मितवा
मन पाखी बेचैन.
प्रान-पिरावा
अगिन जरावा ,
सुखदुख
ये संसार छलावा ,
पल-छिन आवा
पल-छिन जावा,
सांसत में दिन-रैन .
गाते बीती
रागमजूरा
मन का
बाऊल गान
अधूरा,
गह निकसे
कंठ रूआंसे
विद्यापति के बैन.
प्रेम शर्मा
('साक्षात्कार', अगस्त, १९९८)
मन पाखी बेचैन.
प्रान-पिरावा
अगिन जरावा ,
सुखदुख
ये संसार छलावा ,
पल-छिन आवा
पल-छिन जावा,
सांसत में दिन-रैन .
गाते बीती
रागमजूरा
मन का
बाऊल गान
अधूरा,
गह निकसे
कंठ रूआंसे
विद्यापति के बैन.
प्रेम शर्मा
('साक्षात्कार', अगस्त, १९९८)
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