सबसे बड़ा सवाल ईमानदारी का होता है - मैत्रेयी पुष्पा | The biggest question is of integrity - Maitreyi Pushpa


साहित्य-संस्कृति से जुड़ी संस्थाएं सिफारिश,
दलाली के झांसों में आकर गलत काम करती हैं 

- मैत्रेयी पुष्पा

शब्दांकन पर मैत्रेयी जी के चाहने वालों की संख्या और मेरा ख़ुद-का उनका प्रशंसक होना कारक बना कि हरिभूमि से यह बातचीत साभार आप तक पहुँच रही है।

अकादमी की गरिमा बनाए रखना मेरी प्राथमिकता होगी - मैत्रेयी पुष्पा

हाल ही में प्रख्यात साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा को दिल्ली सरकार के अधीनस्थ कार्यरत संस्था हिंदी अकादमी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। कहने की जरूरत नहीं कि मैत्रेयी जी की छवि एक बेबाक रचनाकार की रही है। ऐसे में यह सवाल सबसे पहले उठता है कि हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति के संवर्धन के लिए सक्रिय इस संस्था से जुड़कर उनकी प्राथमिकताएं क्या होंगी? वह किस तरह की कार्यशैली अपनाएंगी? ऐसे ही कुछ और सवालों पर मैत्रेयी पुष्पा ने अपने स्पष्ट विचार साझा किए हरीभूमि  राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र  के विज्ञान भूषण के साथ। 


Haribhumi, Hindi Academy, interview, Maitreyi Pushpa, बातचीत, मैत्रेयी पुष्पा, हरीभूमि, हिंदी अकादमी, सबसे बड़ा सवाल ईमानदारी का होता है - मैत्रेयी पुष्पा | The biggest question is of integrity - Maitreyi Pushpa



विज्ञान :हिंदी साहित्य में आप वर्षों से सक्रिय हैं लेकिन भाषा, साहित्य और संस्कृति के संवर्धन की दिशा में कार्यरत किसी संस्था से आप पहली बार जुड़ी हैं। आपको क्या लगता है कि हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन में सरकारी संस्थाओं की कितनी कारगर भूमिका हो सकती है?

मैत्रेयी पुष्पा: सभी सरकारी संस्थाएं अपने उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में कारगर भूमिका निभाने के लिए ही स्थापित की जाती हैं। इसके लिए भवन, योजनाएं और बजट दिया जाता है। हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए स्थापित सभी संस्थाएं भी इसी उद्देश्य से स्थापित की जाती हैं कि इससे भाषा, साहित्य का विकास होगा, जनता के बीच में साहित्य-संस्कृति के प्रति लगाव बढ़ेगा और समाज में नई चेतना आएगी। लेकिन संस्थाओं से जुड़े लोगों की मनुष्यगत कमजोरियां और प्रवृत्तियां भी अपना काम करती हैं। आमतौर पर लोग आसान रास्ते को अपनाना चाहते हैं, अपने हित साधने लगते हैं। इसी के चलते ऐसी संस्थाएं अपनी उस भूमिका को कई बार नहीं निभा पातीं, जिसके लिए उन्हें स्थापित किया गया होता है। तो कहने का मतलब है कि किसी भी सरकारी संस्था को स्थापित करते समय तो यही अपेक्षा की जाती है कि वो पूरी श्रद्धा से अपने दायित्व निभाएगी लेकिन उससे संबद्ध कुछ लोगों की कार्यशैली की वजह से ऐसा नहीं हो पाता है।



विज्ञान :क्या आप मानती हैं कि इस उद्देश्य से स्थापित सभी संस्थाएं अपनी भूमिका पूरी गंभीरता से निभा रही हैं?

मैत्रेयी पुष्पा: जैसा मैंने पहले कहा कि संस्था से जुड़े कुछ लोग जब उस संस्था के उद्देश्य और प्रतिबद्धता के बजाय अपने स्वार्थ, अपने लोभ में लग जाते हैं, तो उस संस्था की साख में दीमक लगने लगती है। ऐसा नहीं है कि सभी संस्थाओं में दुर्गुण फैल जाते हैं। उसमें कई लोग अच्छा काम भी करते हैं। लेकिन जहां तक मेरे देखने में आया है तो बहुत मुश्किल से ही कोई ऐसी संस्था दिखाई देती है, जो पूरी ईमानदारी, विश्वसनीयता और प्रतिबद्धता से अपना काम करती है। मैं किसी एक संस्था की बात नहीं करती देश भर के कई संस्थानों में यह देखने में आता है। बड़े-बड़े प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा भी पक्षपात किया जाता है, उपेक्षाएं की जाती हैं। इससे ज्यादा अनाचार और क्या होगा कि साहित्य-संस्कृति से जुड़ी ऐसी संस्थाएं सिफारिश, दलाली के झांसों में आकर गलत काम करती हैं। वरिष्ठ को उपेक्षित कर, अपने जानने वालों को सम्मानित करते हैं, ओबेलाइज करते हैं।



विज्ञान :संस्थाओं के जरिए कुछ खास और अपने पहचान वालों को लाभ पहुंचाने के पीछे किस तरह की मानसिकता काम करती है?

मैत्रेयी पुष्पा: सबसे बड़ा सवाल ईमानदारी का होता है। और आज के दौर में अगर सबसे कठिन कोई काम है तो वह ईमानदार आदमी को खोजना ही है। इससे भी बड़ी विडंबना तो यह है कि अपनी रचनाओं में ईमानदारी, सम्मान और मनुष्यता के पक्ष में हमेशा खड़े रहने की बात करने वाले साहित्यकार भी इस तरह के अनैतिक कामों में सक्रिय दिखते हैं। यानी वो जिस तरह की बातें अपने लेखन में करते हैं, उसे ही अपनी कर्तव्य के द्वारा खारिज करते हैं। यह तो मनुष्यगत विरोधाभास ही कहा जाएगा। लोभ, व्यक्तिगत लाभ, आलस्य जैसी कमजोरियों से न उबर पाना और ईमानदारी पर कायम न रह पाने के कारण ही बड़े उद्देश्यों को लेकर स्थापित की गई संस्थाओं की छवि खराब होती है।



विज्ञान : हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष के तौर पर आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी? किन प्रमुख योजनाओं पर आप विशेष रूप से कार्य करेंगी?

मैत्रेयी पुष्पा: अकादमी की कार्यशैली में ईमानदारी को हर स्तर पर कायम करना मेरी पहली प्राथमिकता होगी। बात चाहे संस्था द्वारा दिए जाने वाले सम्मान की हो, अनुदान के द्वारा लेखकों को पुस्तक प्रकाशित करने में प्रोत्साहित की हो या फिर संस्था के मंच से कोई एक रचना पाठ करने की ही हो, मैं पूरी तरह से निष्पक्ष और उचित ढंग से कार्य करूंगी। मैं कई ऐसे वरिष्ठ लेखकों को जानती हूं, जो स्वयं सक्षम होते हुए भी संस्थाओं द्वारा अनुदान लेकर अपनी पुस्तकें छपवाते हैं। ऐसा करना किसी नए आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन प्रतिभावान रचनाकार का हक मारने जैसा है। मेरे कार्यकाल में ऐसा न हो, इसकी पूरी कोशिश करूंगी। योग्य को उपेक्षित करना भी अनाचार है। संस्था की गरिमा को बनाए रखने के लिए, उसकी विश्वसनीयता को कायम रखने का भरसक प्रयास करूंगी।



विज्ञान :यानी हम मान लें कि जिस तरह आपकी कहानियों, उपन्यास के पात्र, अव्यवस्था, विद्रूप के विरुद्ध मसाल लेकर खड़े हो जाते हैं, कुछ उसी तरह आप अपनी सीमाओं में रहकर इस पद पर कार्य करेंगी?

मैत्रेयी पुष्पा: बिल्कुल! मेरी कहानियों और उपन्यासों में पात्र सिर्फ आदर्शों की बात नहीं करते जमीनी तौर पर अव्यवस्था का विरोध भी करते हैं। वो सब पात्र मेरी कलम से ही तो निकले हैं। पात्र जब बदलाव की बात करते रहे हैं तो अब मुझे ऐसा करना ही होगा। जो अवसर मुझे मिला है, उसे पूरी ईमानदारी-प्रतिबद्धता से निभाऊं, इसकी पूरी कोशिश करूंगी। हालांकि यह एक सरकारी संस्था है, इसमें सरकार का भी दखल होगा लेकिन  चूंकि यह दायित्व उन्होंने मुझे स्वयं दिया है। मैंने इसके लिए कोई सिफारिश नहीं की, न ही उनसे मांगा। तो मैं पूरी निष्पक्षता और निर्भीकता से काम करूंगी। किसी भी कीमत पर बेईमानी, अनैतिकता नहीं चलने दूंगी।

००००००००००००००००
nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज