कहानी : प्रेम भारद्वाज : था मैं नहीं

इस कहानी के तमाम पात्र वास्तविक है। इनका कल्पना से कोई लेना‒देना नहीं है। अगर कोई इस कहानी में कोई खुद को ढूंढ ले तो वह संयोग नहीं होगा। : प्रेम भारद्वाज


    मैंने महाभारत के बारे में पढ़ा है। देखे गए नाटकों और फि़ल्मों के जरिए अक्सर महाभारत की कल्पना करने लग जाता हूं। कुरुक्षेत्र का दृश्य। भाई‒भाई आमने‒सामने। एक‒दूसरे पर संहारक तीर बरसाते गुरु, शिष्य और परिजन। बिछती लाशें। मंडराते गिद्ध। दूर महल के सूने गलियारों में संजय से आंखों देखा हाल को सुनकर उठती मातमी चीत्कारें। उजड़ती मांगे। सूनी होती कोखें। रथों के पहियों के नीचे रौंदे जा रहे सत्य, मर्यादा और संवेदना। इन रथों में उनका रथ भी शामिल है जिन्हें बाद में ईश्वर मान लिया गया। सबको जीत चाहिए। ईश्वर को भी। जीत का मतलब सत्ता। माने स्वार्थ‒प्राप्ति। अपनों की लाशों से गुजर कर भी। जैसे महाभारत में पाण्डवों ने प्राप्त किया जिसे ‘सत्य’ का नाम दिया गया। तब अकेले धृतराष्ट्र ही अंधे नहीं थे। पूरे युग में ही अंधापन उतर आया था।
    आज समय बदल गया है। विश्व के मानचित्र पर भारत है‒महाभारत नहीं है, मगर वह है भी बदले हुए रूप में। तब के तथाकथित ईश्वर अब अपनी प्रेमिका के साथ‒मूर्तियों में तब्दील हो गए हैं। बेजान से। प्रेम का प्रतीक बने। लाखों लोगों को ‘सत्य’ के लिए मौत की मुंह में झोंकने वाला आज प्रेम का प्रतीक बना है। महाभारत के पात्र कथा‒कहानियों में दर्ज हैं। महाभारतकालीन अंधापन आज भी हर व्यक्ति के भीतर उतर आया है‒ मुझमें, आपमें, हम सब में।

    सोचते‒सोचते न जाने क्यों मैं जेल के बारे में सोचने लगा। इस सवाल का मेरे पास कोई माकूल जवाब नहीं कि जेल का जीवन मुझे क्योंकर आकर्षित करता है?
    जेल के जीवन से बावस्ता होने के लिए, उसके भीतर दाखिल होना यानी जेल जाना होगा। मगर वह कैसे संभव है? अपराधी हूं नहीं। राजनीतिक आंदोलनों से भी दूर का कोई रिश्ता नहीं। न जेल का कोई कर्मचारी‒अधिकारी मित्र है‒ न मैं कोई शोधकर्ता, मानवाधिकार से जुड़ा कोई कार्यकर्ता नहीं हूं। कहानियां लिखता हूं‒वो भी बेहद धीमी गति से। कहानी का प्लाट ढूंढने की कोई तीव्र छटपटाहट भी नहीं रही कभी। ऐसे में जेल जाने की गुंजाइश बनती दिखती नहीं। इस तरह जेल के जीवन को जानने‒समझने की मेरी उत्सुकता पर धीरे‒धीरे वक्त की मोटी परत जमा होती चली गई।

    अब इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जेल जाने की मेरी तमन्ना पूरी हो गयी। नहीं‒नहीं, गलत मत समझिये‒ मैंने कोई अपराध नहीं किया। हुआ यूं कि मेरा एक दोस्त हत्या के आरोप में जेल पहुंच गया। दोस्ती पुरानी थी और गहरी भी। न जाने किसके मोबाइल फ़ोन से दोस्त ने मैसेज भेजवाया ... मैं कैदी नंबर 392, कुछ जरूरी बातें करनी है। मुझसे जेल में मिलो। हत्या किया है मैंने ...फ़ांसी तय है।
पेज़ १



सोचा नहीं था‒ जेल इस तरह जाना पड़ेगा। फ़ांसी का इंतजार कर रहे हत्यारे दोस्त से मिलने। जिंदगी के कई रंग होते हैं। दोस्त ने हत्या की है, यह भी जीवन का एक रंग है। जेल पहुंचकर न जाने और कितने रंगों से रू‒ब‒रू होना पड़ेगा। मैं भी हुआ। किस तरह? यह आगे है ... शेक्सपीयर कहा करते थे जिंदगी तो एक रंगमंच है। अलग‒अलग जिंदगियों का नाटक। हर आदमी नाटक में अपनी भूमिका अदा कर रहा है। क्या अलग‒अलग नाटकों के दृश्य आपस में जुड़ते भी हैं। चलिये, इसे प्रयोग के तौर पर देखते हैं।
 दृश्य‒एक 
    एक टीवी रियलटी शो का मंच। एंकर वैभव माथुर और प्रतियोगी साक्षी कत्याल। शो को प्रमाणिक बनाने के लिए बीस लोगों का दर्शक दीर्घा।

    ‘साक्षी जी, ‘सच का सामना’ प्रोग्राम में दस लाख जीतने पर आपको फि़र से बधाई। अगर आपने अगले दो सवालों का सही जवाब दिया तो पूरे एक करोड़ रुपये लेकर जाने वाली इस कार्यक्रम की पहली प्रतियोगी होंगी। अभी तक आपने जो कुछ कहा, सच कहा। सच बोलने के लिए बहुत साहस की जरूरत होती है‒मैं आपके साहस और जज्बे को सलाम करता हूं। अब पचास लाख के लिए अगला सवाल करता हूं ...मुझे उम्मीद है आप एक बार फि़र सच ही बोलेंगी?
‘सवाल कीजिए, आपको मायूस नहीं होना पड़ेगा’

‘पचास लाख के लिए अगला सवाल है‒ क्या शादी के बाद आपने गैर पुरुष के साथ रात बिताई है‒’

    कुछ देर का मौन। साक्षी के चेहरे पर तनाव ठहर जाता है। वह कुछ सोचती है‒पति की ओर देखती है। पति के चेहरे पर मुस्कान‒असली या नकली, कुछ भी हो सकता है। साक्षी जवाब देती है ‘‘हां’’

‘‘आपका जवाब है हां, यानी‒शादी के बाद आपने गैर पुरुष के साथ रात बिताई है। देखिए पोलीग्राफ़ क्या बोलता है?’’

‘‘साक्षी जी का जवाब सही है‒’’ पोलीग्राफ़ का‒ जवाब।

‘‘बहुत‒बहुत बधाई‒आप पचास लाख जीत गईं।’’

    तालियों की गड़बड़ाहट के बीच साक्षी का चेहरा दर्प से चमक रहा है। दर्प पचास लाख तक पहुंचने का या रिश्तों में भरोसे की हत्या का। इसे साक्षी को टीवी के जरिए देख रहे लाखों दर्शक भी नहीं समझ पा रहे थे।
‘साक्षी जी ...अब आपके और एक करोड़ रुपये के बीच महज एक सवाल का फ़ासला रह गया है। ...यहां आपके पति वेदांत है जिनसे आपने प्रेम विवाह किया हैं ...आपके बुजुर्ग सास‒ससुर हैं, एक दस साल का बेटा अमन भी यहां बैठा आपको देख रहा है‒। मेरे ख्याल से सबके सब यही ईश्वर से प्रार्थना कर रहे होंगे कि आप अंतिम सवाल का सही जवाब देकर एक करोड़ रुपये यहां से ले जाएं ...’’
 दृश्य‒दो 
    दो युवक एक तंग कोठरी में बैठे शराब पी रहे हैं। बाहर बारिश हो रही है। कोई जश्न का मौका नहीं है। असल में इन दोनों युवक की नौकरी छुट गयी है। नई नौकरी मिल नहीं रही है। इसलिए शराब के जरिए गम हल्का करने का उपक्रम चल रहा है।

‘एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है प्रवीण’

‘चार पैग गटकने के बाद एक क्या तीन चार बाते भी समझ में नहीं आती।’

‘तू हर चीज की मजाक क्यों उड़ाता है?’

‘मजाक की छोड़ तू अपनी दुविधा बता।’

‘मेरी दुविधा यह है कि यह दौर मंदी का है तो हर चीजे इतनी महंगी क्यों हो रही है?’

‘बेटे, इस सवाल से अर्थशास्त्रियों को ही जूझने दो ...तू अपनी सोच ...देश की उठती गिरती अर्थव्यवस्था के बारे में नहीं ...सेंसेक्स और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विकास की बातों के विषय में तो कतई नहीं ...’
पेज़ २


= क्रमशः=

 (भाग 2) ...

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. प्रेम जी नमस्कार .........आज अचानक ही आपकी वाल पर इस कहानी का लिंक देखा और पढने चली आई .........दो पृष्ठ यूँ पढ़े गए मानो कुछ खोज रही थी ......और अभी रोमांच शुरू ही हुआ था कि ......क्रमश: आ गया .........हाहाह .....चलिए इस रोचक और यथार्थ वादी कहानी को जब आप आगे बढ़ायेंगे तो फिर ये पठन का कार्य आगे बढेगा .प्रतीक्षा में .....सादर

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh