मैं चांद पर हूं... मगर कब तक (आजादी और अजाब में फंसी चालीस पार औरतों के बारे में...) प्रेम भारद्वाज "खड़ी किसी को लुभा रही थी चालिस …
आगे पढ़ें »छवि कई बार सुरक्षा कवच भी बन जाती है, खासकर स्त्रियों के मामले में। वह हंसती है …
आगे पढ़ें »उनका आना जैसे बाघ का आना - प्रेम भारद्वाज हम सब एक पिंजड़े में बंद हैं या होने जा रहे हैं उसमें एक शेर (बाघ) भी है, अगर हम बचेंगे तो बाघ की रहमो…
आगे पढ़ें »तमंचे पर डिस्को - प्रेम भारद्वाज एक फिल्म है ‘बुलेट राजा’। उसके एक गीत की पंक्ति है, ‘तमंचे पर डिस्को।’ गाना लोकप्रिय और बाजारू है, लेकिन यह मुझे जम…
आगे पढ़ें »हम सोचते बहुत हैं मगर महसूस बहुत कम करते हैं। - चार्ली चैप्लिन (एक नहीं हुई गोष्ठी की संक्षिप्त रपट। वक्ताओं के चेहरे नहीं थे, उन्होंने मुखौटा पहन …
आगे पढ़ें »पूर्वकथनः दिसंबर का मतलब साल का अंत, खत्म हो जाने का महीना। लेकिन इसके पहले ही कुछ ‘अंतों’ ने मुझे अंतहीन यंत्रणा के हवाले कर दिया। मन्ना डे, राजें…
आगे पढ़ें »'पाखी' के राजेंद्र यादव पर केंद्रित सितंबर-2011 अंक के संपादकीय का किंचित संशोधित प्रारूप। 29 अक्टूबर 2013 को राजेंद्र यादव के देहावसान पर …
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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