प्रांजल धर की बिल्कुल नयी और अप्रकाशित कविताएँ | Poetry : Pranjal Dhar


प्रांजल धर

2710, भूतल
डॉ. मुखर्जी नगर, दिल्ली – 110009
मोबाइल - 09990665881


प्रांजल धर की बिल्कुल नयी 

और अप्रकाशित कविताएँ 


माफ़ कीजिएगा, यह मेरा निजी मामला है


सदियों से फरेब करती आई है मुझसे
मरुस्थल की यह उजियारी रेत,
मेरी किसी रात के गाल पर सुबह की कोई लालिमा नहीं,
और छीजता गया हूँ छलनाओं के जंगल में,
हूँ भीतर तक इतना भयभीत
कीड़े पालकर रेशम खींचते शरीफ लोगों से
कि अपने सारे सार्वजनिक तक को
रातों-रात निजी और गोपनीय बना लिया है,
सामाजिकता के ख़तरे अब पर्याय हो रहे किताबों तक में
आरोपों के भँवर के।
इसलिए किताबों तक को भी खोलता अकेले में
दूर कहीं बंजर ज़मीन में बैठकर
जहाँ मैं मुखातिब होऊँ केवल अपने से,
उनसे,
जिन्हें प्राणिमात्र की कमज़ोरियाँ कहने का चलन ज़ोरों पर है
कि आख़िर चलन ही तो तय करता सब कुछ!
हरेक चीज़, हरेक बात तक में
एक ही जवाब देने का मन करता,
“माफ़ कीजिएगा, यह मेरा निजी मामला है”।

देखता हूँ आसमान कुतरते बगुलों की एक पाँत
देखता हूँ राजपथ पर मँडराते हैं गिद्ध
कि लौटकर जाते समय उनके पर शायद ही दुरुस्त हों।
उजाड़ दिया जाएगा उनका आलना।
पर माफ़ कीजिएगा, यह मेरा निजा मामला है।

लालबत्तियाँ पार करती जा रहीं लपटों की कतारें
कल पहुँचेंगी वहाँ, जहाँ जंगल कटेंगे
परसों तक वहाँ भी,
जहाँ आराम करते होंगे कुछ तेंदुए, सागौन और कुछ नदियाँ।
बेघर हो जाएगा तकिये-से स्वभाव वाला वह नेकदिल
जो पता बताता दूसरों को
गाहे-बगाहे अपना काम तक छोड़कर
और कई बार तो उन्हें वहाँ तक पहुँचाकर ही लेता दम।
पर माफ़ कीजिएगा, यह मेरा निजी मामला है।

इस वक्त मैं तनहाई झेलती तराई की किसी तहसील में हूँ
बाढ़ में बकरियों के डूबने का मुआवजा खोजते यहाँ
कुछ बेघर परिवार,
मुझ मालूम है
कि ये कभी न बन सकने वाले किसी घर का
महज एक नक्शा बन रह जाएँगे।
कहाँ जाएँगे अब ये सब,
क्या होगा इन सबका,
पर माफ़ कीजिएगा, यह मेरा निजी मामला है।


वरना न ही आना


हमारे पास आना तो हमारे ही पास आना
और केवल आना तुम,
अपने लाव-लश्कर ताम-झाम पीछे कहीं छोड़कर।
मैं थक चुका हूँ मेरे दोस्त
तुम्हारे इर्द-गिर्द छितरायी बड़प्पन की कथाएँ सुन-सुन
और भरोसा नहीं कर पाता
कि तमाम रेतीली सँकरी पगडण्डियों पर हम
न सिर्फ साथ चले थे
साथ बुझे और साथ जले थे,
बल्कि वे पगडण्डियाँ
हमारे ही कदमों के साहस ने रची थीं।

अब कहाँ तुम राजमार्ग पर
तेज़ रफ़्तार से चलने वाले अनात्मवादी,
और पगडण्डियों को गले में
लटकाए घूमता मैं,
घाम हो कि छाँह, चलता रहता हूँ।

आना तो इस तरह कि किसी के भी
हृदय को लगे कि आना इसी को तो कहते हैं,
कि उस आने का बखान ही न कर सके कोई
कि ख़त्म हो जाएँ सबकी क्षमताएँ ही बखानने की।
कि आने के बाद जाने के विचार की
छाया तक न उपज सके।

आना तो ऐसे ही मेरे दोस्त,
कि तुम्हारी महिमा से आक्रान्त हो
मेरा दिल वही महसूसना न भूल जाए
कि जिसे मन के मानसरोवर में
सबसे पहले महसूस होना चाहिए।
तुम्हारे आने से
अपना भविष्य और पत्नी के ज़ेवर गिरवी रख
तुम्हें पढ़ाने वाले बड़े भाई को
यह न महसूस हो हर बार की तरह
कि महाजन आया है अपना सूद उगाहने।



कविता लिखे कवि को


कविता में दर्ज़ हो जाए ऐसा जमीर
कि जमीर ही बचे कविता में
और लुप्त हो जाए कविता की आत्मा
कविता के ही शरीर से।
जमीर खोजने के लिए लोग पढ़ें वह कविता
गुनें वह कविता।
सुनें वह कविता।

पर यह तो तब हो,
जब कविता लिखे कवि को।




एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

  1. I am a Youngest Book Publisher & Distributor of India. I have published 4 books Upcoming 14 books on November 2013. I like your poem & think to publish your Poem Book. So please contact us : arthprakashan@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता लिखे कवि को..कविता बहुत कुछ लिखने की प्रेरणा देती है। अद्भुत कविताएं...मन प्रसन्नचित..

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रांजलधर की कविताएँ धड़कती-सुलगती कविताएँ हैं। वे ख़त्म होकर भी ख़त्म नहीं करतीं बतियाना.... दूर तक...देर तक।

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل