लघुकथाएं - सुदेश भारद्वाज

खोल

   धारा 144 थी, नई दिल्ली के संवेदन-शील इलाकों के मेट्रो स्टेशन अगली सुचना तक कई दिन से बंद थे । एक बहुत ही संवेदन-शील बाराखम्बा बस-स्टॉप पे सवारियां खड़ी थी। सवारियों का कोई जेंडर-जाति-धर्म नहीं था। खोल से बाहर निकल के वे केवल सवारियां थी। एक छोटा बच्चा काफी देर से अपने उस प्लास्टिक के बोरे को छुटाने की कौशिश कर रहा था जिसमें खाली बोतलें भरी थी। छोटा लड़का किसी अदृश्य तस्वीर को अपनी सुरक्षा के लिए पुकारता रहा - " भाई ! ओ भाई !"
   जितना जोर से वो पुकारता उतना ही जोर से उसे मार और भद्दी गालिया पड़ती। अंततः छोटे बच्चे ने अपनी हिफाजत के लिए बोरे को छोड़ दिया। बोरा छोड़ने के पश्चात भी उस पर मार पड़ती रही। छोटा छुटा कर "भाई ! ओ भाई !" पुकारता वहां से चला गया।
   बड़े लड़के ने बोरे के मुहं को अपनी मुट्ठी से बंद किया और बोरे को जोर से सड़क पर पटका। बोतलें चूर-चूर हो गयी।
   अब वह भुनभुनाता और गलियाँ बकता कनाट-प्लेस सर्कल की और निकल गया। तब भी उसने बोरे के मुहँ को जोर से पकड़ा था। और सड़क पर पटकने का सिलसिला भी बदस्तूर जारी था। नई दिल्ली की संवेदनशीलता में कोई कमी नहीं थी।

   चोर

   हम जब सो के अपनी नींद उठे तो पता चला घर के सब लोग तीन बजे ही उठ गये थे । मैं भी बाबूजी के कमरे में चला गया । आस-पड़ोस के लोगों का आना-जाना शुरू हो गया था । एक-आध आस-पडोसी तो बाहर गली में जाकर खुसर-पुसर कर रहा था कि चोर को कम्बल दिया गया है, गरमा-गरम चाय पिलाई जा रही है, 100 नंबर पे फोन करते - पर नहीं। चोर आराम से बैठा हुआ है ।
   बाबूजी आने वाले लोगों को बता रहे हैं कि गेट वैसे तो हल्का-सा ढला रहता ही है आज वो रोड़ी-बदरपुर आया था तो चचेरा भाई बता के गया कि ट्रक रित गया है, बस उसकी गलती इतनी-भर रह गयी कि गेट को पूरा सौ-पट खोल के चला गया । बस इसने गेट खुला देखा और ये भीतर आ गया, काफी देर तक ये मेरे पायताने बैठा रहा… मैंने सोचा सुदेश होगा… मैंने इससे पूछा तो इसने कोई जवाब नहीं दिया । फिर मैंने सोचा कि बड़ा होगा पर इसने फिर भी कोई जवाब नहीं दिया । फिर सोचा कि छोटा होगा तो भी कोई जवाब नहीं मिला । हारकर मैंने लाईट जलाई - ,बस ।
   
   हरेक को बाबूजी इतना ही बता रहे थे । चोर के घर वालों को सूचित किया जा चुका था । दुसरे गाँव से आने में टाइम तो लगता ही है । फिर भी अपने व्हीकल से दस मिनट मुश्किल से लगते हैं पर अब तो आठ बज चुके हैं । सूचित किये हुए भी दो घंटे बीत गये । फिर भी सवा-आठ बजे के आसपास चोर के पिताजी एक-दो आदमी के साथ आन पहुंचे थे । उनकी नजरें नीचे झुकी हुई थी । वे कहे जा रहे थे कि बे-शक इसको जान से मार दो ।
   आखिरकार चोर की स-सम्मान विदाई हुई । उनके जाने के बाद उसका ड्राईविंग लाईसेंस गली में पड़ा मिला । बड़ा भाई जब दिन में देने गया तो चोर पानी-पानी था ।
सुदेश भारद्वाज,
178, रानी खेड़ा, दिल्ली-110081
मोबाइल:- 9999314954

   
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