अशोक सेकसरिया अपने आत्म से ऊपर थे - रवीन्द्र कालिया

writer ashok sekhsariya death


मशहूर लेखक, विचारक अशोक सेकसरिया का बीती रात (29-30 नवंबर) निधन हो गया।  पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे सेकसरिया जी के अचानक निधन की ख़बर से हिंदी साहित्य जगत सन्न रह गया। 

साहित्य के इस संत को शब्दांकन परिवार की श्रधांजलि। 

उनके कुछ क़रीबी लोगों ने शब्दांकन के साथ उनकी यादों को साझा किया। 

अशोक सेकसरिया अपने आत्म से ऊपर थे - रवीन्द्र कालिया

अशोक सेकसरिया का जाना मेरे लिए बहुत शोकपूर्ण समाचार है।  मैं जब भाषा परिषद कलकत्ता में गया तो कलकत्ता जाने का सबसे बड़ा आकर्षण अशोक सेकसरिया ही थे।  वहां जा कर मालूम हुआ कि सीता राम सेकसरिया जो कि भारतीय भाषा परिषद के संस्थापकों में से थे और जिन्होंने महात्मा गाँधी के संपर्क में आ कर संस्थानों का निर्माण किया था, हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।  कलकत्ता को हिंदी के केंद्र में लेन का श्रेय भी उन्हें ही जाता है, ये अकारण ही नहीं है कि प्रारंभिक साहित्यिक पत्रिकाएं कलकत्ता से ही प्रारम्भ हुई थीं। ऐसी महान विभूति के पुत्र थे श्री अस। साठ के दशक के उन दिनों में वो, श्रीकांत वर्मा, निर्मल वर्मा, रामकुमार प्रयाग शुक्ल आदि तमाम रचनाकारों के प्रिय मित्र और ‘दैनिक हिंदुस्तान’ के सम्पादकीय विभाग में काम करते थे। खादी के कुरते पैजामे में हमेशा नज़र आने वाले अशोक सेकसरिया, कलकत्ता में सेक्सरियाजी की अट्टालिका के एक कमरे में रहते हुए, पुस्तकों के बीच ही उन्होंने अपना सारा जीवन बिताया।

मारवाड़ी समाज के अलावा बंग भाषियों के बीच भी वो समग्रित व्यक्ति थे, अपने आत्म से ऊपर। इस तथ्य को बहुत कम ही लोग जानते हैं कि अशोक सेकसरिया जी ने प्रारंभ में जो कहानियाँ लिखीं, उनमे अपना नाम न देकर अपने दिवंगत मित्र गुनेंद्र सिंह कम्पानी का नाम दिया। वे राम मनोहर लोहिया के अन्यतम अनुयायी थे और जीवन भर एक एक्टिविस्ट की भूमिका में ही रहे। 

ज़िन्दगी भर फ़र्श पर ही सोने वाले, अन्याय, शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने वाले मित्र का चले जाना मेरे लिए एक बहुत दर्दनाक घटना है। 

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