ये शे’र किसका है ?
~ क़मर सिद्दीकी वाया असग़र वजाहत
लोग अक्सर अपनी बातचीत में कुछ शे’र उद्धरित करते रहते हैं लेकिन ये कम लोगों को ही मालूम होता कि वो शे’र किसके हैं। नीचे कुछ लोकप्रिय शे’र दिये जा रहे हैं। यह कम ही लोग जानते हैं कि ये शे’र ‘मस्त’ कलकत्त्वी के हैं -
सुर्ख़रू होता है इसां ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना पत्थर पे घिस जाने के बाद
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मरतबा चाहे
के दाना ख़ाक में मिल कर गुले गुलज़ार होता है
मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है
वही होता है जो मंजूरे खु़दा होता है
नहीं मालूम दुनिया जलवागाहे नाज़ है किसकी
हजारों उठ गये लेकिन वही रौनक़ है महफिल की
संकलन कर्ता
क़मर सिद्दीकी
संपर्क: 112, मोहल्ला जैदून,
फतेहपुर, (उत्तर प्रदेश) - 212601
मोबाईल: 09450304430
वो फूल सर चढ़ा जो चमन से निकल गयाक़मर सिद्दीकी
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फतेहपुर, (उत्तर प्रदेश) - 212601
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इज़्ज़त उसे मिली जो वतन से निकल गया
हक़ीकत छिप नहीं सकती बनावट की वसूलों से
कि खु़शबू आ नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से
यह शे’र भी बहुत लोकप्रिय है पर कम लोग जानते हैं कि ये हैरत इलाहाबादी का शे’र है -
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का है कल की ख़बर नहीं
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