जयंती रंगनाथन की बहुत सुंदर-सी कहानी है ‘मन रे…’, पढ़िएगा ज़रूर! ~ सं०
आदमी अजीब तरह से हंसा, ‘कहीं जाने के पहले तैयारी तो करनी होगी ना।’कली चुप हो गई। वाकई, कहां जा सकती है वो? ऐसा कोई नहीं जिसके पास वो जा सके। ना मम्मी का कोई है ना पापा का।‘तुम सोचना। अच्छा, एक काम करो। एक दिन तय करो कि तुम्हें उस दिन जाना है। उस दिन के पहले अपने आपको तैयार करो। अपने को इतना मजबूत बनाओ कि तुम अपनी सोच पर टिकी रह सको।’
मन रे…
जयंती रंगनाथन
वरिष्ठ पत्रकार जयंती रंगनाथन ने धर्मयुग, सोनी एंटरटेन्मेंट टेलीविज़न, वनिता और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया है. पिछले दस वर्षों से वे दैनिक हिंदुस्तान में एग्ज़ेक्यूटिव एडिटर हैं. उनके पांच उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. देश का पहला फ़ेसबुक उपन्यास भी उनकी संकल्पना थी और यह उनके संपादन में छपा. बच्चों पर लिखी उनकी 100 से अधिक कहानियां रेडियो, टीवी, पत्रिकाओं और ऑडियोबुक के रूप में प्रकाशित-प्रसारित हो चुकी हैं.
दोनों कानों पर हाथ रख कर भी वो उन आवाजों से बच नहीं पाई। दरवाजा खुला था। बाहर तक मम्मी की चीखती हुई आवाज़ आ रही थी। खरखराती, गुस्से से लबालब, कुछ कह रही थीं, बेसाफ़ और बहुत खराब।
कली धीरे से आगे आई, कमरे के बाहर लगा परदा थोड़ा सा खिसकाया। पापा मोढ़े पर बैठे थे। सिर झुकाए। अचानक मम्मी ने उनके ऊपर एक गुलदान फेंका। बचते-बचते भी पापा के सिर पर चोट लग गई। अपनी चोट की परवाह किए बिना उन्होंने मम्मी के दोनों हाथ थाम लिए और धीरे से कुछ समझाने लगे।
मम्मी एक पल को चुप रही, फिर हाथ छुड़ा कर सामने पड़ा रॉड ले आई।
कली भागती हुई कमरे के अंदर आ गई। वो रो रही थी। क्या पापा-मम्मी को नहीं पता, आज उसका जन्मदिन है? वो सोलह की हुई है आज। वही तो मनाने अपने घर से इतनी दूर, इस छोटे से हिल स्टेशन में आए हैं। यहां भी वही। झगड़ा!
वो पापा से आकर लिपट गई, ‘पापू, आपको चोट लगी है।’
मम्मी के हाथों में थमा रॉड इस बार पापा के पैरों पर पड़ा। पापा हलका-सा कराहे, ‘माया, क्या कर रही हो? कली को चोट लग जाएगी।’
‘लग जाए तो लग जाए। मैं तुम बाप-बेटी से तंग आ गई हूं।’ मम्मी फुंफकारते हुए बोली।
कली के मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई। पापा ने रॉड अपने हाथों में थाम लिया और पलंग के नीचे डाल दिया। मम्मी को बांहों में कस कर पकड़ कर बोले, ‘माया, ऐसा नहीं करते। आराम से बात करते हैं। मुझे पता है तुम नाराज हो। मुझे बताने तो दो…’
कली रोते हुए कमरे से बाहर निकल आई। डाक बंगले से बाहर, सड़क से बाहर। वह चल नहीं रही थी, दौड़ रही थी। उतनी ही तेज, जितनी तेज उसका दिल धड़क रहा था, तड़प रहा था, बिखर रहा था।
सुबह की तेज धूप सीधे उसके चेहरे से होते हुए रूह को तपाने लगी। इस समय उसके भीतर सिर्फ आंसू थे। हारे हुए से आंसू। ऐसा तो नहीं होना था। उसका बर्थडे। उसका हैप्पी बर्थडे। वो ख़ुश थी कि मम्मी ठीक हैं। पापा ने कहा था कि इस बार उसका स्पेशल बर्थडे है। किसी अच्छी-सी जगह पर चल कर मनाएंगे। अच्छी जगह, जो अब तक सिर्फ कली के सपनों में था। अच्छी जगह, अच्छा समय, अच्छे दिन…
रात पहुंचे थे डाक बंगले में। कली ने बड़े मन से अपनी नई ड्रेस सूटकेस से निकाली। गहरे नीले रंग की फ्रिल वाली स्कर्ट और सफेद सिल्क के कपड़े पर नीले छींट के फूलों से सजा क्रॉप टॉप।
इस समय वो वही पहने थी। स्कर्ट को घुटनों तक उठाए वो भाग रही थी। यह भी होश नहीं था कि टॉप उसके दाहिने बाजू से नीचे लटक आया है। सिल्क की बेल्ट झाड़ी में फंस गई है और खिंचते-खिंचते फट ही गई है।
उसके दुख में यह दुख भी जुड़ गया। सोलहवें साल में इतना दुख। पहाड़-सा। नहीं समझ आने वाला।
वो पेड़ के नीचे बैठ गई।
इस समय रोना रुक गया था।
टॉप का फटा टुकड़ा हाथों में ले कर वो सुन्न-सी बैठी रही।
देर तक।
वो थक गई थी।
बहुत ज्यादा।
रोना नहीं, सोना चाहती थी।
आंखें बंद कर।
जो हो रहा है उससे दूर भागना चाहती थी। आंखें खोलेगी तो ये सब नहीं होगा। पता है ऐसा नहीं होनेवाला।
बंद आंखों के बाहर की दुनिया भयानक है, बंद आंखों के भीतर सुकून।
सब कुछ वैसा जैसे वो चाहती है।
आंखें खोलनी ही नहीं है।
ऐसे ही रहना है, बंद आंखों में सपनों के साथ।
सपनों की कैद में आंखें।
उसके आंसू चेहरे से चिपक-से गए थे। सांसों में समा गए थे। हिचकियों में बस गए थे। आंखें बंद थी। सांसें धीरे-धीरे चल रही थी। आंखों के पीछे और सांसों के आगे कुछ सपने-से आने लगे।
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अचानक पेड़ जैसे हिला। हवा चलने लगी। ऐसा लग रहा था, हवाएं उसे जबरदस्ती उठा रही हों, कहीं ले जा रही हों। अब पांव उसके नहीं थे, हवा के थे। वो चल नहीं रही थी, उड़ रही थी। वह रुकी तो सामने एक नदी थी। नदी किनारे हरे-हरे से नारियल के पेड़ थे। भुरभुरी-सी सुनहरी रेत थी। रेत पर पड़े शंख और घोंघे थे।
कली ने चौंक कर चारों तरफ देखा। नदी में एक नौका चल रही थी। कली किनारे आ गई। नौका भी ठीक उसके पास आ लगी। नौका चलाने वाला एक खूबसूरत-सा अधेड़ आदमी था। बाल कच्चे-पक्के। जीन्स और बनियान पहने। कंधे पर सफेद तौलिया। उसके बाल कंधे तक झूल रहे थे। गले और हाथों में उसने रंग-बिरंगी मोतियों के आभूषण पहन रखे थे।
कली को देख कर वो मुस्कराया। उसकी आंखें इतना तेज चमक रही थीं कि कली पलकें झपकाना भूल गई।
‘नदी की सैर करोगी?’, आदमी उससे पूछ रहा था।
कली कुछ नहीं बोली। बस पांव बोलने लगे। वह धीरे-से नौका की तरफ कदम बढ़ाने लगी। आदमी ने उसे अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और वो नौका के अंदर आ गई।
नौका पर बस एक पटरी-सी लगी थी। वो बैठ गई। आदमी बिना कुछ कहे नौका पानी के बीच ले आया।
कली की सांसों में नदी से उठता स्वाद घुलने लगा। पानी का स्वाद। सफेद, छलछलाते पानी का। कली ने हाथ बढ़ा कर पानी को छुआ। फिर अपने चेहरे पर लगा लिया।
नदी के किनारे हरे-हरे पेड़ थे, कुछ झोंपड़ियां थी। झोंपड़ियों के आगे मछलियां सूख रही थी। बच्चे खड़े हो कर हाथ हिला रहे थे। नौका आराम से आगे बढ़ रही थी। सबकुछ जैसे पहले से तय था।
आदमी ने अचानक पूछा, ‘नारियल पानी पिओगी?’
कली ने हां में सिर हिलाया और धीरे से बुदबुदाई, ‘पापा को पता है, मुझे बहुत पसंद है नारियल पानी।’
आदमी ने नौका नदी किनारे रोक लिया। कली का हाथ पकड़ कर उसे किनारे ले आया। नारियल के पेड़ की टूटी शाख पर उसे बैठने का इशारा किया और खुद गायब हो गया। कली को अच्छा लग रहा था। कुछ नया सा।
कुछ मिनटों बाद आदमी दो कच्चे नारियल के साथ सामने आया। एक नारियल कली को देते हुए बोला, ‘खूब पानी वाला है।’
कली स्ट्रॉ से धीरे-धीरे चुस्की लेने लगी।
दोनों चुप थे। कली ने नारियल खत्म करने के बाद धीरे से कहा, ‘मैं अगली बार मम्मी-पापा को यहां ले कर आऊंगी।’
‘अभी ले कर क्यों नहीं आई?’
‘दोनों झगड़ा कर रहे थे।’
‘अच्छा। किस बात पर?’
‘उनको झगड़ा करने के लिए कोई बात नहीं चाहिए। झगड़ा मम्मी करती हैं। गुस्सा हो जाती हैं। पापा को मारती हैं।’
‘मम्मी बुरी हैं तुम्हारी?’
‘पता नहीं। पापा पर भी गुस्सा आता है। वो हमेशा मम्मी की साइड लेते हैं। मेरी नहीं।’
‘तुम्हें क्या चाहिए?’
‘मुझे? मुझे उनके साथ नहीं रहना। दोनों मुझे नहीं समझते। मुझे कहीं भाग जाना है। अकेले…’
‘तो भागो ना। किसने रोका है?’
कली ने चौंक कर उस आदमी की तरफ देखा।
‘भाग जाऊं?’
‘भागना आसान है। साथ रह कर समस्याओं से निपटना मुश्किल है।’
‘मुझे क्या करना चाहिए?’
‘पापा मम्मी को कुछ नहीं कहते तो तुम क्यों परेशान हो रही हो? वो उन दोनों के बीच की बात है। उनका प्यार है। उनकी समझदारी है। तुम अपना देखो, अपने लिए रास्ता बनाओ।’
कली चुपचाप सिर हिलाने लगी।
अचानक वो बोली, ‘आज मेरा बर्थडे है। मम्मी-पापा ने सुबह विश तक नहीं किया, बस झगड़ने लगे।’
आदमी हंसा, ‘तुम इसलिए परेशान हो? एक दिन से अपने आपको क्यों बांध कर रखती हो? मुझे देखो, मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैं कब पैदा हुआ? मैं इसलिए रोज अपना बर्थडे मनाता हूं।’
उस आदमी की आंखें इतनी चमक रही थी जैसे कोई हीरा हो। कली ने आंखें झुका ली। आदमी उठ गया, ‘चलो, तुम्हें वापस छोड़ कर आता हूं।’
कली उसके पीछे-पीछे चलने लगी। दोनों वापस नौका में आ गए। वापस आने तक दोनों में कोई बात नहीं हुई। नौका किनारे लग गई।
कली उतर गई। वो उस आदमी से बहुत कुछ कहना चाहती थी। पता नहीं क्या? उसने बस इतना कहा, ‘मैं तुमसे मिलने फिर आऊंगी। अच्छा, अगली बार पापा से पैसे भी ले आऊंगी। तुम्हें देने के लिए। मुझसे बातें करोगे ना?’
आदमी सिर हिलाते हुए हंसने लगा। उसने नौका को वापस नदी की तरफ मोड़ लिया। कली उसे जाता हुआ देखती रही। पता नहीं, उसकी आंखें कहां थी, बस वो कहीं दूर देखती हुई हाथ हिलाती रही।
जंगल के पेड़ कुछ ज्यादा हरे लग रहे थे। एक सूखे पेड़ से डंडी तोड़ वो उसे हाथ में ले कर चलने लगी। इस समय ना उसे अपने फटी हुई नई ड्रेस की चिंता थी, ना मम्मी-पापा के झगड़े की। पता नहीं कैसे वो मन ही मन गाने लगी। वो टीनएज लड़कियों की चाल होती है ना, पांव उठा कर उछलती-कूदती-थिरकती-मचलती लड़कियां, बिलकुल वैसा ही कुछ कर रही थी। उसे नहीं पता, वो क्या गा रही थी। शायद स्कूल के म्यूजिक बैंड को गाते सुना था, के-पॉप का कोरियन गाना। उसे यह भी नहीं पता था कि उसे इस गाने के बोल याद हैं।
डाक बंगले के सामने पापा खड़े थे, कुछ परेशान से। कली को देख कर लपक कर उसके पास आ गए, ‘कहां चली गई थी?’
कली ने गाने की रफ्तार रोकी, उसी रौ में कहा, ‘घूमने। यहां का जंगल बहुत सुंदर है पापा। जंगल के पार एक नदी है। वहां नौका चलती है। नदी किनारे गांव है, वहां नारियल के पेड़ हैं पापा। आप चलेंगे मेरे साथ?’
पापा ने उसकी तरफ देखा, ‘तू कहां-कहां हो आई? फिर कभी चलेंगे बेटू। अभी हमें वापस लौटना होगा। माया की तबीयत बिगड़ गई है। सो सॉरी कली। तेर बर्थडे के दिन ये सब…’
कली पापा के पास पहुंच कर उनके गले लग गई, ‘कोई बात नहीं पापा। मेरा बर्थडे फिर कभी मना लेंगे।’
शायद पापा चौंके थे। उसने देखा नहीं। बस लगा। पापा सामान बांध चुके थे। गाड़ी में रखने में कली ने उनकी मदद की। पापा चुप थे, थोड़ा डिस्टर्ब लग रहे थे। मम्मी को गाड़ी में पीछे की सीट पर लिटा दिया। कली पापा के साथ सामने बैठी। गाड़ी चलने लगी। पापा ने कली के सिर पर हाथ फेरा। उन्होंने पूछा, ‘तू ठीक है ना कली?’
पता नहीं कली ने क्या जवाब दिया, उसे याद ही नहीं। उसने शायद यह कहा था कि वो फिर से नदी में नौका में जाएगी, नौका चलाने वाले आदमी से मिलेगी। उससे खूब बातें करेगी, कहते-कहते उसने आंखें बंद कर ली। यह सीन उसकी आंखों में ही नहीं, उसके भीतर हमेशा के लिए जैसे बस गया।
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कली दो दिन पहले अपने घर में एक सप्ताह की छुट्टियां बिता कर वापस लौटी थी। कुछ था जो अंदर से उसे भर रहा था, बाहर से तोड़ रहा था। इस छोटे से कस्बे के पुराने से सरकारी अस्पताल में वो पिछले एक साल से हाउस सर्जन थी। एमबीबीएस पढ़ने के बाद कली की पहली पोस्टिंग यहां हुई थी। उसे आगे पढ़ने का मन नहीं था। बस नाम के साथ डॉक्टर लग गया, कुछ तो कर ही लेगी ज़िंदगी में अपने साथ।
कली को इस रोते-धोते क़स्बे की कई बातें अच्छी लगती थी। क़स्बा बस दिन में कुछ घंटों के लिए जगता था। शाम के बाद एकदम ठंडा हो जाता। कली रात को जब थकी-हारी अपने घर लौटती, उसे चारों तरफ सन्नाटा मिलता। उससे कहा गया था कि वो रात अकेली बाहर ना निकले। पर उसे डर नहीं लगता था, किसी से भी नहीं, कभी भी नहीं। और इन सबसे कहीं ज्यादा अच्छा लगता था डॉक्टर नीलेश।
पापा और मां पीछे रह गए, सामने आ गया नीलेश, जो मेडिकल कॉलेज में उसके साथ पढ़ता था। शायद वो नीलेश ही था, जिसकी वजह से कली को मेडिकल की पढ़ाई अच्छी लगती थी, ज़िंदगी सुहानी लगने लगी थी। नीलेश से मिलने के बाद ज़िंदगी उस सोलहवें साल के जन्मदिन के खूंटे से अटकी ना रही।
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वैसे कली को सोलहवां साल का अपना जन्मदिन कभी नहीं भूलता। पापा के साथ कार में बैठी वो, गाना गुनगुनाती हुई। पिछली सीट पर लेटी मां बड़बड़ाती हुई। घबराए से पापा।
मां की तबीयत फिर कभी संभल नहीं पाई।
पापा जैसे सोलह साल की कली को भूल ही गए थे। उनके लिए बस उनकी पत्नी थी और पत्नी की गिरती तबीयत। मां एक दिन सही रहती, अगले ही दिन कुछ ऐसा हो जाता, कि घर में भूचाल आ जाता। एक दिन कली ने अपनी पड़ोस में रहने वाली आंटी को किसी से कहते सुना था, कली की मां तो पागल है।
सुन कर कली दौड़ती हुई घर आई। पापा बरामदे में गमले में लगे पौधों को पानी दे रहे थे। कली हांफ रही थी, उसकी आंखों में खौफ था। बिना रुके उसने कहा, ‘सब कहते हैं, मम्मी पागल है!’
पापा ने हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठाया, ‘कली, तुम्हारी मम्मी थोड़ी बीमार हैं। दवा लेंगी, तो ठीक हो जाएगी।’
‘क्या हुआ है मम्मी को?’
पापा सोचते हुए बोले, ‘उन्हें बायपोलर डिसऑर्डर है। तुम्हें अगली बार उनके डॉक्टर के पास ले जाऊंगा। वो तुम्हें बताएंगे कि इस बीमारी के मरीज के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए।’
कली अभी भी शॉक्ड थी।
‘मम्मी को मेंटल प्राब्लम है? आंटी कह रही थी कि …’
‘कली, मैं जो बता रहा हूं, वो सुनो तो। मेंटल माने क्या? पहले ये समझ लो। ये भी एक बीमारी है। इलाज करा रहे हैं ना। ठीक हो जाएगी तुम्हारी मम्मी।’
पापा की आवाज़ ठंडी थी, फ्रिज से निकले आइस कोल्ड पानी की तरह। वे पता नहीं कहां देख रहे थे, ‘तुम अपनी मम्मी के पास जा कर बैठो। बातें करो। मैं देख रहा हूं, आजकल तुम उनसे दूर रहती हो।’
कली ने सिर झुका लिया। अचानक उसके मुंह से निकला, ‘पापा, मम्मा हमेशा आपसे झगड़ा करती हैं, आपके साथ मारपीट करती हैं। मुझ पर भी गुस्सा करती हैं। हम उनके साथ रहते ही क्यों हैं? उन्हें पागलखाने क्यों नहीं भेज देते?’
‘कली…’ पापा चीखे नहीं थे, बस कराहे थे। उनकी आवाज़ तेज नहीं थी, पर कुछ तो था जो कली के पांव जम गए। पापा के हाथ से होसपाइप फिसल कर नीचे गिर गया। कली का हाथ पकड़ कर पापा बरामदे में बनी सीढ़ियों पर बैठ गए। देर बाद धीरे से बोले, ‘मैं और तुम्हारी मां कॉलेज में साथ पढ़ते थे। पढ़ने में बहुत तेज थी माया। कॉलेज के बाद हम दोनों ने शादी का फैसला कर लिया। तुम्हारी मां स्कूल में पढ़ाने लगी। मेरा मन था सिविल सर्विस में जाने का। तुम्हारी मां ने कहा कि मैं पढ़ूं, वो नौकरी करेगी। मैं एक के बाद एक अटैम्प्ट में फेल होता गया। मेरी कुंठा बढ़ती गई। तब तक तुम भी हो गई। उस समय तुम्हारी मां नहीं होती तो …’ पापा की आवाज़ भर्रा गई।
‘वो अच्छी औरत है बेटी। हम उन्हें ठीक करेंगे। तुम इसमें मेरा साथ दोगी ना?’
कली का हाथ पापा के हाथ में था। कली ने हां कहा, उसे नहीं पता उसके मन में क्या था।
पापा उठ कर मम्मी के पास चले गए। उस रात वो घर के बाहर देर तक बैठी रही। नींद के झोंके के बीच वो कब उठ कर घर से बाहर निकल गई, उसे नहीं पता।
उसे नहीं पता, वो कहां जा रही थी। उसे तो यह भी नहीं पता था कि जहां वो लोग रहते हैं, उसके आसपास इतनी हरियाली है। बस उसे इतना याद रह गया कि अंधेरे में भी उसे सबकुछ साफ़ दीख रहा था। जैसे वो कोई फिल्म में रात का दृश्य देख रही हो। पेड़ों के बीच से अचानक उसे एक पहचानी हुई सी आवाज़ आई, ‘अरे..’
कली ठिठक गई। उसके सामने नौका खेने वाला आदमी खड़ा था। कली रुक गई। ना जाने क्यों उसे रोना-सा आ गया, ‘मैं आपको याद कर रही थी।’
आदमी हंसने लगा, ‘अच्छा? फिर कुछ हुआ क्या तुम्हारे साथ?’
कली ने हां में सिर हिलाया। आदमी उसके पास चला आया। पेड़ के नीचे पत्थर-से पड़े थे, वो वहां बैठ गया और कली को भी इशारे से बैठने को कहा, ‘तो बताओ?’
कली ने धीरे से मुंह खोला, ‘मैं… आप बताइए, आप यहां क्या कर रहे हैं? आप तो नदी में नाव चलाते हैं ना?’
‘मेरा कोई एक काम नहीं है। मैं नाव चलाता हूं, जंगल की चौकीदारी करता हूं, मिट्टी के सामान बनाता हूं …’
‘हम्मम। आप इतने सारे काम करते हैं। मुझे देखिए, मुझे पता ही नहीं क्या करना चाहती हूं।’
‘अच्छा, अगर मैं यह कहूं कि वो काम करो, जो तुम्हें अच्छा लगता है तो क्या करोगी?’
‘मुझे घर में रहना अच्छा नहीं लगता। मम्मी-पापा … कोई नहीं। मुझे कोई प्यार नहीं करता। मुझे कहीं दूर जाना है।’
आदमी सोचने लगा, ‘तो जाओ ना। पहले उस लायक़ बना जाओ, फिर जाओ। जहां जाना है जाओ।’
कली उसका मुंह ताकने लगी।
आदमी अजीब तरह से हंसा, ‘कहीं जाने के पहले तैयारी तो करनी होगी ना।’
कली चुप हो गई। वाकई, कहां जा सकती है वो? ऐसा कोई नहीं जिसके पास वो जा सके। ना मम्मी का कोई है ना पापा का।
‘तुम सोचना। अच्छा, एक काम करो। एक दिन तय करो कि तुम्हें उस दिन जाना है। उस दिन के पहले अपने आपको तैयार करो। अपने को इतना मजबूत बनाओ कि तुम अपनी सोच पर टिकी रह सको।’
‘सोचूंगी। एक बात बताइए। पापा कहते हैं मुझे मम्मी से बात करनी चाहिए। उनसे क्या बात करूं? वो तो हमेशा गुस्से में रहती हैं।’
‘ये भी मैं बताऊं? पापा ने कहा तुम्हें बात करनी है। वो बात करेंगी ये तो नहीं कहा।’
कुछ हुआ कली के अंदर। हां, ये तो आसान है। उसे वैसे भी बात करना पसंद है। मम्मी के सामने बैठ कर कर लेगी। ज़रूरी थोड़े ही वो सुने भी और कुछ जवाब भी दे।
आदमी उठ कर खड़ा हो गया। कली धीरे से उठी, ‘आप फिर कब मिलेंगे? कहां मिलेंगे?’
आदमी हंसने लगा। हंसते-हंसते अंधेरे में, रोशनी बनाते हुए आगे निकल गया।
उसकी ना स्कूल में कोई सहेली थी, ना अपनी कॉलोनी में। उसे लगता, दूसरी लड़कियां उसका मज़ाक़ उड़ाती हैं, जरूर पीठ पीछे कहती होंगी कि इसकी मम्मी पागल है। कली हर किसी से बचती फिरती। उसे स्कूल जाना अच्छा लगता था, घर से उतनी देर के लिए दूर रहना। अपनी किताबों में गुम रहना। लंच टाइम में स्कूल के पार्क में अकेले घूमना।
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उस रात की भी बस एक धुंधली-सी याद है कली को। ऐसी कोई रात थी भी? चांदी के तारों-सी चमकती रात। कली कब घर लौटी, कैसे लौटी उसे याद नहीं। कई बार दिन में वो उन रास्तों को खोजने निकलती, हमेशा राह भटक जाती।
पर इसके बाद कुछ तो हुआ उसके भीतर। वो स्कूल से लौट कर मम्मी से बातें करनी लगी। मम्मी के साथ उसका एक अजीब-सा रिश्ता बन रहा था। वह उन्हें चम्मच से खाना खिलाती और अपनी बात कहती जाती।
मम्मी कभी चुप रहतीं, कभी गुस्सा हो जातीं। कभी कहतीं, मुझे आराम करने दे।
मम्मी की तबीयत फिर से बिगड़ने लगी। उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा। कली स्कूल से अब सीधे हॉस्पिटल आती और पापा के साथ गलियारे में बैठी रहती। वो ही दिन थे, वो ही क्षण, जब पहली बार कली के मन में डॉक्टर बनने का ख्याल आया। स्कूल में उसने साइंस लिया था। पर तब तक सोचा नहीं था आगे क्या करना है। ना घर में ना स्कूल में, किसी ने उससे कभी पूछा ही नहीं था। उसके साथ की लड़कियां मेडिकल एंट्रेस की तैयारियों में लगी हुई थी। कली उन सबसे दूर थी। अपनी ही परेशानियों में घिरी हुई। उस दिन बैठे-बैठे उसे लंबे बालों वाले नाविक का ख्याल आया, उसने कहा था, कहीं जाने का दिन तय करने से पहले, वहां तक पहुंचने का रास्ता तैयार करो। पापा को उस दिन समझ ही नहीं आया कि हॉस्पिटल के गलियारे में बैठी-बैठी कली मुस्कराने क्यों लगी है?
कली ने अपना यह प्लान किसी को नहीं बताया। अपने अंदर इस कदर बिठा लिया जैसे यह उसके सपने का हिस्सा हो। मम्मी जब हॉस्पिटल से घर आईं, कली बदल चुकी थी। उसके सपनों में रंग भरने लगे थे।
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बदलते-बदलते कली बड़ी हो गई। नीट के एग्जाम में अच्छे नंबर आना, सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमीशन और फिर डॉक्टर कली बन जाना। कली को रास्ता मिल गया, घर से निकलने का, अपनी ज़िंदगी जीने का।
और जबसे नीलेश ज़िंदगी में आया, उसे जैसे अपनी कहानी का एक सिरा मिल गया। उन दोनों ने एमबीबीएस करने के बाद एक साथ इस छोटे से कस्बे के सरकारी अस्पताल में हाउस जॉब करने की ठानी। कली ने कस्बे के एक कोने में एक दो-मंजिला घर में ऊपर का फ्लैट किराए पर ले लिया। उसकी खिड़की बाहर की और खुलती थी और वहां से दिखता था मैदान, बेतरतीब उगी झाड़ियां, उछलते-कूदते नए-पुराने कुत्ते और रात को आती उनकी लड़ने-मोहब्बत करने की आवाज़। ये आवाज़ें उसके लिए लोरी का काम करतीं। उसे अच्छा लगता था, हॉस्पिटल से निकल कर रात को अकेले अपने घर लौटना। खिड़की से बाहर सिर निकाल कर देर रात तक आसमां को देखना।
पहली बार जब उसने नीलेश को बताया कि रात को हॉस्पिटल से निकल कर वो अंधेरे में पैदल घर जाती है, वो डर गया।
‘कली, तुम्हें डर नहीं लगता?’
कली हंसी, ‘नहीं, मुझे किसी भी बात से डर नहीं लगता। मैंने तुम्हें बताया था ना जब मैं सोलह साल की थी, अकेली जंगल में घूमने गई। वहां नाव में बैठ कर सैर भी की। उस नाविक से दोस्ती भी कर ली। तुम्हें बताया तो था, उसके बारे में। उससे कई बार मिल चुकी हूं। ही इज मइ फ्रेंड, फिलासफर एंड गाइड…’
‘सो फनी। तुम क्रेजी हो कली। तुम अकेली एक अनजान आदमी के साथ मिलने चली जाती हो। अब भी पता नहीं कहां-कहां मिलती हो उससे। तुम्हारे साथ अगर वो कुछ गलत करता तो?’
कली ने बीच में उसे टोक दिया, उसके दोनों हाथ अपने हाथों में ले कर बोली, ‘नील, तुम बेकार में मुझे डरा रहे हो। वो अच्छा आदमी है। मेरा दोस्त है। तुम्हें कभी मिलवाऊंगी उससे।’
नील रुक कर बोला, ‘कली, प्लीज मेरी एक बात मानोगी? आज से तुम्हें रात को घर मैं छोड़ कर आऊंगा।’
‘पर हमारी शिफ्ट तो कई बार अलग होती है ना?’
‘कोई बात नहीं, पर मैं मैनेज कर लूंगा।’
कली ने कुछ कहा नहीं। पर उसने नीलेश की यह बात कभी नहीं मानी। उसे शुरू से रातों को सड़क नापते हुए, अपने आप से बातें करते हुए चलना अच्छा लगता था। वह बिलकुल उसी सोलह साल की लड़की की तरह सड़क पर झूमती हुई चलती थी। कभी-कभी गाने भी लगती।
इन दिनों ज़िंदगी अच्छी-सी लगने लगी थी। नीलेश उसकी आंखों में सपने-सा संवरने लगा था। नीलेश का सपना, उसका सपना। नीलेश चाहता था, वो हाउस सर्जन की प्रैक्टिस छोड़ कर एमडी की तैयारी करे। उसे हार्ट स्पेशलिस्ट बनना था। कली उसके सपनों में खुद को रंगने लगी थी। आखिरकार उसने एक दिन कह ही दिया, ‘नीलेश, मैं हूं ना। तुम पैसे की चिंता क्यों कर रहे हो? मुझे इतने पैसे मिल रहे हैं कि हम दोनों का गुज़ारा चल जाएगा।’
नीलेश भावुक हो गया, ‘कली, मुझे तैयारी करने में एकाध साल लगेगा। फिर दो साल का कोर्स और उसके बाद भी …’
‘अरे, मैं कह रही हूं ना। तुम ज्यादा मत सोचो। बस तैयारी शुरू कर दो।’
वो दोनों उस समय कली के फ्लैट में थे। छोटी-सी बालकनी में दोनों हाथ पकड़ कर खड़े थे। कली ने कमरे के कोने में छोटे से किचनेट में एक चूल्हे वाली गैस पर कॉफी और ब्रेड टोस्ट बनाया था। बालकनी की रैलिंग पर कॉफी के कप रखे थे। गर्म भाप हवाओं में नक्शा-सा बना रहा था। कली ने अपने बाएं हाथ की एक उंगली से भाप के नक्शे पर कुछ लिखा।
नीलेश ने कली का दायां हाथ अपनी मुठ्ठी में दबाते हुए कहा, ‘तुमने अपने मम्मी-पापा को बता दिया? वो लोग मान जाएंगे?’
कली ने अपने भीतर तक नीलेश के हाथों की गर्मी महसूस की। वो धीरे से बोली, ‘मम्मी को बताना, ना बताना एक ही है। पापा… हां उन्हें बता दूंगी। पर सच कहूं तो उन्हें भी फ़र्क नहीं पड़ेगा। मेरी सेलरी है, मैं जो चाहे करूं। एक बात बताऊं नील, मेरी मम्मी ने भी पापा के साथ यही किया था। सालों तक मम्मी ने पापा की पढ़ाई के पैसे दिए। वो सिविल सर्विस में जाना चाहते थे। मम्मी ने उन्हें बहुत सपोर्ट किया।’
‘तुम्हारी मम्मी तो…’ नील कहते-कहते रुक गया।
‘हम्म… पता ही नहीं चला कि वो बायपोलर हैं। पहले तो पापा को लगा कि उनके काम ना करने की वजह से मम्मी ऐसे रिएक्ट कर रही हैं। पर पापा की नौकरी लग गई, तब भी मम्मी ऐसी ही रहीं। अजीब है ना, लाइफ में दोनों ने एक-दूसरे की केयर की। मम्मी ने अलग ढंग से, पापा ने अलग ढंग से। पापा के केयर की वजह से मम्मी सालों तक जॉब कर पाईं। पापा ने उनके इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी। मम्मा इज फाइन, बिकाज ऑफ पापा।’
नीलेश चुप था। कली के हाथ पर उसकी पकड़ मजबूत होती चली गई। उसने धीरे से कली को अपने गले लगाते हुए कहा, ‘शादी कर लें?’
कली उसकी बांहों में दोनों हाथ डाले झूल गई, ‘हां, कर लेते हैं। एक साथ रहेंगे। मजा आएगा। यहीं एक थोड़ा-सा बड़ा फ्लैट किराए पर ले लेंगे। तुम दिन भर घर में पढ़ना, मैं तुम्हें बिलकुल डिस्टर्ब नहीं करूंगी।’
नीलेश ने आगे बढ़ कर उसके होंठ चूम लिए। कली ने आंखें बंद कर ली। उसकी बंद आंखों के भीतर बरसों से जो सपने कैद थे, वो चमकते हुए बाहर निकलने लगे। वो भाग रही थी, हरे-भरे जंगल में, नदी किनारे, नाव के पास। ढूंढ रही थी नाविक को। वह उससे मिल कर बताना चाहती थी, वो शादी कर रही है।
कली ने नीलेश के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘सुनो ना नील, हम हनीमून के लिए वहीं जाएंगे जहां मैं अपना सोलहवां बर्थडे मनाने गई थी। मैं तुम्हें वो जंगल, वो नदी दिखाना चाहती हूं। उस नाविक से मिलवाना चाहती हूं। बहुत प्यारा आदमी है। हंसता रहता है। उसका चेहरा ऐसा है… उसकी आंखें… उसकी वो लंबी सी नाक…’
‘बस करो बेब्स। मुझे जलन हो रही है। तुमने कभी मेरे बारे में तो ऐसा कुछ नहीं कहा…’
‘तुम सच में जल गए? नील तुम भी। तुम एक बार मिलोगे ना उनसे तो फैन हो जाओगे। मुझे नहीं पता, वो कहां रहता है, किसके साथ रहता है। मुझे बस इतना पता है कि मेरे साथ उसका कोई तो कनेक्ट है। आइ एम श्योर तुम्हारे साथ भी होगा।’
नील ने उसे आगे बोलने का मौका नहीं दिया, कस कर उसे अपनी बांहों में भींचते हुए बुदबुदा कर बोला, ‘हम शादी कर रहे हैं। बस्स…’
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कली को लग रहा था पापा और मम्मी नील के साथ उसकी शादी को ले कर ख़ुश होंगे। पापा ने नील को एकदम से नकार दिया, उसके सामने नहीं, कली को अकेले में अपने पास बुला कर, ‘तुम्हें जल्दी क्या है शादी करने की? तुम अपनी दुनिया में रहती हो कली, शादी बहुत बड़ा कमिटमेंट है। अभी तुम दोनों की उम्र ही क्या है? पहले नीलेश को सेटल तो हो जाने दो। वो कह रहा है उसे आगे पढ़ना है।’
‘तो क्या हुआ पापा?’
‘वो अपनी फैमिली के बारे में भी ठीक से बता नहीं रहा।’
‘पापा, मैंने बताया ना, उसे गोद लिया गया था। बाद में जब उसकी मां का अपना बच्चा हो गया तो नीलेश नेगलेक्टेड रह गया। उसने जो भी किया है, अपने बूते पर किया है।’
‘वो ठीक है। तुम्हें इतनी जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। मैंने पहले भी तुमसे कहा है बेटी, तुम बहुत सेंसिटिव हो, अपनी मम्मी की तरह…’
कली बिदक गई, ‘मैं मम्मा की तरह नहीं हूं पापा। मैं कली हूं, मुझे पता है मुझे लाइफ में क्या चाहिए। नील और मैं एक जैसे हैं। हम दोनों एक-दूसरे के लिए काफी हैं पापा। उसने लाइफ में बहुत सफर किया है, मैं उसे बस ख़ुश देखना चाहती हूं। मुझे नील चाहिए, बस्स…’
पापा ने लंबी सांस ली। उनके चेहरे से लग रहा था वो नाख़ुश हैं।
कली और नीलेश ने आर्य समाज में जा कर शादी कर ली। कली ख़ुश थी। नीलेश को अपनी दुनिया में शामिल करके।
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दस साल में वो हिल स्टेशन बदल चुका था। गूगल में उस डाक-बंगले का अता-पता ही नहीं था। वहां पहुंचने के बाद पता चला कि डाक-बंगला की जगह अब एक नया रेजॉर्ट खुल गया है। वो सड़क जो पहले जंगल की तरफ जाती थी, अब मॉल की तरफ जा रही थी।
कली और नीलेश उसी रेजॉर्ट में रुक गए। वहां पहुंचते ही कली ने जिद पकड़ ली, ‘चलो ना नील, तुम्हें वो जगह दिखाती हूं, जहां मैं दस साल पहले गई थी।’
नील का हाथ पकड़ कर खींचती हुई वो सड़क पर ले आई। वो सड़क अब कहीं खत्म ही नहीं हो रही थी। मॉल के बाद अब कालोनी शुरू हो गई थी। कली ने राह चलते एक आदमी को रोक कर पूछा, ‘भैया, आज से कुछ साल पहले ये सड़क जंगल में जाती थी ना? अब जंगल का रास्ता किधर से है?’
उस आदमी ने चौंक कर कहा, ‘जंगल? कौन सा जंगल?’
‘वो जहां नदी है, नाव है, किनारे पर बस्तियां हैं, नारियल के पेड़ हैं।’
आदमी ने कंधे उचका लिए, ‘यहां तो ऐसा कुछ नहीं है। लगता है आप गलत जगह पर आ गए।’
नील ने कली का हाथ पकड़ लिया, ‘कली, आर यू श्योर, ये वही जगह थी?’
कली नाराज हो गई, ‘हां बाबा, मैं गलत कह रही हूं? चाहो तो रेजॉर्ट में पता कर लो। ये ही सड़क जाती थी जंगल में। मैं यहीं से निकली थी। एक पेड़ के नीचे बैठी थी। फिर आगे नदी…’
नील कली का हाथ थामे रेजॉर्ट ले आया। कली का हाथ गर्म हो गया था। वो बड़बड़ा रही थी — क्या मैं झूठ बोल रही हूं? जंगल, नदी, वो आदमी, नाव? अरे, मैं खुद गई हूं। नहीं गई होती तो इतने अच्छे से बताती? याद रहता?
नील ने रेजॉर्ट में पता किया। ना उस हिल स्टेशन में जंगल था ना नदी। रात हो गई थी। कली देर से कहे जा रही थी कि चलो, एक बार फिर चलते हैं। देखना, मुझे मेरा दोस्त जरूर मिलेगा। उसे पता चल गया होगा, मैं यहां आई हूं।
नील ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘कली, तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो? देखो यहां आसपास जंगल नहीं है। कल तुम पापा से बात करना। हो सकता है, तुम लोग बर्थडे के लिए कहीं और गए हो।’
‘नहीं नील। मैं पापा और मम्मी के साथ लाइफ में एक ही बार घर से बाहर निकली हूं। वो यही जगह थी।’
‘अच्छा। हो सकता है दस साल में बदल गया हो।’
कली बेचैन हो गई। नील ने बड़ी मुश्किल से उसे सुलाया। उसे समझ नहीं आ रहा था, जिस कली को वो जानता था, वो ऐसी तो नहीं थी। इतनी बेचैन, इतनी परेशान, इतनी कन्फ्यूज्ड।
बड़ी देर बाद उसे नींद आई।
आधी रात बाद हवा चलने लगी। खिड़की बंद करने के लिए वो उठा। लाइट जला कर देखा, कली वहां नहीं थी। वह घबरा गया। पैरों में चप्पल डाल कर वो बाहर भागा। रेजॉर्ट के मैनेजर को उसने सोते से जगाया। वो हड़बड़ा कर हाथ में टॉर्च ले कर उसके साथ बाहर निकल आया।
एकदम अंधेरा। सुनसान सड़क। नील कहता जा रहा था, जंगल कैसे जाएं? मैनेजर नींद में बड़बड़ा रहा था, सर, जंगल लगभग सौ किलोमीटर दूर है।
और नदी?
कैसी नदी सर? यहां तो कोई नदी नहीं है। आसपास झील है। वो भी दूर है।
सड़क पर इक्का-दुक्का गाड़ियां गुजर रही थी। दूर तक दोनों देख आए, कली कहीं नजर नहीं आई।
मैनेजर हताश हो कर बोला, ‘सर, पुलिस को खबर करते हैं। रात को इस तरह कैसे ढूंढेगे?’
नीलेश भारी मन से रेजॉर्ट की तरफ लौटा। रेजॉर्ट की गेट के पास उसे दूर से एक साया-सा चमकता नजर आया। नाचता हुआ साया। ऐसा लग रहा था जैसे छोटी-सी लड़की पांव उठा कर नाच रही हो। कली…
नीलेश भागता हुआ उसके पास गया, ‘कली, तुम इतनी रात को अकेली बाहर क्या कर रही हो? मैं इतना परेशान था… तुम पागल हो गई क्या?’
कली उसकी तरफ देख कर यूं मुस्कराई जैसे किला फतह कर आई हो, ‘मिस्टर नीलेश। मैं सही थी, तुम सब गलत। मैं अभी-अभी उस आदमी से मिल कर आ रही हूं।… मैंने उसे बताया शादी के बारे में। सुन कर वो बहुत ख़ुश हो गया। मुझसे कहने लगा, कल तुम्हें अपने साथ ले कर आऊं।’ कली ने अपने लंबे बाल लहराए और लहरा कर उसकी बांहों में आ गई, ‘पता है नील, उसे तो पहले से पता था, सब पता था। उसे तो यह भी मालूम था कि तुम आगे पढ़ना चाहते हो। है ना वो कमाल का?’
कली की आंखें उनींदी-सी हो उठीं। कली के होंठ उसके गालों को छूने लगे थे। नीलेश बुदबुदाया, सित्जोफ्रीनिया… अचानक उसे डर-सा लगने लगा। अपनी कली से। कली की खिलखिलाती हंसी से वो सिहर गया।
वो पीछे हटने लगा। कली आगे आ कर उससे लिपट गई, ‘नील, तुम कल चलोगे ना मेरे साथ? हम नौका में घूमेंगे, नारियल पानी पिएंगे और खूब प्यार करेंगे… तुम मुझे हमेशा प्यार करोगे ना?’
कली उससे लिपटी हुई थी, उसके सीने पर सिर टिकाए। आंखों में हलकी-सी नमी थी, एक बूंद आंखों से जैसे लुढ़कने को तैयार थी। उन गहरी, डूबी आंखों में प्यार के साथ-साथ एक मासूम सवाल भी था, संभाल लोगे ना मुझको?
उस एक क्षण में उसे कली से फिर से प्यार हो आया। ये लड़की ही अब उसकी ज़िंदगी है। नील ने धीरे से सिर हिलाया और कली को अपनी बांहों में भींच लिया, बहुत धीरे से वह कुछ कह रहा था, ‘हां, हमेशा करूंगा। तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। तुम्हारी पूरी केयर करूंगा। तुम्हारे पापा की तरह…’
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