स्वामी सदानंद सरस्वती द्वारा विरचित
अथ राक्षस चालीसा
सपने महं शंकर दियो मो कहं यह उपदेश ।
राक्षस चालीसा रचहु, यह मेरो आदेश।।

जो कछु शंकर कह्यो सो मैं लिखेहु प्रमान ।
जो नर एहि मिलि गाइहैं कृपा करहिं भगवान ।।
धिक बी जे पी धिक रजनीचर ।
शिव पर वार करहिं ये निशिचर ।।
पहले रामभूमि संहारी ।
अब शंकर पै चोट करारी ।।
ये अधर्म मय सब परिवारा ।
मोदी नव रावण अवतारा ।।
जिनहिं राम त्रेता महं मारा ।
जनमहिं भारत बारंबारा ।।
भारत कर विनास ये चाहहिं ।
रक्तपात करि प्यास बुझावहिं ।।
जब जब बहै प्रगति की धारा ।
तब तब लेइ रावण अवतारा ।।
प्रथम गोडसे बनि सोइ आवा ।
रामभगत गांधी पै धावा ।।
बापू की हत्या करि दीनी ।
सूनी गोद मातु की कीनी ।।
पुनि अडवानी बनि सोइ आवा ।
राम भूमि का नाम मिटावा ।।
भारत मां के सुत सब बांटे ।
देश प्रगति महं बोबै कांटे ।।
इनके करम न शिव को भाये
सोमनाथ तजि काशी धाये
पीछे पीछे मोदी आवा
अब शंकर पर बोला धावा
मुंह में शिव शिव बगल में ईंटें ।
काशी में अब शिव को पीटें ।।
येहि कारन सब चाहहिं काशी ।
मायावी ये सत्यानाशी ।।
दंगों की नित जुगत बनावहिं ।
जगह जगह हिंसा करवावहिं ।।
विश्वनाथ जानी सब माया ।
अरविंदहिं सब भेद बताया ।।
अरविंदहिं सो बंदी कीन्हा ।
रक्तकलश भू महं धरि दीन्हा ।।
सोइ रावण फिरि शासन चाहै ।
भारत पै फिरि विपदा आहै ।।
भेद सदाशिव शंकर भाखहिं ।
ये निशिचर गण विपदा लावहिं ।।
जो अशोक वाटिका रखावा ।
जाहि पवनसुत मारि गिरावा ।।
सोइ अशोक सिंहल बनि आवा ।
आवत हनूमान पै धावा ।।
ओहि हनुमान गढ़ी सब लूटी ।
तबहिं पवनसुत मूरत टूटी ।।
कुंभकरण जोशी बनि आवा ।
मात्र अविद्या तम फैलावा ।।
सोउ काशी मंह चाहै आवै !
मोदी ओहि कहं मुंह न लगावै ।।
भेजि कानपुर ताहि सुलावा ।
मोदी खोजि रहा शिव बावा ।।
सोमनाथ तजि धाये काशी ।
पीछे पीछे सत्यानाशी ।।
काशी तजि धाये कैलाशा ।
मोदी कर न तनिक विश्वासा ।।
जो मारीच रावण कर मामा ।
राजनाथ का पहनेउ जामा ।।
उस रावण की करै गुलामी
अडवानी को दी गुमनामी
जे मारे निज जन गुजराती ।
बनि भारत का भीतरघाती ।।
राजनाथ लक्ष्मणपुर धायो ।
सो लक्ष्मण पर घात लगायो ।।
लखन लला को खोजै पापी ।
बी जे पी मंह आपाधापी ।।
इनहिं न कछू धरम सै प्रीती ।
रकत पिपासू करहिं कुरीती ।।
बी जे पी हो या हो मोदी ।
ये निसिचरगण रक्तप्रमोदी ।।
त्रेता रामचंद्र जे मारे ।
बनि बीजेपी उपजे सारे ।।
कलियुग निसिचर ‘निकर’ लिबासा ।
इन कर कोइ न करौ विस्वासा ।।
ये पापी भारत के द्रोही ।
मंदिर मस्जिद ढाहैं ओही ।।
अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा ।
कहहिं संत बुध गावहिं वेदा ।।
ये राक्षसगण भेद करावहिं ।
एक मातु के सुत लड़वावहिं ।।
करि जननी की सूनी गोदी ।
हंसहि ठठाइ नरेंदर मोदी ।।
सोमनाथ पै रक्त गिरायो ।।
येहिं कारण गुजरात जलायो ।
अब काशी पै साधि निशाना ।
शिव शंकर पै खंजर ताना ।।
इनके करतब जानहु भाई ।
इनसे होहि न देश भलाई ।।
जो कोई इनके गुन गावहिं
तेहि पर शंकर विपदा लावहिं ।।
कान परै जदि इनकी बानी ।
रौरव नरक परहिं ते प्रानी ।।
जो बांचैं राक्षस चालीसा ।
तेहि पर कृपा करैं गौरीसा ।।
जो छापैं जो घर घर बांटैं ।
तेहि कर दुख शिवशंकर काटैं ।।
यह चालीसा बोलि कर शंभु गये कैलास ।
यह बांचै तो होइ क्यों भारत सत्यानाश ।।
अब भी जो चेते नहीं भारत की संतान ।
तो फिर क्या बच पायेगा अपना देश महान ।।
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