अमरलता प्यासी की प्यासी
सूख चला है जीवन बिरवा,
सुन मेरे गीतों जे पियवा!
बुरी गंध द्वार तक आई
रोम-रोम उमगी तरुणाई ,
भावों के रसाल कुंजों में
देह उर्वशी, प्राण पुरूरवा!
`ललित प्रसंग लिए जो सरसे
अब हैं उत्तररामचरित से,
मन की गाँठ खुली तो सहसा
बिखर गए आँचल के फुलवा!
स्वप्नवती रातें छलना हैं
दिवाव सभी के मृगतृष्णा हैं,
किसका अंतर्दाह घटा है
सिसक-सिसक मत दहरे दियवा!
प्रेम शर्मा
('साप्ताहिक हिंदुस्तान', २५ सितम्बर, १९९६)
सूख चला है जीवन बिरवा,
सुन मेरे गीतों जे पियवा!
बुरी गंध द्वार तक आई
रोम-रोम उमगी तरुणाई ,
भावों के रसाल कुंजों में
देह उर्वशी, प्राण पुरूरवा!
`ललित प्रसंग लिए जो सरसे
अब हैं उत्तररामचरित से,
मन की गाँठ खुली तो सहसा
बिखर गए आँचल के फुलवा!
स्वप्नवती रातें छलना हैं
दिवाव सभी के मृगतृष्णा हैं,
किसका अंतर्दाह घटा है
सिसक-सिसक मत दहरे दियवा!
प्रेम शर्मा
('साप्ताहिक हिंदुस्तान', २५ सितम्बर, १९९६)
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