खुद से दूर जाना
कुछ न करते हुए बैठे रहना घंटों तक
सिर्फ शोर सुनते हुए लहरों का
भूल जाना अच्छी बुरी हर याद को
बहा देना नमकीन पानी में हर परेशानी
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना
रेत का घर बना के सीपियों से सजाना

खुद ही मिटाना
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना
हिचकोले खाती मछुआरों की नाव
समंदर को चढ़ते फूल नारियल
रेत पर बैठे खोये हुए से प्रेमी
खुद को भूल दुनिया पे नज़र
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना
कोई नहीं है साथ तो क्या
कायनात है
नए तराने बुनना
नए सुर में गुनगुनाना
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना ...
एक घोर अव्यावहारिक कविता
एक पलड़े में रख दिए
सारे सपने, ज़िम्मेदारी, महत्वाकांक्षाएं
दोस्तों का प्यार !
और एक पलड़े में केवल वो था
फिर भी झुका रहा वो पलड़ा
उसके वजन से !
हर उपलब्धि पर भारी हो जाता है
उसका होना या न होना !

या मैं बन ही नहीं पाया
व्यावहारिक !
साथ होना उसका
एक ज़रूरत है
जैसे हवा पानी और भोजन
जीने के लिए !
जैसे उत्प्रेरक हो वो
जो किसी क्रिया को
धीमा या तेज़ कर देता है
बिना शामिल हुए उमसे
क्या यही है प्रेम में होना
या मैं बन ही नहीं पाया
व्यावहारिक !
कविता

आधी बीत गयी ज़िन्दगी को
मुड़ कर देखने में
बाकी आधी गँवा दी
जिन को लेकर रोया
और जिनको लेकर खुश था
सब तो उधर ही छूट गया..
ले आया मैं दर्द
और पछतावा
अपनी आत्मा में समेटे हुए !
मेरे प्रिय !
आजकल सपने बुना करती हूँ
जैसे माँ कभी स्वेटर बुना करती थी
पर मेरी गति तेज़ है
या यूँ कहो की बस यही एक काम है
ढेर लगा दिया है इन्द्रधनुषी सपनों का
देखो न ...
मेरे प्रिय !
"मैं" और "हम"
वजन एक है
पर अंतर
मीलों का है न
मेरे प्रिये !
एक कविता

कहीं गुम हो गयी
संभाल न सके
तुम
मेरे प्रिय !
मिलना तुमसे एक इत्तिफाक था
या प्रारब्ध ?
प्रेम फिर अलगाव
क्या यही होगा ?
या मिलें हैं सदा क़े लिए
बोलो ना
मेरे प्रिय !
मैं पहाड़ी नदी सी चंचल
तुम गहरी झील से शांत
मैं हवाओं की तरह उन्मुक्त
तुम बादलों से भरे हुए
लेकिन बह जाते हो मेरे प्रेम में
प्रबल है न वेग...?
मेरे प्रिय !
अक्सर कहते हो
दुःसाहसी हूँ मैं
दुनिया की नहीं
बस अपने दिल की सुनती हूँ
प्रेम जो अनुशासित हो
तो प्रेम ही कैसा
मेरे प्रिय !

जयपुर की इरा टाक स्वप्रशिक्षित कलाकार, लेखिका कवि हैं। BSc., MA (history) PG (Mass comm) शिक्षित इरा ने करियर की शुरुआत टीवी पत्रकारिता से की पर मन कुछ अलग खोज रहा था। यही तलाश उन्हें रंगों और शब्दों के समंदर की और खींच लाई 2011 से अब तक 5 एकल शो और कई ग्रुप शो में हिस्सा ले चुकी हैं. 2013-14 की राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में इनकी पेंटिंग Bonding का चयन भी हो चुका है. इरा टाक के दो काव्य संग्रह 'अनछुआ ख्वाव' और 'मेरे प्रिय' प्रकाशित हुए हैं साथ ही कई पत्र पत्रिकाओ और ब्लोग्स में कहानियां और कवितायेँ सतत प्रकाशित होती रहती हैं. 35 से ज्यादा किताबों पर इनकी पेंटिंग्स कवर के रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं. चित्रकारी के साथ-साथ एक उपन्यास लिखने में मशगूल इरा का एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है.
संपर्क: 50/26, "सौभाग्य" प्रताप नगर, संगनेर,
जयपुर
Mobile: 09460407240
email: eratak13march@gmail.com
मुझे तुम में
कितने निश्छल
कितने सरल हो तुम
मन करता है तुम्हें
अपने रंगो में उतार लूँ
और ढल जाऊँ
तुम्हारे शब्दों में
मेरे प्रिय !
चुप चुप से रहने वाले
कितना बोलने लगते हो
जब मैं उदास होती हूँ
कितना प्रेम है तुम में
सिर्फ अनुभव कर सकती हूँ
लिखूं कैसे ?
शब्द ही कहाँ हैं ?
मेरे प्रिय !
कहीं कोई रिश्ता
चटकता है तो
वजह होता है एक खालीपन
दोषी एक भी हो सकता है
और दोनों भी
ये खालीपन न भरने देना
इस रिश्ते में
मेरे प्रिय !
तुम्हें और तुम्हारी बातों को सोचना
तुम्हारे नाम से अनजाने में किसी को बुलाना
मिलने का इंतज़ार करना
मिलने के बाद फिर उन मुलाकातों को दुबारा जीना
तुम ही तुम
कहीं खुद को न भूल जाऊं
मेरे प्रिय !
तुम में जो कमी है
मैं पूरी करती हु
मेरा खालीपन तुम भरते हो
तभी तो यूँ जुड़े हैं
एक दूसरे के पूरक हैं
सच है न...
मेरे प्रिय !
हँसना तुम्हारा यूँ
जैसे अहसान कर रहे हो
कितनी मुस्कराहट छुपी है
तुम्हारे अन्दर
उस दिन जब तुम पहली बार
हँसे थे खिलखिला के
कितने दिए जल गए थे
आज भी रोशन है मेरा मन
उस आनंद से
मेरे प्रिय !
तुम्हारे कदम मेरे जीवन में
एक सुरक्षा घेरा बनाते हैं
हर ख़ुशी तुम्हारे साथ होने से
हर दुःख तुम्हारे दूर होने से
मेरे प्रिय ......!