लालित्य ललित की चुनिंदा कविताएँ : Selected Poems of Lalitya Lalit

गांव का खत: शहर के नाम 

उस दिन डाकिया
बारिश में
ले आया था तुम्हारी प्यारी चिट्ठी
उसमें गांव की सुगन्ध
मेरे और तुम्हारे हाथों की गर्माहट से
मेरे भीतर ज्वालामुखी फूट पड़ा था
सच! ढेर सारी बातें लिख छोड़ी थीं तुमने -
‘‘समय से काम पर जाना
ठीक वक्त पर खाना खाना
और सबसे जरूरी शहरी सांपिनों से दूर रहना
कितना ख्याल रखती हो मेरा
या कहूं कि अपना।
याद है वह सावान की अलसाई दोपहर - ब्याह से केवल दो दिन पहले
जब गेंदा ताई के ओसारे में खाए थे
मैंने-तुमने सत्तू और चूरमे के लड्डू
जिन्हें तुम सुबह से ओढ़नी में छिपाए हुए थीं
तुम्हारा खत उनका भी स्वाद दे रहा है
और याद आ गया मुझे बिट्टू के पैदा होने पर
बांटी थी गांव भर में मिठाई
मैंने, बप्पा ने, अम्मा ने नाच-नाचकर
मैंने पिछले हफ्ते फैक्टरी में फिर बांटी थी मिठाई
संभाल-संभाल कर
जब मेरा-तुम्हारा बिट्टू हुआ था दस वसंत का
बिमला कैसी है
क्या बापू को याद करती है
बिमला अब तो बड़ी हो गई होगी
ध्यान रखियों शहर की हवा गांव तक पहुंच चुकी है
लड़की जात है, ताड़ की तरह बढ़ जाती है
तुमने लिखा था पूरन काका भी पूरे हो गए
और हरी नम्बरदार की तेरहवीं चौदस को थी
समय मिला तो
आ जाऊंगा
पर सहर में समय मिलता है क्या ?
वा ‘हरिया’ पिताजी के वक्त आया था
सब कुछ देखना पड़ता है जी।
मेरा भी मन न लगता
मुझको भी कुतुबमीनार देखना है
अब के तुम्हारी एक न सुनूंगी, हां...
अच्छा, शहर में अपना ख्याल रखना
ठीक-ठीक काम करना
मालिक लोगों से बनाकर रखना
जन्नत नसीब होती है
गांव आते वक्त
रेल से मत आइयो
मण्डी टेशन पर बम फटा था
लाली भौजाई कहे थी
लिख दियो, संभल कर आइयो मेरे लिए लाली
पीले रंग का ब्लाउज
बिट्टू के लिए बंडी
बिमला के लिए ओढ़नी और हां -
अम्मा के चश्में का नम्बर भेज रही हूं
बाकी क्या, बस तुम आ जाजो जी,
अच्छा अब सुन लो ध्यान से
‘बाबू’ बन के आइयो
आते वक्त कुर्ता-पाजामा पहन के मत आइयो
यहां रोब नहीं पड़ेगा
पिछले महीने कजरी का ‘वो’ भी
गांव में हीरो बनके आया था
बड़ा अच्छा लगे था
सच, तुम भी पैंट-कमीज और
जूते पहन के आना
वो याद से तिरछी टोपी जरूर लीजो
तू मुझको ‘वा’ में राज दिखे है
अच्छा अब खत बन्द करती हूं
तुम्हारी पत्नी

जमुना देवी
काली मंदिर के पास
गांव और पोस्ट आफिस-ढुंढसा
जिला अलीगढ़
उत्तर प्रदेश

फूल, पत्ती और तितली

दिल की गहराई से
चाहो
फूल को पत्ती को
और फुदकती कूदती तितली को
कुछ देर फूल को
सहलाओ
पत्ती को पुचकारो
देखोगे तुम
आहिस्ता से आ बैठेगी
तुम्हारी हथेली पर तितली
बिल्कुल वैेसे ही
जैसे किसी अनजान अजनबी
बच्चे की ओर
निष्कपट भाव से देखो
मुस्कराओ
तो पाओगे
बच्चा भी तुम्हें उसी भाव से
देखेगा
तो मेरे दोस्त
एक दूसरे को इसी भाव से
देखो
तो कटुता मिट जाएगी
हमेशा-हमेशा के लिए
क्या तुम नहीं चाहते
कि सब मिल जाए
देखो एक माला के एक फूल को
देखो
जो अलग छिटका पड़ा है
उसकी गंध होगी तो
पर वो बात नहीं होगी
जो माला की होती है
तो मानो मेरा कहना !
एकसूत्र में रहो
टूटन में क्या है ?
जुड़ कर रहो
मजाल है तुम्हें कोई
डिगा दे
तुम्हें कोई हिला दें
समूची धरातल पर
दिखने लगेगा असर
और तुम पाओगे तुम्हारे साथ
होंगे सभी लोग
जिन्हें तुम चाहते हो
और सच्चे मन की मुराद
हमेशा पूरी होती है
अगर किसी को भी चाहो
तो निष्कपट चाहो
पूरे मन से चाहो
पूरी शिद्दत से चाहो
देखो तुम्हारे हाथ में भी
आ बैठी हैं तितलियां
देखो तो !
पत्ती भी मुस्कराने लगी है
और फूल भी
अरे समूचा बगीचा ही
मुस्कराने लगा है
गीत खुशी के गाने लगा है

यात्राएं

हमेशा सुख देती हो या
कभी-कभी हताशा भी
इसका मलाल नहीं करना चाहिए
कभी अच्छे लोग होते हैं
कभी-कभी बुरे भी
अच्छे लोग अपनी आदतों के कारण
अच्छे हैं
और बुरे लोग अपने कर्मों के कारण
कभी कभार आपको
निकलना चाहिए खुली हवा में
खुले विचार
मन को नई
ऊर्जा से भर देते हैं
मानों या ना मानो
निकलो घूमो
ठहरो देखो
बैठो, ताको, निहारो
चहको
चलो, बैठो, देखो
आहें लो
चाय की चुस्कियां
आपको पूर्ण शिद्दत से
आत्मसात कर देती है
और आप
उन अनुभूतियों के
होकर रह जाते हो
और वे पल
सदा के लिए
आपकी स्मृति कलश
में तटस्थ

आज की दुनिया

कितनी बार
आप मरते हो ?
जीवन में एक बार !
नहीं कई-कई बार
मास्टर, प्रेयसी, पिता, पत्नी
बच्चों, सगे-संबंधियों की
टीका-टिप्पणी पर
पड़ोसियों से बदसलूकी पर
बॉस की कुटिलताओं पर
आप अनदेखी भी तो
नहीं कर सके !
इसलिए मरते रहो खुद ब खुद
एक दिन हकीकत का
जमली जामा खुद ब खुद
पहना दिया जाएगा
फ्लाने दिन फ्लाना
मर गया !!
बड़ा चंगा बंदा था
मिलनसार था
सबके काम आता था पर जी
होनी को कौन टाल सकता है !
फ्लाने के जनाज़े में
कईयों ने साथ दिया
लोग आए रस्मी हुए
आंसू टपकाएं निकल लिए
कुछ इतने सहृदय निकले
फेसबुक पर श्रंद्धाजलि दी
फोटो भी चस्पां की
फ्लाना लेखक
संसार छोड़ गया
बड़ी बेहतरीन गज़लें थी
इनकी और लाइक/कमेंट का
सिलसिला शुरु


साहब और बड़े साहब

साहब
और बड़े साहब क्या होते हैं ?
एक मक्खन की छोटी टिक्की
और दूसरी आधा किलो की
दोनों को चापलूसी पसंद है
किसी को कम
या किसी को ज्यादा
यदि आप इस पवित्र यज्ञ की
परिभाषा से परिचित है
तो वर्ष भर में
आपकी अनगिनत यात्राएं
होंगी
और यदि आप इस पुराण प्रक्रिया से
अनभिज्ञ हैं तो
आप बैठे रहेंगे कतार में
और दूसरे महसूस करेंगे
आपके बारे में
जिस व्यक्ति का नंबर
मिला रहे हैं
वह आपके संपर्क दायरे से
बाहर है
आप प्रयास करते रहे !!!

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ