लघुकथा - दिस इस अमेरिका - डॉ. अनीता कपूर

   "गुड मॉर्निंग, मिस्टर जॉर्ज, हाउ आर यू दिस मॉर्निंग ?

   “डूइंग गुड मिस नीना”, कहकर जॉर्ज अपना सिर हिलाता है, और नीना की तरफ देखे बिना ही गुलाब के फूलों में उनका पानी देना जारी रहता है।

   नीना आज फिर रोज़ की तरह तय वक्त पर सुबह सैर को निकली है, वही “गुड मॉर्निंग” का सिलसिला मशीनी अंदाज से दोहराया गया। जॉर्ज बिलकुल अकेले रहता हैं। अस्सी वर्ष की उम्र में भी सारा काम स्वंय करते देख नीना के भारतीय मन ने एक दिन हिम्मत करके पूछ ही लिया था, “वाइ डू यू स्टे अलोन ?” उस दिन शायद जॉर्ज का मूड अच्छा रहा होगा। उसने बताया कि, पत्नी तो कैंसर से लड़ते-लड़ते वर्षों पहले ही उस अकेला कर गयी थी और उसके बाद एक ही बेटा था, वो भी चला गया, सिर्फ फोन से साल में एकाध बार बात कर लेता है.....मुस्करा कर बोले थे...”दिस इस अमेरिका”। पता नहीं वो खुद अमेरिका में पैदा होने के एहसास तले या बेटे के कपूत होने के दुख में कह बैठे थे। फिर एक सुबह जैसे वो नीना का ही इंतज़ार कर रहे थे। नीना को सामने से आता देख कर उन्होने अपना काम बीच में रोका और पास आ कर कहने लगे, “नीना, मैं आपके बारे में ज्यादा तो कुछ नहीं जानता, पर आपके अकेलेपन से मेरी निशब्द दोस्ती हो गयी है, मैं चाहता हूँ कि तुम वापस अपने देश लौट जाओ”। नीना उनके इस रवैये पर हैरान हुई, कुछ समझने का मौका दिये बगैर वो तुरंत वापस मुड़े थे और दरवाजा बंद कर लिया था। नीना कुछ क्षणों के लिए जैसे प्रस्तर-मूर्ति बन, उस बंद दरवाजे को निहारती रही। रोज़ रात को करवटें बदलते हुए यही निश्चय करती कि, कल सुबह वो जार्ज से अवश्य पूछेगी, उसने क्यों नीना को वापस अपने देश जाने के लिए कहा? यूं तो हर रोज़ सुबह नीना का अकेलापन उनके अकेलेपन को “गुड मॉर्निंग” कहता, परंतु जार्ज उससे ज्यादा बात न कर तुरंत दरवाजा बंद कर लेता था। और नीना के लिए अनसुलझा सन्नाटा उस बंद दरवाजे पर छोड़ जाता। नीना को कुछ दिनों के लिए ऑफिस के काम से बाहर जाना पड़ा।

    “वॉट हैप्पेंड ऑफिसर? आप सब जॉर्ज के घर के सामने क्यों खड़े हैं? एनी थिंग सिरियस?”, पूछते ही उसका दिल धक से रह गया, सामने से स्ट्रेचर पर जॉर्ज को फ्युंरल वैन में लाद चैपल होम ले जा रहे थे। ऑफिसर अड़ोस-पड़ोस से सब पूछताछ पहले ही कर चुके थे। बेटे को भी खबर कर दी गयी थी।

    नीना घबरा कर धम से वहीं बैठ गयी। उसे जार्ज के बंद दरवाजे पर पसरे सन्नाटे ने, उसके भविष्य का आईना जो दिखा गया था।

डॉ. अनिता कपूर    (विस्तृत परिचय यहाँ )
जन्म : भारत (रिवाड़ी)
शिक्षा : एम .ए.,(हिंदी एवं अँग्रेजी), पी-एच.डी (अँग्रेजी), सितार एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा.
कार्यरत : कवयित्री / लेखिका/ पत्रकार (नमस्ते अमेरिका, हिन्दी समाचारपत्र, संपादकीय विभाग में सेवायें) एवं अनुवादक

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
अखिलेश की कहानी 'अँधेरा' | Hindi Kahani 'Andhera' by Akhilesh
समीक्षा: अँधेरा : सांप्रदायिक दंगे का ब्लैकआउट - विनोद तिवारी | Review of writer Akhilesh's Hindi story by Vinod Tiwari
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'