Ghazal: अभिषेक कुमार अम्बर, युवा शायर की ग़ज़लें


अभिषेक कुमार अम्बर की ग़ज़लें

युवा शायर अभिषेक कुमार अम्बर

पाँच ग़ज़लों का आनंद उठाइए. 


मुझको  रोज़ाना  नए   ख़्वाब   दिखाने   वाले।

बेवफ़ा  कहते   हैं   तुझको   ये   ज़माने  वाले।


तू   सलामत  रहे  मंज़िल  पे पहुंचकर अपनी,
बीच   राहों   में   मुझे   छोड़   के   जाने  वाले।

अब  न पहले सी  शरारत न  शराफ़त ही  रही,
रूठने   वाले    रहे    अब   न   मनाने    वाले।

ये  नयापन  मुझे  अच्छा  नहीं  लगता   उनका,
कोई    लौटा    दे    मेरे   दोस्त   पुराने   वाले।

दौरे-हाज़िर में ज़रा रहना ख़याल अपना दोस्त,
गेरने   वाले   बहुत   कम   हैं    उठाने    वाले।

सैंकड़ों   दोस्तों   से   लाख   भले   वो  दुश्मन,
ख़ामियां    मेरी    मिरे    सामने    लाने   वाले।

चाहे   दौलत  न  हो  पर  प्यार  बड़ा  होता  है,
होते  हैं  दिल  के  बहुत  अच्छे  'मवाने'  वाले।

ढूंढती  है  तुम्हें  इस  दौर  की  हर इक औरत,
हो   कहां,   द्रौपदी   की   लाज   बचाने  वाले।

हम   बताएंगे   तुझे   प्यार   किसे   कहते    हैं,
तू  कभी  सामने   आ  ख़्वाब  में   आने   वाले।





हर  दिन  हो  महब्बत  का  हर  रात महब्बत   की,

ताउम्र     ख़ुदाया     हो    बरसात   महब्बत    की।

नफ़रत के  सिवा  जिनको  कुछ  भी न  नज़र आए,
क्या  जान   सकेंगे   वो   फिर  बात  महब्बत  की।

जीने   का    सलीक़ा   और   अंदाज़   सिखाती  है,
सौ  जीत  से  बेहतर  है  इक  मात  महब्बत  की।

ऐ इश्क़ के दुश्मन तुम  कितनी भी करो  कोशिश,
लेकिन   न   मिटा   पाओगे   ज़ात   महब्बत  की।

ख़ुशबख़्त  हो   तुम  'अम्बर'  जो   रोग  लगा  ऐसा,
हर    शख़्स  नहीं    पाता   सौगात   महब्बत   की।





नहीं   ये   बात   अपनापन   नहीं    है,

बस   उससे  बोलने  का  मन  नहीं  है।

तुम्हारे  बाद   कुछ   बदला  नहीं  है,
वही दिल है मगर  धड़कन  नहीं  है।

महब्बत  करने  की  तू  सोचना  मत,
तिरे बस  का  ये  पागलपन  नहीं  है।

तमन्ना  है   तुम्हारे   दिल  को  पाना,
मिरी  चाहत  तुम्हारा  तन  नहीं  है।

वो अब भी दिल दुखा देता  है  मेरा,
वो  मेरा  दोस्त  है  दुश्मन  नहीं है।

वो गुड्डे गुड़िया तितली भौंरे जुगनू
सभी कुछ है मगर बचपन नहीं है।

न लगने देना इस पर दाग़ 'अम्बर'
ये   तेरा  जिस्म  पैराहन   नहीं  है।





इक़रार   करने   वाले    इंकार    करने    वाले

किस  देस  जा  बसे हैं  अब  प्यार  करने  वाले।

मेरी ज़िन्दगी का  गुलशन गुलज़ार  करने  वाले
रख्खे ख़ुदा  सलामत  तुझे  प्यार  करने   वाले।

होंगे   वो   दूसरे   ही    उपचार    करने   वाले
हमने   हकीम    पाए   बीमार    करने    वाले।

सब दोस्तों से अपने मत दिल  के  राज़  कहना
होते   हैं   पीठ  पीछे  कुछ  वार   करने   वाले।

रंजो-अलम   हैं   पहले    फिर   तेरी   बेवफ़ाई
मेरी  शायरी   का   क़ायम  मेयार  करने  वाले।

तू ही प्यार मेरा पहला  तू  ही  प्यार  आख़िरी  है
तेरे बाद  ज़ीस्त  में  हम  नहीं  प्यार  करने  वाले।





वो मिरे साथ यूँ रहा जैसे

काटता हो कोई सज़ा जैसे।

साथ तेरा मुझे मिला जैसे
पा लिया कोई देवता जैसे।

आज सर्दी का पहला दिन था लगा
आसमां नीचे आ गया  जैसे।

फिरते हैं वो वफ़ा-वफ़ा करते
खो गई हो कहीं वफ़ा जैसे।

ऐसे कहता है जी न पाऊंगा
वो मिरे बिन नहीं रहा जैसे।

काश मैं भी भुला सकूँ उसको
उसने मुझको भुला दिया जैसे।

हम तो बनकर रदीफ़ साथ रहे
और वो बदले क़ाफ़िया जैसे।

हमको यूँ डांटते हैं वो 'अम्बर'
उनसे होती नहीं ख़ता जैसे।



अभिषेक कुमार अम्बर युवा कवि हैं जो हिन्दी और उर्दू दोनों में बराबर लिखते हैं। इनका जन्म 7 मार्च 2000 को मवाना मेरठ में हुआ है।  वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक कर रहे हैं। प्रसिद्ध शायर श्री राजेन्द्र नाथ रहबर के शिष्य हैं। देश विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी, दूरदर्शन और ईटीवी उर्दू से बहुत बार काव्यपाठ कर चुके हैं। पिछले चार सालों से कविताकोश से जुड़े हैं।  2018 में इन्होंने  गढ़वाली कविताकोश की स्थापना की और एक समृद्ध गढ़वाली कोश  का निर्माण किया है। इनके संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें काव्यंकुर 5, अक्षरम, किसलय तथा  कुल्लियात-ए-अंजुम आदि प्रमुख हैं तथा रहबर की अलबेली नज़्में, कुल्लियात-ए-रवि ज़िया का संपादन कर रहे हैं। और पिछले 6 वर्षों से निरन्तर साहित्य सेवा में लगे हैं। 

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