कविताओँ मेँ इन दिनों माँ उन्नीस सौ नब्बे का साल । इस साल कवियों नेँ माँ पर कविताएँ लिखीं अनगिनत। कविताओं में इन दिनों जहाँ देखो तहाँ …
आगे पढ़ें »‘हिंदी के लिए कुछ किया जाए’ इसी उधेड़बुन ने कोई सवा साल पहले शब्दांकन की शुरुआत की। आसान होगा और इस तरह हिंदी और उसके चाहने वालों के लिए शायद कुछ …
आगे पढ़ें »स्मृतियाँ भी तो थकाती हैं कभी-कभी, जब वे ठाट की ठाट उमड़ती हुई बे-लगाम चली आती हैं उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ ≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡ ज़िन्दगी…
आगे पढ़ें »हृषीकेष सुलभ बहीखाता (शब्दांकन उपस्तिथि) कहानी: हाँ मेरी बिट्टु कहानी: हलंत कहानी: उदासियों का वसंत कहानी: स्वप्न जैसे…
आगे पढ़ें »असली बात नासिरा शर्मा पीर–औलिया इनसानों में फ़र्क़ नहीं करते । यह दर सबके लिए खुला है - अमीर–ग़रीब, हिंदू–मुसलमान, छोटा–बड़ा । ख़बरदार, जो फिर…
आगे पढ़ें »जब भी खाने को दौड़ी है तन्हाइयाँ मेरी इमदाद को दौड़ी आती ग़ज़ल ग़मज़दा जब हुई, पास आती ग़ज़ल गुदगुदा कर है मुझक…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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