अमरीका ~ तस्लीमा नसरीन कब शर्म तुम्हें आएगी अमरीका ? कब समझ तुम्हें आएगी अमरीका ? कब रोकोगे तुम ये अपना आतंकवाद अमरीका? कब जीने …
आगे पढ़ें »'वर्तमान साहित्य' जुलाई, 2015 साहित्य, कला और सोच की पत्रिका वर्ष 32 अंक 7 जुलाई, 2015 सलाहकार संपादक: रवीन्द्र कालिया …
आगे पढ़ें »हया को त्याग चुकी सरकार ~ संजय सहाय इमरजेंसी के 40 वर्षों बाद उसे अबकी बार व्यापक रूप से ‘मनाया’ जा रहा है. उस वक्त वे एक दिन के लिए भी जे…
आगे पढ़ें »कविताओं में बेटी ~ दयानंद पांडेय अपनी कहानियों और उपन्यासों के मार्फ़त लगातार चर्चा में रहने वाले दयानंद पांडेय का जन्म 30 जनवरी, 1958…
आगे पढ़ें »ये शे’र किसका है ? ~ क़मर सिद्दीकी वाया असग़र वजाहत लोग अक्सर अपनी बातचीत में कुछ शे’र उद्धरित करते रहते हैं लेकिन ये कम लोगों को ही मालूम होत…
आगे पढ़ें »आखेट तभी होता है जब लड़की नहीं रोकती ~ सोनाली मिश्र मुझे वह होली याद है जब मैं शायद 9 बरस की रही होऊँगी। आज भी, मेरे ज़ेहन में कई बरस पहले…
आगे पढ़ें »गोष्ठी ~ सुभाष नीरव वह चाहकर भी उसे मना नहीं कर सके। जबकि मदन के आने से पूर्व वह दृढ़ मन से यह तय कर चुके थे कि इस काम के लिए साफ़-साफ़ ह…
आगे पढ़ें »कसाईखाना अमित बृज सीन-1 “भैया मुसलमानी है।” “पकड़ पकड़। इधर ला साली को। अन्दर ले चल इसे।“ (थोड़ी देर बाद) “अब एक काम कर, तू जा। मेर…
आगे पढ़ें »कवितायेँ ~मुकेश कुमार सिन्हा सिमरिया पुल जब भी जाता हूँ गाँव तो गुजरता हूँ, विशालकाय लोहे के पुल से सरकारी नाम है राजेन्द्र प्रस…
आगे पढ़ें »वह रात किधर निकल गई ~ गीताश्री वह रात नसीबोंवाली नहीं थी। देर रात फोन पर झगडऩे के बाद बिंदू किसी काम के लायक नहीं बची थी। …
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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