क्या हम साहित्य अकादमी को कमज़ोर बना रहे हैं
मृदुला गर्ग
मैं वह दुविधा अपने साथी लेखकों से साझा करना चाहती हूँ, जिसने मुझे परेशान कर दिया है। एक लेखक के रूप में मैं, देश के सभी राज्यों और केंद्र में प्रचलित हिंसक असहिष्णुता का दृढ़ता से विरोध करती हूँ, जिसे ले कर सरकार उदासीन है या फिर मौन स्वीकृति दे रही है। मैंने इसके बारे में लिखा है। मैं उनका दर्द समझती हूँ -जो अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा रहे हैं या वहाँ के अपने पद छोड़ रहे हैं। असहिष्णुता के साथ असहमति और स्वयंभू नैतिक संरक्षक द्वारा एकांगी सांस्कृतिक मूल्य प्रणाली लगाए जाने के खिलाफ विरोध, लेखन के कार्य में निहित होता है।

लेकिन अगर हम अपना विरोध साहित्य अकादमी पुरस्कारों को लौटने या वहाँ के पदों को छोड़ने से व्यक्त करते हैं, तो हम कहीं ऐसा तो नहीं कह रहे कि साहित्य अकादमी एक स्वायत्त संस्था न होकर सरकार की ही एक शाखा है? याद कीजिये पं. जवाहरलाल नेहरू ने क्या कहा था - जब वो देश के प्रधानमंत्री और अकादमी अध्यक्ष दोनों थे। वो साहित्य अकादमी अध्यक्ष के निर्णयों पर प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप नहीं करने देंगे, क्योंकि यह लेखकों की एक स्वायत्त संस्था है।
क्या हम साहित्य अकादमी की बराबरी सरकार से करके उसको कमज़ोर नहीं बना रहे हैं ? मुझे यह डर खाए जा रहा है कि सरकार कहीं लेखकों का बहाना बना कर अपने नुमाइंदे को अकादमी में यह कह के न बैठा दे कि अकादमी खतरे में है। संस्कृति मंत्री ने अपने वक्तव्य में अकादमी की स्वायत्तता स्वीकारी है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इशारे इशारे में ही यह भी कहा है कि सरकार, अकादमी के कार्यकलापों पर नज़र रखे हुए है। हम सब जानते हैं कि नज़र रखने का क्या अर्थ होता है । क्या हम उन्हें अकादमी की स्वायत्तता पर कब्ज़ा करने का मौका देना चाहते हैं ? मैं ये स्वीकारती हूँ कि साहित्य अकादमी को कालबुर्गी की हत्या पर न सिर्फ शोक सभा करनी चाहिए थी बल्कि उनकी हत्या की घोर निंदा भी करनी चाहिए थी। किसी लेखक की सामान्य मौत होने में और उसके विचारों के चलते उसकी हत्या होने में बहुत अंतर है। मैंने इस बारे में साहित्य अकादमी अध्यक्ष को एक ख़त भी लिखा है।
बंगलौर में एक शोक सभा हुई थी पर उसमें कालबुर्गी की हत्या की निंदा नहीं की गयी, उस शोकसभा में मौजूद लोगों का कहना है की उपाध्यक्ष डॉ. चंद्रशेखर कंबार वहां मौजूद थे पर उन्होंने भी हत्या का मुद्दा नहीं उठाया और ना ही साहित्य अकादमी और से हत्या पर किसी भी तरह का रोष व्यक्त किया गया। हम लेखकों का इस बात से नाराज़ होना वाजिब है। अब अकादमी अध्यक्ष ने २३ अक्तूबर को जो आपात-बैठक बुलाई है, आशा है कि उसमें कलबुर्गी की हत्या की निंदा होगी और यह निर्णय भी लिया जाएगा कि भविष्य में लेखकों को पहुंचने वाली किसी भी हानि पर साहित्य अकादमी विरोध व्यक्त करेगी और लेखकों को अलग नहीं महसूस होने देगी।
अभी बैठक, जिसमें सारे देश के लेखक भाग लेंगे, उसके निर्णय का इंतज़ार करते हैं और जल्दबाजी में साहित्य अकादमी की स्वायत्तता को नुकसान नहीं पहुँचने देते हैं।
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