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संस्कृति अब किसी भयानक अपराध कथा में बदलने लगी है - अजित राय | Ajit Rai on Unimaginable Changes in Culture [Drishyantar July 2014]
मैं दिल्ली नहीं छोड़ सकता - अजित राय  I can't leave Delhi - Ajit Rai in Drishyantar April 2014
मैं जो जीवन जी सका वह मेरे वश में नहीं था - केदारनाथ सिंह | Editorial Drishyantar Doordarshan Kedarnath Singh Gulzar Ajit Rai
इस्माइल चुनारा और नाटक लैला-मजनूं से जुड़ी अजित राय की यादें | Ajit Rai on Ismail Choonara in Drishyantar December 2013
एक विचार के रूप में हमारे साथ सदा रहेंगे राजेन्द्र यादव - अजित राय | Ajit Rai on Rajendra Yadav in Drishyantar
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