क्षेत्र है, जहां पर यमुना को लेकर धर्मशास्त्र और पूजा-अर्चना की सर्वव्यापकता का विकास हुआ है।

पुस्तक के अनुसार, हमेशा से हालात इतने बुरे नहीं थे। दिल्ली के लंबे समय से रहने वाले अनेक निवासियों के मन में एक नदी, जो कि अब पहले के समान नहीं है, की सुखद स्मृतियां हैं। मैं (हैबरमैन) अपने दिल्ली प्रवास में जिस होटल में अधिकतर ठहरता था, उसके साठ बरस के मालिक मोहन शर्मा ने एक सुबह मुझे नदी से जु़ड़े अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने आंखों में खुशी और चेहरे पर मुस्कान के साथ मुझे 1950 के दशक की शुरुआत में दिल्ली की यमुना में तैरने की बात कही। उन्होंने बताया कि वे अपने भाइयों के साथ नदी तक साइकिल चलाकर आते थे और पानी में तैरते थे तथा उसके बाद रेतीले तट पर कुश्ती और खेल खेलते थे। इतना ही नहीं, पानी साफ और आसमान नीला होता था।



हैबरमैन के साथ काम करने वाली दिल्ली की एक संपादक कृष्णा दत्त ने पुस्तक में नदी को लेकर अपनी जवानी के दिनों को याद किया। 1940 और 1950 के दशक में वह एक जवान लड़की के रूप में, अपने अपने परिवार के साथ पिकनिक के लिए यमुना के किनारे पर जाती थी। कृष्णा ने उन्हें (हैबरमैन) अपनी धर्म-कर्म करने वाली अपनीे मां और नदी की बात बताई। उनकी मां एक अत्यंत धार्मिक महिला थी, जो कि अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप, त्यौहारों के पवित्र दिनों में यमुना में स्नान करती थी। कृष्णा ने नदी के किनारे रहने वाली गहन शांति और मनोरम दृश्यों का वर्णन करते हुए बताया कि तब दिल्ली में रहने वाले अनेक परिवार अपने सदस्यों के साथ मनोरंजन के लिहाज से नदी में तैराकी का आनंद लेते हुए अपना समय बिताते थे।
पुस्तक में एक ऐसी ही एक कहानी, दिल्ली में यमुना के जल की स्थिति में सुधार की दिशा में कार्यरत एक गैर-सरकारी संगठन पानी मोर्चा के संस्थापक कमांडर सुरेश्वर सिन्हा की है। वे 1940 के दशक के अंत से लेकर 1960 के दशक के आरंभ तक दिल्ली में एक युवा नौसेना अधिकारी के रूप में तैनात थे। वे राष्ट्रीय नौसेना तैराक दल (नेशनल नेवल सेलिंग टीम) के सदस्य थे, और उन्हें तब कि दक्षिणी दिल्ली में ओखला स्थित यमुना में तैराकी की मधुर स्मृतियों का पूरा तरह स्मरण है। वे उन दिनों नदी की सुंदरता को याद करते हैं जब वे यमुना में होने वाली नौकादौड़ स्पर्धाओं, जिनमें बड़ी संख्या में रंग-बिरंगी नौकाएं शामिल होती थी, में भाग लेते थे। 

बकौल सिन्हा, मैं आपको बता नहीं सकता कि 1970 के दशक तक भी नदी कितनी साफ और सुंदर हुआ करती थी। अनेक दिल्लीवासी पिकनिक मनाने के लिए आते थे और नदी के किनारों पर पूरा दिन बिताते थे। सिन्हा ने हैबरमैन को बताया कि एक मौके पर वे नाव सहित नदी में डूब गए थे। इस कारण उनके पेट में अनायास काफी पानी चला गया था, जिसे उन्होंने बाहर किनारे आकर निकाला। उन्होंने नदी में डूबने और पेट में पानी जाने की घटना को एक सुखद अनुभव करार दिया। आज यह विश्वास करना कठिन है कि नदी और समाज में अपनत्व का ऐसा भी एक समय था।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
___________________________________________

नोट: पुस्तक में लेखक डेविड एल हैबरमैन ने श्री वल्लभाचार्य लिखित यमुनाष्टकम  की कुछ पंक्तियों का अनुवाद भी किया है. दोनों देखें... (भरत एस तिवारी/ शब्दांकन संपादक)

यमुनाष्टक

नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा
मुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम ।

तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना
सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम ॥१॥

कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला
विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता ।

सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा
मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता ॥२॥

भुवं भुवनपावनीमधिगतामनेकस्वनैः
प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः ।

तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावाकुका-
नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम ॥३॥

अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते
घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे ।

विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते
कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय ॥४॥

यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका
समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम ।

तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय-
हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम ॥५॥

नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं
न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः ।

यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि
प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः ॥६॥

ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता
न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये ।

अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमा-
त्तवैव भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः ॥७॥

स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये
हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः ।

इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम-
स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः ॥८॥

तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा
समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः ।

तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति
स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः ॥९॥

॥ इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं यमुनाष्टकं सम्पूर्णम ॥

Pushti Margiya Vaishnavas claim that the first two forms of Yamuna had been discussed in religious literature by previous saints, but that Vallabhacharya, in his “Yamunashtakam,” was the first to reveal the highest form of the goddess. The commentaries on this text are especially important for gaining access to the more refined tenets of Yamuna theology; two of the most significant were written by Vallabhacharya's son Vitthalnath and his great-grandson Hariray. Many of the textual elements of the theological portrait that follows are drawn either directly or indirectly from Vallabhacharya's “Yamunashtakam." Thus I provide a translation of it here in its entirety.

[1]
Joyously I honor Yamuna, the source of all spiritual powers. 
Her expansive sands shine as bright as the lotus feet of Krishna. 
Her waters are fragrant with lovely flowers from the lush forests on her banks.
She bears the radiance of the Krishna, Father of Cupid, 
Who is worshipped by both humble and assertive lovers.

[2]
She shimmers as her abundant foamy water cascades down the peak of Mount Kalinda. 
Playfully she descends the high rocky slopes, moving eagerly for love.
She flows as if riding in a swinging palanquin, 
Dashing over uneven ground while singing songs of love. 
All glory to Yamuna, Daughter of the Sun, who increases love for Krishna.

[3] 
She came to Earth to purify all beings. 
She is assisted by parrots, peacocks, swans, and other birds with loving sounds.
Her waves are her arms, her sands pearl-studded bracelets, 
Her banks are her beautiful hips. 
She is honored as the highest lover of Krishna.

[4]
Adorned with infinite qualities, she is praised by the gods Shiva and Brahma. 
Her complexion is that of a dark rain cloud. 
She always satisfies the desires of devotees such as Dhruva and Parashara. 
The pure city of Mathura is located on her bank, 
And she is surrounded by cowherd lovers. 
She is joined with the ocean of compassion. 
May this Yamuna always gladden my heart and mind.

[5]
Only after Ganges merged with her did Ganges become a lover of Krishna and able to grant worshippers all spiritual powers necessary for divine love. 
If anyone can be compared to Yamuna, it is Lakshmi, who is like her cowife. 
May Yamuna, Lover of Krishna, ever remain in my heart and mind.

[6] 
All honor to you always, Yamuna, 
For your greatness is most wonderful. 
Those who drink your milklike water will never be tormented by Death.
For how could Death ever harm the children of his sister, even if they are bad? From loving service to you, O Yamuna, one becomes a lover of Krishna, just like his cowherd lovers.

[7] 
May my body be transformed by being in contact with you. 
Then it will not be difficult to love Krishna, O Lover of Krishna. 
This is why you are praised. 
Ganges becomes supreme after her confluence with you. 
Therefore grace-filled souls worship Ganges only after she has merged with you.

[8]
Who, O Lover, can fully praise you, cowife of Lakshmi? 
When Lakshmi is worshipped in conjunction with Hari, 
She can grant the satisfaction of liberation. 
But you are even greater than this, since you flow with beads of sweat that come from the bodies of Krishna and his lovers as they make ecstatic love. 

[9]
O Daughter of the Sun, all sins are washed away and love for Krishna develops for one who recites this hymn of yours with joy daily. 
Through you all spiritual powers are attained and Krishna is delighted. 
You completely transform the nature of your devotees. 
Thus says Vallabha, the lover of Shri Krishna.



००००००००००००००००




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ