अमरीका
~ तस्लीमा नसरीन

कब रोकोगे तुम ये अपना आतंकवाद अमरीका?
कब जीने दोगे तुम दुनियावालों को अमरीका ?
कब तुम इंसान को समझोगे इंसान?
कब इस पृथ्वी को तुम जीने दोगे अमरीका ?
शक्तिशाली अमरीका, बम तुम्हारे मार रहे इंसानों को आज,
बम तुम्हारे शहरों का कर रहे विनाश आज,
बम तुम्हारे कुचल रहे सभ्यता को आज,
बम तुम्हारे उम्मीदों को नष्ट कर रहे आज,
बम तुम्हारे भस्म कर रहे सपनों को हैं आज,
कब तुम देखोगे ये उत्सव नरसंहार का,
कब दिखेगी तुमको अपने दिल की मैल
कब तुम देखोगे अपना दूषित कल ?
कब तुम पश्चाताप करोगे अमरीका?
कब तुम सच बोलोगे, अमरीका?
कब तुम इंसान बनोगे अमरीका?
कब तुम रोओगे अमरीका?
कब तुम माफ़ी मांगोगे अमरीका?
हम तुमसे घृणा करते हैं, तुमसे उस दिन तक घृणा करेंगे,
जब तक घुटने टेक कर हथियारों का नाश नहीं करोगे,
घृणा करेंगें जब तक प्रायश्चित्त नहीं करोगे,
हम घृणा करेंगे, हमारी संताने घृणा करेंगी, और
संतानों की संतानें घृणा करेंगी,
मुक्ति नहीं मिलेगी इस घृणा से तुमको अमरीका।
खून किये तुमने हजारों आदिवासियों के।
कितने खून किये हैं तुमने अल सल्वाडोर में,
खून किये हैं तुमने निकारागुआ में,
किये हैं चिली में और क्यूबा में,
किये हैं इंडोनेशिया, कोरिया और पनामा में,
खून किये हैं तुमने फिलीपींस में, किये तुमने ईरान में,
इराक में, लीबिया में, मिस्र में, फिलिस्तीन में,
वियतनाम , सूडान , अफगानिस्तान में
- इन लाशों का हिसाब करो, गिनो इन्हें !
अमरीका तुम गिनो इन्हें!
अपने आप से घृणा करो तुम अमरीका !
अभी समय है, अपने आप से घृणा करो !
छुपा लो अपने चेहरे को तुम अमरीका !
जाओ भाग के छुप जाओ जंगल में
जाओ भर जाओ तुम आत्मग्लानी से
नहीं बचा कुछ तो जाओ खुद की हत्या कर लो।
ठहरो,
एक क्षण ठहरो,
अमरीका, गणतंत्र हो तुम, स्वाधीनता हो तुम !
तुम हो जेफरसन के अमरीका,
लिंकन के अमरीका
तुम तो हो मार्टिन लूथर किंग के अमरीका,
उठो विद्रोह करो !
विद्रोह करो मानवता की खातिर, एक बार, आखरी बार !
हंस नवम्बर २०१३ में प्रकाशित’
(बांग्ला से हिंदी अनुवाद: भरत तिवारी)
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1 टिप्पणियाँ
bahut khub
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