अनामिका की कवितायेँ — बस्ती निज़ामुद्दीन अंक-I | Basti Nizamuddin - Anamika



Basti Nizamuddin - Anamika

Amir Khusrow aur Puramzaak Aurten Sadak Ki (Ank -I)

बस्ती निज़ामुद्दीन — अनामिका (अमीर खुसरो और पुरमज़ाक औरतें सड़क की) अंक-I

बस्ती निज़ामुद्दीन — अनामिका

(अमीर खुसरो और पुरमज़ाक औरतें सड़क की)

अंक-I


उम्रकैद


किए-अनकिए सारे अपराधों की लय पर
झन-झन-झन
बजाते हुए अपनी जंजीरें
गाते हैं खुसरो
रात के चौथे पहर
जब ओस झड़ती है
आसमान की आँखों से
और कटहली चम्पा
कसमसाकर फूल जाती है
भींगती मसों में सुबह की।
अपनी ही गंध से मताकर
फूल सा चटक जाने का
सिलसिला
एक सूफी सिलसिला है,
किबला,
एक जेल है ये खुदी,
खुद से निकल जाना बाहर,
और देखना पीछे मुड़कर
एक सूफी सिलसिला है यही !

खुसरो की दरगाह

खुसरो के ही मजार के बाहर
बैठी हैं विस्थापन-बस्ती की कुछ औरतें सटकर!
भीतर प्रवेश नहीं जिनका किसी भी निजाम में -
एका ही होता है उनका जिरह-बख्तर।
हयात-ए-तय्याब, हयात-ए-हुक्मी !
            x      x
औलिया के मजार के झरोखे की
फूलदार जाली पर
क्या जाने कब से ऊँचा बँधा है जो
मन्नतों का लाल धागा,
मौसमों की मार सहकर भी
सब्र नहीं खोता !
ढीली नहीं पड़ती कभी गांठ उसकी !
उस गांठ-सी ही बुलन्द और कसी हुई बैठी हैं दरगाह पर
दिल्ली की गलियों की
बूढ़ी कुँवारियाँ,
विधवाएँ, युद्ध और दंगों के भेड़िया-मुखों की
अधखाई, आधी लथेड़ी
ये औरतें !
बैठी हुई हैं वे खुसरो के दरगाह के बाहर
जिनसे सीखी खुसरो ने
अपनी मुकरियों की भाषा।
घरेलू बिम्बों से भरी हुई
अंतरंग बातचीत की भाषा में ही
लिखी जा सकती हैं कविताएँ ऐसी
जो सीधी दिल में उतर आएँ
- सीखा था खुसरो ने
दिल्ली की गलियों में इन्हीं औरतों से।

००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
दो कवितायेँ - वत्सला पाण्डेय
ब्रिटेन में हिन्दी कविता कार्यशाला - तेजेंद्र शर्मा
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’? — सिंधुवासिनी
ठण्डी चाय: संदीप तोमर की भावनात्मक कहानी