जल ही
जल नहीं रहा,
आग नहीं
आग.
सूरत बदले
चेहरे,
सीरत बदला
जहान,
पानी उतरा
दर्पण,
खिड़की-भर
आसमान,
ढलके
रतनार कंवल ,
पूरते
सुहाग.
जीते-
मरते शरीर,
दुनिया
आती-जाती,
जूझते हुए
कंधे,
छीजती हुई
छाती,
कल ही
कल नहीं रहा,
आज नहीं
आज,
सुन भाई
हर्गुनिया,
निर्गुनिया
फ़ाग.
प्रेम शर्मा
('साप्ताहिक हिंदुस्तान', १३ फरवरी, १९७७)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5i7A9a783CXWQOBKFVI4eQgepx2cD8_dcbgfSQcQcj8HoVjSpLBwfsxbffzCkDQROHsjM2QwXMWusHofA0hFqmW3w2KP8jVKzXfOQxrdvTjgqQp2oYv8c7sQ0TLNnj9Y3TDwtJ3w2HA65/s1600-rw/sun_bhai_hargunia_nirguniya_faag_prem_sharma_holi_shabdankan.jpg)
आग नहीं
आग.
सूरत बदले
चेहरे,
सीरत बदला
जहान,
पानी उतरा
दर्पण,
खिड़की-भर
आसमान,
ढलके
रतनार कंवल ,
पूरते
सुहाग.
जीते-
मरते शरीर,
दुनिया
आती-जाती,
जूझते हुए
कंधे,
छीजती हुई
छाती,
कल ही
कल नहीं रहा,
आज नहीं
आज,
सुन भाई
हर्गुनिया,
निर्गुनिया
फ़ाग.
प्रेम शर्मा
('साप्ताहिक हिंदुस्तान', १३ फरवरी, १९७७)
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