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और इस तरह यह समय — उमा शंकर चौधरी की कविताएं | Poetry - Uma Shankar Choudhary

कवि और कविता हमें सच से भागने से रोक सकते हैं? वैसे सवाल तो यह होना चाहिए, हम सच से भागते क्यों हैं? लेकिन, यह भी है कि हम उमा शंकर चौधरी की इन कविताओं को पढ़ने जा रहे हैं और वे हमें सच की तरफ वापस ले आएंगी।  उम्मीद।  ~ सं० 



उमा शंकर चौधरी की कविताएं


और इस तरह यह समय

हम रह रहे हैं एक ख़तरनाक समय में 
इस एक वाक्य को मैं लिखता हूं जितनी बार 
यह वाक्य होता जाता है उतनी बार और भी ख़तरनाक
और मैं हो जाता हूं उतनी ही बार 
और भी सशंकित 
और इस समय के पैबंद को दुरुस्त करने 
बिलों से निकलने लगते हैं ढेर सारे बुलबुले 

प्रधानमंत्री अपने प्रशंसकों के बीच 
बजाते हैं बांसुरी 
लेकिन इस ख़तरनाक समय में नहीं निकलती है 
उससे कोई मधुर आवाज़ 
प्रधानमंत्री इस ख़तरनाक समय पर करने लगते हैं चिंता 
और यह समय होता जाता है और भी ख़तरनाक

मैं जितनी बार लिखता हूं यह वाक्य 
उतनी बार भीड़ में कर लिया जाता हूं चिह्नित 
उतनी बार मेरी तरफ बढ़ने लगते हैं हाथ 
उतनी बार पेड़ से झड़ जाते हैं ढेर सारे पत्ते

मैं लिखता हूं समय को ख़तरनाक 
और लोगों की भीड़ पीटने लगती है मेरा दरवाज़ा 
मां की गोद में दुबक जाती है तीन साल की मेरी बेटी 
भाप बनकर उड़ने लगती है कच्चे पत्तों पर 
सुबह सुबह गिरी हुईं ओस की बूंदें
मेरे सामने खड़ा हो जाता है 
सरकार का एक नुमांइदा, एक वरिष्ठ मंत्री और एक दिन 
खुद इस देश का प्रधानमंत्री 

मुझसे पूछा जाता है मेरा नाम 
मेरा रंग, मेरी पहचान 
मेरी भाषा, मेरी आत्मा और मेरा उसूल 
और इस तरह यह समय 
मेरे लिखने न लिखने से परे और भी हो जाता है ख़तरनाक।

वे सब अब हमारी संख्याओं में हैं

(कोरोना की दूसरी लहर में बहुत ही भयावह स्थिति के बीच 19/05/2021 को लिखी गयी कविता)
जो अब हमारे बीच नहीं हैं
वे सब अब हमारी संख्याओं में हैं
कल जो मेरा दोस्त मरा है
वह कभी मेरे लिए अपने कोबे में भरकर
लेकर आया था ओस की बूंदें
उसे भी मुझे अब महज एक संख्या में जानना है
हम यहां चुकुमुकु बैठे हैं और गिन रहे हैं
संख्याएं एक-दो-तीन-चार
सौ-दो सौ, हजार-दो हजार-चार हजार

कल का आंकड़ा है 4536 
इस आंकड़े का जो 36वां है वह मेरा दोस्त है
हो सकता है कि कल का आंकड़ा
4737 हो और वह पैंतीसवां, छत्तीसवां, सैंतीसवां सब मेरे परिचित ही हों
जो मेरे परिचित नहीं हैं वे भी 
किसी न किसी के मां, पिता, भाई, बहन, दोस्त 
या कम से कम परिचित तो अवश्य होंगे

जो अब हमारे बीच नहीं हैं
वे सब बदल गए हैं संख्याओं में
सरकार अपने खाते में दर्ज करती है आंकड़े
गिनी जाती हैं लाशें
आंकड़ों में दो संख्याओं की भी कमी 
ला देती है सरकार के चेहरे पर मुस्कुराहट

वह जिसकी दो साल की बेटी की उंगली से 
छूट गया है मां का स्पर्श
उससे कोई पूछे इस एक संख्या का मतलब
वह पुरुष संख्याओं में कैसे बतलाएगा 
अपनी पत्नी का साथ छूटने का दुख 
जिसके साथ अभी अभी उसने उस सामने वाले पेड़ पर 
टांका था एक सितारा
अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर 
अपनी उम्र को संख्या में गिनने वाले पिता के सामने 
गुजर गया है उसका पुत्र
जैसे अंतरिक्ष से टूटकर समुद्र में गिरा है एक उल्का 

जो अब हमारे बीच नहीं हैं
वे सब अब हमारी संख्याओं में हैं
जिन घरों में बुझ गए हैं दीये 
उन घरों में नहीं है कोई संख्या 
वहां बस बचा रह गया है एक मायूस सा सूखा पेड़
कुछ खिलौने
एक अंतहीन सूनापन और एक लम्बा इंतज़ार

परन्तु सरकारें गिन रही हैं अभी संख्याएं
अभी चारों तरफ सिर्फ गूंज रहे हैं 4537, 3678, 4632 के आंकड़े
अभी कुछ ही दिनों पहले तक 
इस देश में गूंज रहे थे विकास और समृद्धि के जो आंकड़े 
उन पर मौतों के ये आंकड़े अभी भारी हैं

समृद्धि के इन आंकड़ों को 
सूर्य की तरह फिर से चमकने के लिए
अभी करना है थोड़ा इंतज़ार

अभी थम सी गयी है ज़िन्दगी

(कोरोना की दूसरी लहर में बहुत ही भयावह स्थिति के बीच 19/05/2021 को लिखी गयी कविता)
यह कितना अजीब है कि बयालीस की उम्र में भी 
वह सिर्फ अभी और इसलिए ज़िन्दा रहना चाहता है कि 
अभी उसकी बेटी की उम्र महज आठ वर्ष है 
उसने अभी-अभी अपने बेटे के लिए लिया था 
चांद का एक टुकड़ा 
जिसकी अभी किस्तें भरी जाना बाकी हैं

वह ज़िन्दा रहना चाहता है उस घर के पूरा होने तक 
जिसमें रह सकें उसकी पत्नी के साथ 
उसके बच्चे सकुशल
वह स्त्री जो सदा करती रही है 
अपने पति के स्वास्थ्य को लेकर चिंता
वह ज़िन्दा रहना चाहती है ताकि रह सके उसका पति सुरक्षित
बेटा अपने पिता की बीमारी के लिए ज़िन्दा रहना चाहता है
और पिता अपने बेटे की ज़िम्मेदारियों को संभालने के लिए
प्रेमिका अपने प्रेमी की सलामती की करती है दुआ
दोस्त अपने दोस्त के अस्पताल से 
सकुशल लौट आने का कर रहा है इंतज़ार
मासूम बच्चे दुबक जा रहे हैं अपनी मां की गोद में 
बच्चे बुदबुदाते हैं अपने मन में 
और ईश्वर से करते हैं अपने मां-पिता की सलामती की इबादत

ज़िन्दगी का यह एक अजीब मोड़ है 
जहां धरी की धरी रह गयी हैं सारी योजनाएं
वह अपनी बेटी के दूसरे जन्मदिन पर 
इस बार देना चाहता था बादल के कुछ फाहे
वह अपनी बूढ़ी मां के लिए 
इस सर्दी जुटाना चाहता था कुछ कपास
वह महज तीन दिन बाद ही अपनी पत्नी को 
देना चाहता था कुछ सुखद आश्चर्य
छः साल का बच्चा अपनी मां को सुनाना चाहता था 
सात का पहाड़ा

यहां ज़िन्दगी एकदम थम सी गयी है
जैसे पेड़ पर अटक गया है एक पत्ता
बादलों में जैसे फंस कर रह गयी हैं बारिश की बूंदें
गले तक आकर रुक सी गयी हैं 
बहुत सी बातें
थमे हुए हैं अभी बहुत सारे प्रेम पत्र
किताबों के पन्नों के बीच सूख गए हैं गुलाब के फूल
कितने दिन हो गए सुने ख़ुशी के दो शब्द
अधरों पर अटके हैं अभी बहुत सारे चुम्बन

कुछ भी वैसा नहीं

अब जब तक तुम लौट कर आओगे 
कुछ भी वैसा नहीं रहेगा 
न यह सुनहरी सुबह और न ही यह गोधूलि शाम 
न यह फूलों का चटक रंग 
न चिड़ियों की यह कतार 
और न ही यह पत्तों की सरसराहट 

अब जब तक तुम लौटकर आओगे 
रात का अंधेरा और काला हो चुका रहेगा 
बारिश की बूंदें और छोटी हो चुकी होंगी 
हमारे फेफड़े में जगह लगभग ख़त्म हो चुकी रहेगी 

जब तुम गये थे तब हमने सोचा था 
कि अगली सर्दी ख़त्म हो चुका होगा हमारा बुरा वक़्त 
राहत में होंगी हरदम तेज़ चलने वाली हमारी सांसें 
लेकिन अगली क्या उसकी अगली और उसकी अगली सर्दी भी चली गयी 
और ठीक सेमल के पेड़ की तरह बढ़ता ही चला गया हमारा दुख 

अबकि जब तुम आओगे तो 
तुम्हें और उदास दिखेंगे यहां हवा, फूल, मिट्टी, सूरज 
और सबसे अधिक बच्चे 
अबकि जब तुम आओगे तो चांद पर और गहरा दिखेगा धब्बा 

मैं जानता हूं कि तुम आओगे देखोगे इन उदास मौसमों को 
और तुम जान लोगे हमारे उदास होने का ठीक ठीक कारण।

अंधेरा

दूर तलक जहां तक जा रही है निगाह
अभी घोर अंधेरा है
आसमान में तारे नहीं हैं
पेड़ की शाखों पर उल्लू बैठे हैं
अभी सुबह की बात मत पूछो
अभी बच्चों को नींद से मत जगाओ

अभी बाहर बहुत शोर है
एक अजीब सी ज़िद है
प्यार का एक नया ढ़ंग है
और ढ़ेर सारी नफ़रत है
अभी बाहर जो भीड़ घूम रही है
उन्हें अभी अपने माता-पिता को, अपनी पत्नी को
और इस राष्ट्र को प्यार करते हुए अपने को साबित करना है।

अभी जुटाना है उन्हें
अपनी पत्नी के गाल पर दिए गए चुम्बन के निशान
आज सुबह कितने फूले उन्होंने बटोरे हैं
ओस की कितनी बूंदों को सहलाया उन्होंने 
उन्हें अभी इसे प्रमाणित करना है
अभी उन्हें देना होगा प्रमाण कि कितनी बार उन्होंने 
इस मिट्टी, हवा और पानी और आकाश को कहा है धन्यवाद

अभी सांसें तेज हैं
सुनी जा सकती हैं अभी उनकी धड़कन की आवाज़
अभी दूर तलक अंधेरा है
अभी सुबह की बात मत पूछो

तुम कुछ कर सकते हो तो
थोड़ी दूर तक मेरे साथ चलो
फूलों की पंखुड़ियां जो रोशनी के बिना बन्द पड़ी हैं 
उन्हें अभी सहलाना है
मजदूर जो उल्टे पेट लेटे, पौ फटने का कर रहे हैं इंतज़ार
उन्हें अभी इसी अंधेरे का अभ्यस्त होना है
और इसी अंधेरे में उन्हें सितारों को ढूंढ़ना है

अभी पेड़ से पत्ते झड़ रहे हैं
आसमान में काले बादल हैं
अभी वह बिल्ली सहमी हुई बैठी है
अभी तुम कुछ कर सकते हो तो 
उस सहमी हुई बिल्ली को गोद में उठाकर सहलाओ
अभी वह व्यक्ति डर रहा है अपने दरवाज़े से 
बाहर निकलाने में अपने कदम
अभी उस भीड़ के हृदय में है एक जुनून
अभी आंखें लाल हैं 
अभी उनकी ज़मीर को कर लिया है क़ैद 
एक वहशी सोच ने

तुमने अगर जुगनुओं को देखा होगा
और तुम्हारी स्मृतियों में वे जुगनू होंगे 
तो समझो एक दिन तुम भी और हम भी सीख ही लेंगे 
इस अंधेरे को पार करना
फ़िलहाल तो दूर तलक अभी अंधेरा है
बच्चे सो रहे हैं उन्हें नींद से मत जगाओ

अभी तो सुबह के इंतज़ार में
गोरैया के बच्चे अपने घोसले में बैठे हैं 
एकदम चुप्प, शांत।

स्त्रियों के मन के भीतर

(शम्सिया हसानी के लिए जिसने अफ़ग़ानिस्तान की दीवारों पर स्त्रियों की आज़ादी की इबारत अपनी पेंटिंग में लिख दी थी।)
उसने कोरे काग़ज़ पर 
चिड़िया की तस्वीर बनायी 
चिड़िया के पंख खुले थे 
उसने उस तस्वीर को किताबों के बीच 
तहा कर रख दिया 
फिर एक दिन चुपके से चिड़िया 
उस किताब से निकलकर 
आसमान में उड़ने लगी।

उसने दीवार पर तोप के सामने 
फूल लिए लड़की की तस्वीर को उकेरा
उसने हथियारों के सामने 
पियानो बजाती लड़की की तस्वीर उकेरी 
बुर्के के भीतर से झांकती आंखों के ख़्वाब को 
उसने उतार दिया उस चित्र में 
और फिर एक दिन काबुल की सड़कों पर 
गोलियों की आवाज़ों के बीच 
स्त्रियों की आवाज़ बुलंद होने लगीं।

स्त्रियां अपनी स्वच्छन्दता के जो ख़्वाब 
अपने मन के भीतर बुन रही थीं 
जिन सितारों को स्त्रियां 
अंधेरे बन्द कमरे में देख रही थीं 
संगीत की जिस धुन को स्त्रियां 
अपने होठों में दबाये बैठी थीं 
उन सारी ख़्वाहिशों को जब उस दीवार पर उकेरते हुए 
उसे एक आवाज़ दी गयी 
तो दुनिया के सबसे ताकतवर देश भी,
स्त्रियों के लिए दुनिया के सबसे नृशंस संगठन भी 
स्त्रियों के मन के भीतर पनप रहे 
क्रांति के भाव को कुचल नहीं पाए

आज दीवार पर स्त्रियों की आज़ादी के देखे गए ख़्वाब को 
काले रंगों से पोता जा रहा है 
तोप के सामने वह फूल लिए लड़की नहीं 
बिलखती हुई सचमुच की लड़कियां लायी जा रही हैं 
पियानो की मधुर आवाज़ को 
मशीनगनों की आवाज़ से दबाया जा रहा है 
लेकिन तब भी स्त्रियों के मन के भीतर कहीं 
पल रहा है आज़ादी का ख़्वाब

अब किसी भी काले रंग से नहीं ढंका जा सकता है 
आज़ादी के इन ख़्वाबों को 
अब किसी भी बंदूक से नहीं किया जा सकता है प्रतिबंधित
अपने पंजों पर उचककर आसमान से 
तारे नोच लाने की उनकी ज़बरदस्त कोशिश को।

आज़ादी

बन्दूकों, कारतूसों की कर्कश आवाज़ों के बीच 
अफ़ग़ानी महिलाओं के मुंह से 
निकलता हुआ शब्द- आज़ादी।
अफ़ग़ानी महिलाएं मांग रही हैं आज़ादी 
और यह शब्द मधुर संगीत में तब्दील हो रहा है
बच्चियां सो रही हैं और उनकी मांएं 
अभी दुनिया की सबसे सुकून भरी लोरी गा रही हैं

आज़ादी एक ऐसा शब्द है 
जिसे चाहे जिस रूप में लिख दिया जाए 
उसे कुचलना संभव नहीं 
इस धरती पर क्रूर से क्रूर शासक भी आ जाए 
और जब इस धरती पर चारों तरफ फैल जाए 
कारतूस का धुंआ तब भी 
इस धरती पर अवश्य बचा रहेगा यह शब्द — आज़ादी 
भले ही हिम्मत नहीं बची हो 
लेकिन दिल के भीतर 
अवश्य धड़क रहा होगा यह शब्द — आज़ादी।


अभी इस धरती पर उधार है

वह चार साल की अफ़गानी बच्ची 
जो अपनी मां की गोद में दुबकी हुई है, दहशत में है 
उस चार साल की बच्ची के सामने हैं 
गोलियों की आवाज़, धुआं 
और खूब सारी नृशंसताएं
चार साल की बच्ची की आंखों से गिरे आंसू 
लांघ जाते हैं सारी सीमाएं
छोटी पड़ जाती हैं सारी सरहदें उसके लिए
दुनिया की सारी तोपें और मशीनगनें तनी हैं 
उस बच्ची की तरफ
परन्तु सारी दुनिया उन तोपों की तरफ नहीं,
देख रही है 
उस बच्ची के मासूम गाल से लुढ़ककर गिर रहे 
आंसू की उन बूंदों को

उस चार साल की बच्ची के हाथों में 
होनी चाहिए थी अभी एक कोमल गुड़िया 
कुछ फूल, बारिश की कुछ बूंदें 
उस बच्ची के हाथ में अभी होना चाहिए था 
आसमान का एक टुकड़ा 
बादल के कुछ फाहे, सूरज की रोशनी
उसकी आंखों में होनी चाहिए थी एक चमक
लेकिन अभी उसके होंठ थरथरा रहे हैं
कांप रहे हैं उसके पैर

अभी इस धरती पर उधार है
उस बच्ची के गाल पर एक प्यार भरा चुम्बन
प्रकृति पर शीतल हवा उधार है
मनुष्यों की आंखों में उस बच्ची के लिए आंसू उधार हैं।

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