ओ.पी. नैय्यर अपनी किंग साइज़ ईगो के ग़ुलाम थे... तेजेन्द्र शर्मा
~ शिखा वार्ष्णेय
“ओ.पी. नैय्यर यदि स्वाभिमानी होते तो दूसरों के स्वाभिमान का भी आदर करते। यह कहना ग़लत न होगा कि ओ.पी. नैय्यर में ग़ुरूर था अभिमान था। वे अपने आपको मास्टर व अपने साथ काम करने वालों को मातहत मान कर चलते थे।... इसीलिये वे अकेले पड़ते गये क्योंकि वे लोग जो अपने अपने हुनर के माहिर थे, वे उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ते गये। उनके व्यवहार से क्षुब्ध लोगों में साज़िन्दे भी थे तो गीतकार भी, गायक भी थे तो मित्र भी। साहिर लुधियानवी, मुहम्मद रफ़ी और यहां तक कि आशा भोंसले भी उनके तल्ख़ व्यवहार की वेदी पर भेण्ट चढ़ गये।” यह कहना था वरिष्ठ कथाकार एवं फ़िल्म विशेषज्ञ तेजेन्द्र शर्मा का। मौक़ा था नेहरू सेन्टर, लन्दन में ओ.पी. नैय्यर के गीतों की शाम का।
140 सीटों वाले नेहरू सेन्टर में 170 लोगों ने अर्पण कुमार और मीतल को मुहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले की आवाज़ों को पुनर्जीवित करते हुए सुना। की-बोर्ड पर सुनील जाधव थे तो तबले पर केवल।
शाम का विशेष आकर्षण रहा संगीता बहादुर द्वारा फ़िल्म यह रात फिर न आएगी का आशा भोंसले द्वारा गाया गया गीत जिसकी धुन ज़ाहिर है कि ओ.पी.नैय्यर ने ही बनाई थी। गीत के बोल हैं, “मैं शायद तुम्हारे लिए अजनबी हूं, मगर चान्द तारे हमें जानते हैं.... (गीत एस. एच. बिहारी)” संगीता जी ने हमारे आग्रह पर यह गीत सुनाया और दर्शकों ने जी भर कर सराहा। इसी कार्यक्रम में संगीता जी के जन्मदिन का केक भी काटा गया। और उन्हें भारत वापिस जाने के सिलसिले में शुभकामनाएं भी दीं।
तेजेन्द्र शर्मा ने ओ.पी. नैय्यर के शुरूआती संघर्ष की गाथा सुनाते हुए उनके उन गीतों की चर्चा की जो उन्होंने गीता दत्त के लिये बनाए। आशा भोंसले के साथ बनाए कुछ अमर गीतों की बातें की। और यह भी बताया कि ओ.पी. नैय्यर एक अकेले सफल फ़िल्मी संगीतकार हैं जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी लता मंगेश्कर से एक भी गीत नहीं गवाया। ओ.पी. नैय्यर ने एस.एच. बिहारी, क़मर जलालाबादी, मजरूह सुल्तानपुरी, जां निसार अख़्तर और साहिर लुधियानवी के साथ अधिक गीत बनाए। आशा भोंसले के साथ 324 और मुहम्मद रफ़ी के साथ 202 गीतों को तैयार किया।
अर्पण, मीतल और तेजेन्द्र शर्मा ने शाम के लिये जिन गीतों को चुना वे थे – आइये मेहरबां (हॉवड़ा ब्रिज), बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी (एक मुसाफ़िर एक हसीना), बाबूजी धीरे चलना (आर पार), सर पर टोपी लाल (तुमसा नहीं देखा), उड़ें जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी (नया दौर), इक परदेसी मेरा दिल ले गया (फागुन), तूं है मेरा प्रेम देवता (कल्पना), जाइये आप कहां जाएंगे (मेरे सनम), पुकारता चला हूं मैं (मेरे सनम), तारीफ़ करूं क्या उसकी (कश्मीर की कली), आपके हसीन रुख़ पे (बहारें फिर भी आएंगी), चैन से हमको कभी (प्राण जाएं पर वचन न जाए), मैं सोया अखियां मीचे (फागुन)।
तेजेन्द्र शर्मा ने एस.एच. बिहारी के शेर से ओ.पी. को श्रद्धांजलि अर्पित की –
“तेरी ज़िन्दगी मुहब्बत, तेरा नाम है दीवाना
तेरे बाद भी करेगा, तेरा ज़िक्र ये ज़माना
तू वो ज़िन्दगी नहीं है, जिसे मौत ख़त्म कर दे
जिसे भूल जाए दुनियां, तू नहीं है वो तराना ”
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