बदले
मन के प्रसंग
बदली बोली-बानी!
*
टूटा
फूटा मजार
खँडहर-सा
एक कुआँ,
गूलर के
पेड़ तले
देता
खामोश दुआ,
मीलों तक
बियावान
करता है अगवानी !
**
जी हो
अथवा जहान ,
मगहर हो
या काशी,
आधा जीवन
मृगजल,
आधा
तीरथवासी,
एक ही
अगन मोती
एक ही अगन पानी !
प्रेम शर्मा
('धर्मयुग'. १६ अप्रैल, १९७२; नया प्रतीक [पूर्वांक] दिसंबर, १९७३)
मन के प्रसंग
बदली बोली-बानी!
*
टूटा
फूटा मजार
खँडहर-सा
एक कुआँ,
गूलर के
पेड़ तले
देता
खामोश दुआ,
मीलों तक
बियावान
करता है अगवानी !
**
जी हो
अथवा जहान ,
मगहर हो
या काशी,
आधा जीवन
मृगजल,
आधा
तीरथवासी,
एक ही
अगन मोती
एक ही अगन पानी !
प्रेम शर्मा
('धर्मयुग'. १६ अप्रैल, १९७२; नया प्रतीक [पूर्वांक] दिसंबर, १९७३)
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