नए साल पर पढ़िये विमल कुमार की 10 कविताएं | Hindi Poems on New Year by Vimal Kumar

हिंदी के वरिष्ठ कवि, पत्रकार विमल कुमार ने साल के बीतने और नये साल के आगमन पर कई कविताएं लिखीं हैं जिसमें अपने समय के कई रंग मौजूद  हैं। उनके लिये साल का आना-जाना अपने समय को दर्ज करना, समाज का परिदृश्य खड़ा करना है। आइए पढ़ें...  ~ सं० 



Hindi Poems on New Year by Vimal Kumar

विमल कुमार की  10 कविताएं

9 दिसंबर 1960 को बिहार के पटना शहर में जन्मे विमल कुमार पिछले 4 दशकों से साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। इन दिनों वे एक राष्ट्रीय संवाद समिति में विशेष संवाददाता पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद स्वतंत्र लेखन करते हैं और "स्त्री दर्पण" पत्रिका के संपादक हैं। उनके कई कविता संग्रह कहांनी संग्रह,उपन्यास, व्यंग्य और पत्रकारिता की किताबें हैं। "चोर पुराण" उनकी चर्चित कृति है। मो: 9968400416 


1.

मैं सिर्फ तारीख़ नहीं हूँ
जो बदल जाता हूँ
मैं अपने समय का इतिहास भी हूँ
जो बीतता रहता हूँ 
न जाने कितने ज़ख्मों को लिए हुए 
कितने टूटे पंखों को बटोरे 
कितने स्वप्न और पुल ध्वस्त हुए 

मैं सिर्फ तारीख़ नहीं हूँ 
कलेंडर का 
मैं बदलता हूँ
तो तुम भी थोड़ा बदल जाते हो 
थोड़ी धुल तुम्हारे चेहरे पर जमा हो जाती हैं 
कभी कभी कोई ख़ुशी तुम्हारी आँखों में चमक जाती है 

मैं बीतता हूँ घड़ी के भीतर 
तो तुम भी थोड़ा बीत जाते हो 
थोड़ा तुम्हारा प्लास्टर भी झड़ जाता है 
एक दीवार की तरह तुम भी गिर जाते हो 
एक दरवाज़े की तरह काँप जाते हो 

मैं सिर्फ तारीख़ नहीं हूँ 
कलेंडर तुम ज़रूर बदल देते हो 
मुझसे एक उम्मीद लिए हुए 
कि अब सब कुछ ठीक होगा
बीतेगा सब कुशल मंगल से 

लेकिन तुम्हें कैसे बताऊँ 
अपनी व्यथा 
मैं नहीं हूँ निरपेक्ष 
सब कुछ मेरे हाथ में नहीं है 

मुझे भी कोई गढ़ता है 
मुझे भी करता है कोई नियंत्रित 
मैं सब कुछ तय नहीं करता हूँ 
घड़ी के भीतर ज़रूर बैठा रहता हूँ 
पर उसकी केवल टिक टिक भर नहीं हूँ 
मैं सिर्फ तारीख़ नहीं हूँ 
एक तोते की तरह मेरी जान भी अटकी रहती है 
किसी के हाथ में 
मैं सिर्फ तारीख़ नहीं हूँ 
एक त्रासदी भी हूँ 
एक विडंबना भी हूँ एक चिंगारी भी तुम्हारे सीने में छिपी हुई।



2.

नए साल में हम निकलेंगे
पुरानी क़मीज़ें पहनकर ही
सड़कों पर 
जो हो गयीं अब न जाने 
कितनी पुरानी 

पुरानी चप्पलों और पुराने जूतों में
पुरानी जुराबें पहने 

पुरानी रजाई में ही कटेंगी 
ठंढ की राते
पुरानी लालटेन जलेगी रातभर


पुराने बस्ते में पुरानी किताबें
और पुरानी कापियां भरे हुए 
स्कूल की पुरानी ईमारत के पुराने कमरे में 

पुराने बर्तनों में खाते हुए 
बीते दिनों को याद करते हुए 

सिर्फ कैलेण्डर पर होगी 
एक नयी तारीख़ 
जो फिर हो जायेगी 
एक दिन फिर पुरानी



3.

नए साल के बाद 
आख़िर
कहाँ चला जाता है 
पुराना साल

कोई नहीं पूछता उससे
तुम आजकल कहाँ हों

क्या कर रहे हो
कहाँ रह रहे हो

क्या तुम हो अभी भी 
उसी कैलेण्डर में हो
या वहाँ से रफ़ा’-दफ़ा’ कर दिए गए हो.

पुराना साल सड़क के किनारे खड़ा है
नए साल के इंतज़ार में
चुपचाप

वो बीत गया है
अब नहीं है घड़ी में 
डायरी में 

नया साल देख रहा
चुपचाप 

अपना हश्र



4.

नये साल से हाथ मिलाते हुए 
कहा बीते साल ने 
आया था जब मैं 
तुम्हारी तरह 
नई सुबह की रौशनी लिए हवा में 
नई ख़ुशबू लिए हुए 

किया था लोगों ने ख़ूब स्वागत 
सोचा था 
कुछ होगा नया 
इस साल 
कुछ होंगी उनकी उम्मीदें पूरी 

इंतज़ार किया साल भर लोगों ने 
किसे पता कि फिर मारे जायेंगे लोग दंगे में 
फिर होंगे बलात्कार फिर जलाये जायेंगे घर 
इसलिए तुम भी जरा संभल कर रहना 
तुमसे भी लोग उम्मीद लगा बैठे होंगे 

नये साल को गले लगाते हुए 
आ गये आँखों में आंसू 
बीते साल के 

रुंधे स्वर में उसने कहा 
जा रहा हूँ मैं 
तुम अपना ख्याल रखना 
इस ठंड में 
मफलर है कि नहीं तुम्हारे पास 
कोट भी तुम्हारा नया लगता नहीं 
नई उम्मीदें अधिक हैं 
मुझसे 
चुनाव भी होंगे इस साल 
ख़ून-ख़राबा होगा कुछ अधिक 
झूठे सपने अधिक दिखाए जायेंगे 
लोग और होंगे बेरोजगार 
आत्महत्या नहीं रुकेंगी 

लेकिन मुझे यह नहीं कहना चाहिए 
नये साल में सब अच्छा हो 
इसकी ही कामना करता हूँ 

लोगों ने मुझसे भी कहा था 
मैंने भी उन्हें ढाढस बंधाया था 
पर विफल ही तो रहा मैं 
कुछ खास कर नहीं सका 
मेरे हाथ में कुछ नहीं था 
मैं तो सिर्फ तारीख़ हूँ 
हर साल बदल जता हूँ 
कैलेंडर में 
लेकिन उम्मीद करता हूँ 
तुम मेरी तरह नहीं बीतोगे 
फिर वह नहीं कहोगे 
जो मैंने अभी कहा तुमसे 
हाथ मिलाते हुए 



5.

आज की रात 
दिसम्बर की आख़िरी रात है
अब वह फिर कभी नहीं आएगी 
इस साल लौटकर
चली जायेगी अपने घर
इस रात से तुमको क्या कहना है
जरा सोच लो
इस रात से क्या सुनना है
जरा सोच लो
क्या उससे तुमको मिलना भी है
यह भी सोच लो

आख़िर यह कैसी रात है
कोई रो रहा है शाम से

किसके सिसकने की आवाज आ रही है
कहीं दूर से 
किस के कदमों की आहट आ रही 
धीरे धीरे पास मेरे
यह दिसंबर की आख़िरी रात है
ठंड से सिकुड़ गया है जैसे जिस्म 
तुम्हारी याद भी जम गई है मानो
ख़्वाब भी सारे अब बर्फ बन गए हैं
यह दिसंबर की आख़िरी रात है
चांद भी सर्दी से ठिठुरने लगा है
ओढ़ ली है उसने भी एक पुरानी सी रजाई
तारों ने अलाव जला लिए हैं 
अपने हाथ सेंकने शुरू कर दिए हैं उसने
लेकिन ठंड है कि जाती नहीं है 
दूर से किसी के भागने की आवाज आती है 
अचानक कोई गोली चलती है 
और कोई गिरता है जोरों से औंधे मुंह
एक औरत चिल्लाती है
दौड़ती हुई 
कहती हुई मुझे बचा लो 
एक बच्चा भी कहीं रोता है 
पुकारता हुआ अपनी मां को
यह कैसी रात है दिसंबर की चमगादड़ उल्टे हैं चारों तरफ़ 
बीच बीच में कुत्तों के रोने की आवाज भी आती है 
कभी कोई बिल्ली भी रोती है आंगन में
दिसंबर की यह अजीब रात है 
रात के पैरों के नीचे बिछी हुई हैं
ख़ून की लकीरें 
कोई दर्द है इसकी पलकों पर छाया हुआ
कोई खड़ा है इसके सिरहाने दोपहर से
यह दिसंबर की अंतिम रात है
अब मेरी सिगरेट भी नहीं जल पा रही है 
अब मैं कुछ लिख भी नहीं पा रहा हूं अपनी कलम से
कागज दे रहा मुझे धोखा
अब कुछ बोल नहीं पा रहा हूं मैं 
मेरी आवाज बार-बार लड़खड़ा रही है 
मुझे कोई रास्ता सुझाई नहीं दे रहा है
मैं यहां से वहां भाग रहा हूं चारों तरफ़ बदहवास 
दिसंबर की यह कैसी रात है
मैं अंधेरे में ही खोल रहा हूं अपनी खिड़कियां 
सारे दरवाजे
कि मैं निकल जाऊं
घर से बाहर 
चला जाऊं कहीं दूर

अपनी माँ की कब्र के पास
जहां दफ़्न है
मेरे पिता भी
एक गहरी नींद में सोए पड़े हुए हैं 

दिसंबर की यह स्याह रात है 
हवा बज रही है सायं सायं
डरावनी लग रही है
शीशे पर किसी के पंजे के निशान हैं कोई छाया भी रेंग रही है
दीवारों पर 
यह दिसंबर की रात है
आतातायी घोड़ों पर सवार होकर आ रहे हैं
आ रही उनके हंसने की आवाज़ 
हाथ में उनके हैं बंदूक 
ख़ंजर भी लटके हैं कमर से
यह दिसंबर की आख़िरी रात है 
नींद नहीं आ रही है
पर थोड़ी देर में शायद आ जाये
यह जानकर 
कल होगी सुबह
और यह रात चली जायेगी
एक उम्मीद आएगी उसकी जगह
जब सारी तारीखें बदल जाएंगी 
कल से दुनिया के सभी कैलेंडरों में



7.

जा रहा हूं मैं अन्मयस्क 
इस साल को विदा करते हुए 
हवा में हाथ हिलाते हुए उसे 
दूर से ही देखते हुए 
मत्स्य दृष्टि से 
अगले साल में जा रहा हूं मैं
आशंकाओं और उम्मीदों के बीच
टूटे हुए सपनों के साथ 
नए पंखों की तलाश में

मैं जा रहा हूं
इस साल को विदा करते 
नए से हाथ मिलाने की तरकीब लेकर
उसे बोसा लेने की हसरत लिए

जा रहा हूं मैं
बहुत सारे ज़ख्मों को
अपने सीने में छुपाए 
बहुत सारे किस्सों को
होठों पे दबाए
यह सोचते हुए
कि ऐसा साल तो कभी आया नहीं था
किसी इतिहास में

कई सवालों को छोड़ता हुआ
धुएं की लकीरे खींचता हुआ 
आसमान में 
मैं जा रहा हूं फिर 
यह जानते हुए 
कि सवालों के जवाब मिलते कहाँ है
यह मानते हुए
कि कई नए सवाल फिर आएंगे
जिनके उत्तरों की तलाश में
एक साल फिर गुजर जाएगा

जा रहा हूं मैं
थका हारा भूखा प्यासा उनींदा 
अंधेरे से लड़ते हुए जा रहा हूं मैं
शायद अगले साल में बचा रह जाऊं थोड़ा 
शायद थोड़ी रोशनी मुझे नज़रआ जाए कहीं 
शायद कोई चांद आसमान पर से नीचे उतर आए

जा रहा हूं मैं
इस साल को विदा करते हुए
जो पूरी तरह लहूलुहान हो चुका है
जो अब लंगड़ा कर चलने लगा है 
जिसकी आवाज़ अब कांपने लगी है
जो खुद ही कराहता रहा है 
डरता रहा है 
किसी के करीब आने से 

पूरे साल एक सन्नाटे में डूबा रहा
उहापोह और अनिश्चितता में 
बंद कमरों के भीतर
बची हुई सांस लेते हुए
जीता रहा मरते हुए 

जा रहा हूं मैं
उदास होकर
यह सोच कर
कि शायद नए साल में 
कोई एक नयी किरन नज़र आ जाए 
शायद जीवन पराजित कर दे 
मृत्यु को अब 
शायद आततायियों का नाश हो जाये 
दिसम्बर की सर्द रातों को 
एक बार फिर चूमते हुए 
जा रहा हूँ मैं जनवरी की आगोश में 
ठिठुरता हुए 

जा रहा हूँ 
एक समय की दीवार को लांघते हुए 
केवल एक तारीख़ को बदलते हुए 
घड़ी की सुइयों का हाथ पकड़े कसकर 
एक वक्त से निकलकर 
एक दूसरे वक्त में 
अपनी ही साँसों में 
अपने ही रक्त में 

जा रहा हूं मैं
तुम्हें छोड़कर जा रहा हूं
जा रहा हूँ तुम्हारी टीसती यादों को लेकर 
सड़कों पर कुछ सोचते हुए 
सर झुकाए बुदबुदाते हुए जा रहा हूँ मैं 
क्योंकि मुझे जाना ही पड़ेगा 
कैलेंडर के उस पार
मैं चाह कर भी नहीं रुक सकता
अपने समय मे

यह कैसा समय था 

कैसा तूफान था 
क़त्ल-ए-'आम था 
लाठियां और गोलियां थीं
चीख और पुकारे थीं 

उदास खेत खलिहान थे 
जुल्म की लंबी रातें थी 
तारीखों के बदलने से 
साल नहीं बदलते कभी



8.

दिसम्बर तुम जा रहे हो 
इस तरह हमें छोड़ के
अभी तो चाँद निकला नहीं है
तारे भी नहीं हैं आसमान पे 
इतने अंधेरे में
इस शहर को छोड़ कर कहां जा रहे हो 

दिसम्बर तुम थोड़ा रुक जाओ
एक बोसा तो दे दो
मेरे पहलू में आ जाओ
मेरे दिल की बात तो सुन लो
मेरे ज़ख्मों को जरा देख लो
इस तरह धुएं में लिपटा मुझे छोड़ कर न जाओ
इस तरह आग की लपटों में घिरा हूँ
दिसम्बर तुम इस तरह न जाओ
जाने से पहले एक बार तो कह दो
जनवरी को तुम जरूर बता दोगे
मेरे मुल्क की हालत क्या है
एक दिन और रुक जाओ
तब तक मेरा बेटा भी 

अस्पताल से आ जायेगा 
उसे गोली लगी है हाल ही में पुलिस की 
लेकिन उस पर ही इल्जाम लगे हैं 
आगजनी के 
मुकदमा उसके खिलाफ ही दर्ज हुआ है
दिसम्बर तुम ज़रा जनवरी को बता दो
ये हत्यारे उसे नए साल में भी मिलेंगे



9.

आख़िरी बार नहीं डूबेगा यह चाँद 
भले ही यह आख़िरी रात है 
इस साल की 
आख़िरी बार नहीं पुकारूँगा तुम्हे 
भले यह आख़िरी सुबह है 
इस साल की 
पहली सुबह 
और पहली रात का 
बहुत गहरा रिश्ता है 
आख़िरी रात और आख़िरी सुबह से .
क्या तुम्हें याद है अब 
इस भागदौड़ की ज़िंदगी में 
आख़िरी पर कब लिया था तुम्हारा चुम्बन 
जब पहले चुम्बन की स्मृति भी धुंधलाने लगी हो 
पहली और आख़िरी सांसों के बीच 
धडकने जब कम हो गयीं हों 
इतना रास्ता पार कर लिया अब 
इस दुनिया में 
रंग सारे देख लिए 
चेहरे भी अनेक 

तो साल के आख़िरी दिन अब नहीं लगता 
कि चाँद डूब जायेगा आख़िरी बार 
आख़िरी रात मुझसे लिपटकर 
क्या फूसफुसायेगी 
हर मुलाक़ात तुमसे आख़िरी मुलाक़ात लगती रही 
हर ख़त भी तुम्हारा मुझे आख़िरी ख़त लगता रहा 
मैं फिर से कहता हूँ 
इस साल की आख़िरी रात 
मेरी ज़िन्दगी की पहली रात है
चाँद भले ही डूब जाये आख़िरी बार 
इस साल
******

10.


क्या फूलों को पता है
यह साल बदल रहा है
क्या नदियों को पता है
यह साल बदल रहा है

क्या सूरज और चांद को भी पता होगा 
यह साल बदल रहा है
मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ
किसी को नहीं पता होगा 
कि यह साल बदल रहा है
सिर्फ मनुष्य को पता है
नया वर्ष आने वाला है
सिर्फ कैलेंडर को पता है
नया साल आनेवाला है

तुम पिछले साल से पूछ कर देखो
उसे भी नहीं पता होगा
कि वह बीत गया
कोई और साल आ गया
उसकी जगह
तुम पूछ कर देखो
तितलियों से
वे नहीं बता पाएंगी
पिछला साल बीत गया

जो रातें बीत गईं
उनको भी नहीं पता
जो शामें बीत गईं
उनको भी नहीं पता 

साल के आख़िरी दिन 
रात में क्या आख़िर घटता है
एक साल बदल जाता है
रातों रात

घड़ियां वही रहती हैं 
सुइयां भी वही रहती हैं
सिर्फ साल बदल जाता है

तारीखें बदल जाती हैं

बस इंसान नहीं बदलता

००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'